भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक हरियाणा की राजनीति में बरौदा उपचुनाव भाजपा-कांग्रेस दोनों की ही प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है और मजेदारी देखिए, दोनों ही दल एक-दूसरे से कम अपितु अपनो से अधिक आशंकित हैं। कांग्रेस में तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बारे में सर्वविदित है ही कि वह अपने दम पर बरौदा उपचुनाव लड़ रहे हैं और भाजपा भी इस बात को मान रही है। इसी प्रकार भाजपा में प्रचलित तो नहीं है कि कहीं कोई विवाद है परंतु सूत्रों के अनुसार मामला ऐसा है अवश्य। भाजपा की आज भी रोहतक में बैठक हुई, जिसमें मुख्यमंत्री मनोहर लाल, प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़, सांसद अरविंद सैनी और एमएलए सांगवान भी उपस्थित थे। और संभावना है कि आज रात उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात होगी तथा उम्मीदवार का चयन किया जाएगा। आज ही एक सभा में बरौदा के प्रभारी और कृषि मंत्री जेपी दलाल ने कहा कि कांग्रेस डरी हुई है, इसलिए उन्होंने अब तक उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। यही बात क्या भाजपा पर लागू नहीं है। इसी प्रकार आज सूत्रों से ज्ञात हुआ कि चुनाव प्रचार की औपचारिक शुरूआत पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला बरौदा से करेंगे। जब अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ है और प्रभारी जेपी दलाल हैं तो शुरुआत पूर्व अध्यक्ष से क्यों? ऐसे ही प्रश्न भाजपा के सूत्रों से मिली जानकारी को पुष्ट करते हैं कि भाजपा में भी अंदर सबकुछ ठीक नहीं है। एक ओर भाजपा और जजपा दोनों की ओर से ब्यान आ रहे हैं कि हम मिलकर चुनाव लड़ेंगे और भाजपा के टिकट पर लड़ेंगे। पिछले दिनों चर्चा चली थी कि उम्मीदवार केसी बांगड होंगे पर आज रोहतक में जब धनखड़ जी से पूछा गया कि बांगड कब भाजपा ज्वाइन करेंगे तो वह बोले पता नहीं। भाजपा उलझी हुई है जाट और नॉन जाट के चक्कर में। कभी सोचती है कि जाट बाहुल्य क्षेत्र में जाट उम्मीदवार उतारा जाए तो कभी सोचती है कि जींद की तर्ज पर नॉन जाट। स्पष्ट अभी भाजपा की ओर से कुछ कहा नहीं जा रहा। एक बड़ा सवाल भाजपा में यह भी चल रहा है कि जजपा के समर्थकों का भाजपा के उम्मीदवार को वोट मिलेगा या नहीं। नहीं मिलेगा तो वह किधर जाएगा? अगर भाजपा को विश्वास हो कि उन्हें जजपा का वोट मिल जाएगा, तो वह और उनके नेता यह न कहें कि इम्तिहान तो यह हुड्डा का है, हमारे लिए तो अवसर है, क्योंकि गत चुनाव में भाजपा का उम्मीदवार कांग्रेस के उम्मीदवार से चार हजार से भी कम वोटों से पराजित हुआ था, जबकि जजपा के उम्मीदवार को तीस हजार से भी अधिक मत प्राप्त हुए थे। अगर दोनों को वही वोट मिलती हैं तो जीत में संदेह कहां। अब बात आई गत चुनाव की तो गत चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार योगेश्वर दत्त थे और उन्होंने श्रीकृष्ण हुड्डा को जबरदस्त टक्कर दी थी, थोड़े से अंतर से पराजित हुए थे। अत: यह का जा सकता है कि अब भाजपा की सत्ता भी है। चार साल बाकी भी हैं, उसका लाभ लेकर भाजपा का उम्मीदवार आराम से विजयी हो सकता है। वर्तमान में भाजपा की ओर से 25 उम्मीदवारों ने टिकट के लिए पार्टी से गुहार लगाई है। अब उन 25 में किसका नंबर आएगा और बाकी जो उम्मीदवार टिकट नहीं ले पाएंगे, उनकी सोच क्या होगी? याद आता है वर्ष हुआ भी नहीं, जब आम चुनाव में भाजपा का 75+ का नारा था और मुख्यमंत्री की जन आशीर्वाद यात्रा ने पूरे हरियाणा में उम्मीदवारों की संख्या को बढ़ा दिया था तथा उसका क्या परिणाम हुआ, यह पाठक स्वयं भली प्रकार जानते हैं तो कहीं वही परिणाम यहां न हो। अब भाजपा की टिकट की बात करें तो भाजपा में चर्चा है कि जब चुनाव के लिए सर्वप्रथम मुख्यमंत्री बरौदा गए थे, तो योगेश्वर दत्त की पीठ पर हाथ रखकर आए थे और कहा था कि जनसंपर्क बढ़ाना कायम रखें। अब इस बात के कुछ भी अर्थ निकाले जा सकते हैं। यह भी माना जा सकता है कि उनका इशारा हो कि जनसंपर्क बढ़ाओ और चुनाव की तैयारी करो। वर्तमान में मुख्यमंत्री के अतिरिक्त प्रदेश अध्यक्ष यहां के स्थानीय सांसद और वरिष्ठ नेता हरियाणा के अतिरिक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा साहब से भी स्वीकृति मिलनी है। अब देखना यह होगा कि उम्मीदवार योगेश्वर दत्त होते हैं या कोई अन्य। इससे भी चर्चा का सही अर्थ निकाल लेंगे। अब कांग्रेस की बात करें तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा मनोहर लाल खट्टर की तरह हाइकमान के प्रिय नहीं हैं, ऐसा साफ दिखाई दे रहा है। पिछले दिनों ही जिस प्रकार रणदीप सिंह सुरजेवाला का कद बढ़ा है, उससे हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कद में अंतर तो अवश्य आया है। परंतु भूपेंद्र सिंह हुड्डा तो गत चुनाव से ही हाइकमान से दो-चार होते ही रहे हैं। वर्तमान चुनाव में माना जा रहा है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही तय करेंगे कि उम्मीदवार कौन होगा लेकिन यहां भी नाम सोनिया दरबार में पहुंच ही रहे हैं। ऐसी अवस्था में यह देखना दिलचस्प होगा कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मानी जाती है या नहीं। और नहीं मानी जाती तो अपने नापसंद के उम्मीदवार मिलने पर उनकी क्या प्रतिक्रिया और कार्यशैली रहेगी? अब भाजपा की तरह इनके बारे में कुछ विस्तार से लिखने की जरूरत नहीं। यह सर्वविदित है कि इस चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को अपने समर्थकों के अतिरिक्त अन्य कांग्रेसियों का सहयोग न के बराबर ही मिलेगा। Post navigation हरियाणा में फिर दिखेगा वीआईपी कल्चर, बरोदा : सब एक दूसरे की तरफ देख रहे हैं