हल्का बरोदा में चल रहा है डामाडोल अभी तक कोई नही है आगे बंटी शर्मा सुनारिया देश में आजकल कोरोना की चर्चा कम और बिहार में आम चुनाव और हरियाणा में बरोदा उपचुनाव की चर्चा ज्यादा चल रही हैं अगर बात बरोदा हल्के के उपचुनाव की करे तो हल्के में कुल 184327 वोट है। जिनमे से अगर जाट वोट की बात करे तो 95-96 हजार वोट जाट वोटर्स की है। ब्राह्मण वोट की बात करे तो हल्के में 25 हजार से ज्यादा वोट है । बाकी बची 60 हजार वोट अन्य की है। अगर समीकरण की बात करे तो पिछले चुनाव में जहाँ कुल वोट 177994 थी जिनमे से 122780 वोट हो पोल हुई थी। मतलब 55214 वोट जो पोल ही नही हुई और यही आंकड़ा इस बार का भी रहेगा। पिछले चुनाव में 68.9% ही वोट पोल हुए थे । बरोदा हल्के का इतिहास रहा है कि 30 से 35 % वोट कभी पोल नही होते है। जिनमे से 18.7% वोट जाट वोट है। 9.4% वोट ब्राह्मण वोट है और बाकी 3-5 % वोट अन्य की है। अगर इस बार भी ऐसा होता है तो 95 हजार जाट वोट में से 17-20 हजार वोट तो पोल ही नही होंगी । तो 95 हजार का आंकड़ा कम होकर 70 से 75 हजार पर आकर खड़ा हो गया है। जिसमे जितमे के लिए किसी भी प्रत्याशी को इस बार 45 हजार का आंकड़ा पार करना पड़ेगा। पिछले चुनाव पर अगर एक नजर डाली जाए तो पता चलता है कि कांग्रेस से स्वर्गीय श्रीकृष्ण हूड्डा को 42566 वोट मतलब 34.67% वोट मिले थे वही दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी पहलवान योगेश्वर दत्त को 37726 मतलब 30.73% वोट मिले थे और जजपा प्रत्याशी भूपेंद्र मालिक को 32480 मतलब 26.45% वोट मिले थे और इनेलो नेता जोगेंद्र मालिक जो पिछली बार भी प्रत्याशी रहे है उनको मात्र 3145 वोट यानी 2.56% वोट ही मिले थे। इस बार जजपा+ भाजपा एक जुट है तो अगर समीकरण की बात करे तो कुल वोट 70206 जोकि भाजपा- जजपा के खेमे में अभी तक सुरक्षित है। किसी कारण 10 से 20 हजार वोट टूट भी जाती है तो बची 50000 वोट अभी तक योगेश्वर दत्त यानी भाजपा के पास सलामत रहेगी। वही अगर बात की जाए कांग्रेस की तो एक तरफ जहां नरवाल खाप में अभी बागवत है। दोनों ही प्रत्याशी इंदुराज व डॉ कपुर मंजे हुए राजनेता है पर अगर ऐसा ही चलता रहा हो इसका सीधा फायदा योगेश्वर दत्त को होगा । कहने को कुछ लोगो ने जातिगत आधार पर टिप्पणी भी की है । 95-96 हजार वोट जाटों की है अगर ऐसा ही रहा हो बाकी 85 हजार वोटों में से कम से कम 60-65 हजार वोट तो अभी तक योगेश्वर दत्त के ही पाले में है। इसलिए कांग्रेस को राजनीति और भाजपा को रणनीति का प्रयोग करना होगा। साथ ही इनेलो से भी प्रत्याशी जोगेंद्र मालिक बहुत ही सुलझे हुए नेता है । और इस बार जो मेहनत इनेलो ने हल्के में कई है वो अभी तक योगेश्वर दत्त के अलावा किसी ने नही की है।अगर जातिगत बात की जाए तो भी 20 से 25 हजार वोट फिलहाल इनेलो के पक्ष में है। जीत हार की बाते तो भविष्य के गर्भ में हैं की किस पार्टी के सिर पर जीत का सहेरा सजेगा लेकिन राजनीति में आंकलन का दौर चलता रहता हैं Post navigation कपूर नरवाल की बगावत से इकतरफा चुनाव के आसार सोनीपत से पूर्व विधायक देवराज दीवान नहीं रहे