उमेश जोशी

ठेंगा दिखाने और बगावत करने की यह भी एक राजनीतिक अदा है। बीजेपी के कपूर नरवाल ने बिना कुछ बोले पार्टी से नाता तोड़ लिया और अपने घर पर कांग्रेस का झंडा लहरा कर बगावत की उद्घोषणा कर दी। कपूर ने बीजेपी को अलविदा कहा;  नेताओं को ठेंगा दिखाया और काँग्रेस का दामन थाम लिया। 

 इससे पहले कपूर नरवाल पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर हुड्डा की ऊँगली थामे काँग्रेस का टिकट मांगने के लिए घूम रहे थे। किसी से छुपा हुआ नहीं था। भाजपाई भी देख रहे थे; नरवाल की चाल समझ भी रहे थे लेकिन उम्मीद की एक किरण भी दिख रही थी कि काँग्रेस से टिकट नहीं मिलेगा तो घर लौट आएँगे।  

आज भाजपाइयों की उम्मीदों पर पानी फिर गया जब कपूर ने अपने घर से बीजेपी का झंडा उतार कर काँग्रेस का झण्डा लगा दिया। यह मानो कि झण्डे के रूप में खुली चुनौती का बिगुल है। बीजेपी के लिए यह खतरे का संकेत है। लोकतंत्र का गणित यह सिद्ध करता है कि चुनाव से पहले किसी पार्टी का प्रभावशाली नेता अपनी पार्टी छोड़ कर  विरोधियों के खेमे में चला जाता है तो समर्थक मतदाता तो टूटते ही है, उस पार्टी के खिलाफ मनोवैज्ञानिक बयार भी बहती है। 

जीवन-मरण का प्रश्न बना कर चुनाव मैदान में उतरे भाजपाई अब कपूर नरवाल को किसी तरह मनाने की भी कोशिश करेंगे। हाल में थोक के भाव बंटे चेयरमैन के पद कपूर नरवाल की झोली तक नहीं पहुंच पाए थे। हो सकता है कि जोगी राम सिहाग का ठुकराया पद कपूर नरवाल को देने की कोशिश करें। उम्मीद ना के बराबर है कि नरवाल जूठन खाकर खुश हो जाएंगे और घर वापस आएँगे। हो सकता है, और भी लालच देने की पेशकश की जाए। सत्ताधारी पार्टी के पास देने के लिए सबकुछ होता है। बीजेपी ने किसी उम्मीद में कपूर नरवाल को अभी तक पार्टी से नहीं निकाला है।

कोई संदेह नहीं है कि कपूर नरवाल की बगावत से बीजेपी को भारी नुकसान होगा। इस घड़ी में बीजेपी किसी प्रभावशाली नेता की बगावत का झटका झेलने की स्थिति में नहीं है। 

 कपूर नरवाल को तो बीजेपी छोड़नी ही थी। वो निश्चित तौर पर भांप गए होंगे कि किसानों की नाराजगी के बाद बीजेपी के साथ बने रहना भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। कोई भी नेता, खासतौर से जाट नेता, बीजेपी साथ रहेगा वो किसानों के निशाने पर आ जाएगा। किसान जिस मिट्टी पर फसल बोता है उसी मिट्टी पर उन नेताओं के नाम भी लिखेगा जो किसान विरोधी कानून बनाने वाली बीजेपी के साथ खड़े हैं। मिट्टी पर लिखा नाम किसान को हमेशा याद रहता है। राजनीति की नैया बचाने के लिए बीजेपी छोड़ना कपूर नरवाल की मजबूरी है। बीजेपी इस मजबूरी का मूल्य नहीं लगा पाएगी। 

कपूर नरवाल ने भले ही अपने घर पर काँग्रेस का झण्डा लगा दिया लेकिन काँग्रेस का दामन थामने का खुले तौर पर एलान नहीं किया है। खुद ने चुनाव लड़ने के लिए पर्चा भरा हुआ है। वोट मांगने की आड़ में राय मांगने के लिए पंचायतों के पास जा रहे हैं कि वो खुद चुनाव लड़े या काँग्रेस को समर्थन करे। ज़ाहिर पंचायतें बीजेपी को हराने के लिए यही कहेंगी कि काँग्रेस का समर्थन करो। जो पहले ही काँग्रेस का झंडा लहरा चुके हैं वो काँग्रेस का समर्थन करने की राय कैसे नहीं मानेंगे। जनता में संदेश पहुंचा देंगे कि पंचायतों की राय सरमाथे रख कर काँग्रेस का समर्थन किया है। कपूर नरवाल के बैठने और काँग्रेस को समर्थन देने की प्रबल संभावनाएं हैं। यदि कपूर नरवाल के काँग्रेस के समर्थन में उतर आते हैं तो चुनाव इकतरफा हो जाएगा। उन हालात में बीजेपी के स्टार प्रचारक दिन में स्टार (तारे) गिनते नज़र आएंगे।

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