उमेश जोशी राजनीतिक की नब्ज पहचानने वाले पंडितों का ज्योतिष यही कह रहा था कि कपूर नरवाल काँग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में बैठेंगे। आज सोमवार को नामांकन वापस लेने के आखिरी दिन खबर आ गई कि कपूर नरवाल चुनाव नहीं लड़ेंगे। ‘नहीं लड़ेंगे’ का मतलब है काँग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में काम करेंगे। राजनीतिक समीकरण साफ थे। कपूर नरवाल चुनाव लड़ कर बंद मुट्ठी नहीं खोलना चाहते थे। मौजूद समीकरणों में जीतने की संभावनाएं शून्य से नीचे थीं। पैसे भी बर्बाद होते और हाथ लगता जमानत गंवाने का दाग। ऐसे नतीजों के बाद उन्हें अपना चुनावी राजनीति का खाता बंद करना पड़ता। सवाल यह है कि कपूर नरवाल ने पर्चा भरा ही क्यों? इसकी दो वजह नज़र आती हैं। एक, अपनी पार्टी बीजेपी को यह संदेश देना था कि अब वो तुम्हारे पाले में नहीं है। अब वो स्वतंत्र हैं। पार्टी की उपेक्षा से आहत हर कोई नेता निर्दलीय पर्चा भर कर अपनी पार्टी को ऐसा ही संदेश देता है। निर्दलीय पर्चा भरने की दूसरी वजह यह लगती है कि कपूर नरवाल इस चुनाव में अपनी अहमियत साबित करना चाहते थे। बिना पर्चा भरे चुपचाप घर में बैठ जाते तो उनकी हालत ‘बाउंस चेक’ जैसी हो जाती, जिसमें रकम तो भरी हुई है लेकिन बैंक से रकम मिल नहीं रही है। वो चेक सुंदर फ्रेम में भी जड़वा लिया जाए तब भी कूड़ा ही रहेगा। कपूर नरवाल नादान नहीं हैं। लोकतंत्र में टिकट ना मिलने के बावजूद कैसे अहमियत बनाई जाती है, वो भली तरह जानते हैं। उन्होंने पर्चा भरा तो काँग्रेस ने मान-मनोव्वल की। इससे उनका कद ऊंचा हुआ। काँग्रेस के नेताओं का मान रख कर उन पर एहसान रख दिया जिसका वे भविष्य में लाभ उठाएँगे। हालांकि बीजेपी ने पूरा जोर लगाया कि कपूर नरवाल चुनाव लड़ें। नरवाल की बगावत का लाभ उठाने के लिए बीजेपी ने उनके घर के सदस्यों को समझाया कि उन्हें ज़रूर चुनाव लडवाएँ। हो सकता है बीजेपी ने चुनाव का खर्च देने की भी पेशकश कर दी हो। कपूर नरवाल अपने भविष्य की कुंडली पढ़ना बखूबी जानते हैं। उन्होंने पर्चा वापस लेने में ही भलाई समझी। काँग्रेस का भरोसा जीत लिया और किसानों की नाराजगी से बच गए। अब चुनाव इकतरफा हो गया है, यह निर्विवाद सत्य है। Post navigation बरोदा उपचुनाव : इंदुराज नरवाल इस सीट पर बड़े अंतर से जीत दर्ज करेंगे – सैलजा मुख्यमंत्री का 72 घंटे में धान खरीद का भुगतान करने का व्यादा झूठ का पुलिंदा है – बजरंग गर्ग