मजदूर-विरोधी व जनविरोधी सभी काले कानूनों, अध्यादेशों व नीतियों को वापस लिया जाए

मंडन मिश्रा

भिवानी : आज यहां मजदूर-विरोधी सभी काले कानून रद्द करने और रोजगार का अधिकार देने आदि मजदूर-कर्मचारियों के ज्वलंत मुद्दों को लेकर जिला प्रधान राजकुमार जांगड़ा व जिला सचिव राजकुमार बासिया के नेतृत्व में ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (एआईयूटीयूसी) जिला कमेटी भिवानी की ओर से लघुसचिवालय पर धरना-प्रदर्शन किया गया और तहसीलदार भिवानी की मार्फत एक ज्ञापन प्रधानमंत्री के नाम भेजा गया।

ज्ञापन में मांग की गई कि मजदूर-विरोधी व जनविरोधी सभी काले कानूनों, अध्यादेशों व नीतियों को वापस लिया जाए। सभी पुराने श्रम कानून बहाल किए जाएं। श्रम कानूनों में मालिकपरस्त बदलाव करने बंद किए जाएं। काम के अधिकार को संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया जाए। नई भरती पर लगाई गई रोक हटाई जाए। सभी को रोजगार दिया जाए। छंटनी, ले-ऑफ, तालाबंदी व कारखाना बन्दी पर रोक लगाई जाए। 30 साल की सेवा या 55 साल की उम्र में जबरन रिटायर करने की योजना रद्द करो। वर्क स्लिप पर अधिकारियों की तसदीक आदि बेतुकी शर्तें हटाई जाए। नई पेन्शन स्कीम रद्द की जाए और पुरानी पेन्शन बहाल की जाए। वेतन में किसी तरह की कटौती करना बंद किया जाए। डीए और डीआर पर लगाई गई रोक हटाई जाए। स्थाई प्रकृति के कामों में ठेका प्रथा पर रोक लगाई जाए। कैज्यूअल, आउटसोर्सिंग, ठेके, स्कीम आदि के कच्चे कर्मचारियों को पक्का किया जाए।

श्रमिक नेताओं ने कहा बीजेपी-नीत केंद्र सरकार द्वारा कई श्रम कानूनों को खत्म कर उनकी जगह घोर मज़दूर-विरोधी चार लेबर कोड संसद में मनमाने ढंग से जल्दबाजी में पारित करवा लिए हैं। ये मजदूर-कर्मचारियों द्वारा बड़े कष्ट उठाकर अर्जित ट्रेड यूनियन अधिकारों के बचे-खुचे आखिरी अवशेषों तक को छीन लेंगे और वस्तुतः उन्हें गुलामी की ओर धकेल देंगे। ‘फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट’ लागू होने से निस्संदेह नौकरी की सारी सुरक्षा ध्वस्त हो जाएगी। यह ‘हायर एंड फायर’ का दूसरा नाम है। यह मनमर्जी से मजदूरों को काम पर रखने और हटाने की नियोक्ताओं की हुकूमत को और भी मजबूत करेगी। औद्योगिक संबंध संहिता ने हड़ताल करने के श्रमिकों के मौजूदा कानूनी अधिकारों को प्रतिबंधित करने के लिए पहले से भी ज्यादा कठोर शर्तें लगा दी हैं। यह नया कोड वस्तुतः श्रमिकों को हड़ताल की किसी भी कार्रवाई में जाने से रोक देगा। श्रम कानूनों को ताक पर रख कर स्थाई प्रकृति के कामों में भी ठेका मजदूर लगाए जा रहे हैं। सरकारी क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। नियोक्ताओं को रात्रि पाली में महिलाओं से काम लेने का अधिकार देना, महिलाओं के मान-सम्मान व उनकी असमत पर हमलों को बढ़ावा देगा। हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने का वादा एक जुमला साबित हुआ है।

सरकार रोजगारों पर भीषण हमले कर रही है। लाखों पद खाली पड़े हैं। इन्हें स्थायी नियुक्ति के जरिये भरा नहीं जा रहा है। सरकारी विभागों में नई भरती पर रोक लगा दी हई है। नौकरियों पर छंटनी की तलवार लटकाई जा रही है। 8 घंटे के कार्यदिवस का अधिकार व्यवहारतः अब सरकारी या निजी क्षेत्रों में लागू नहीं रह गया है। कार्य दिवस 8 घंटे की जगह 12 घंटे का कर डाला है। वेतन में तरह-तरह की कटौतियां की जा रही हैं। डीए और डीआर फ्रीज कर दिया है। कर्मचारियों को जबरन रिटायर करने के लिए 55 वर्ष की उम्र या 30 वर्ष की नौकरी का बेतुका आधार बनाया गया है। वर्ष 2004 से सरकारी कर्मचारियों से परिभाषित पेन्शन का अधिकार छीन लिया गया है। तमाम श्रम कानूनों को 1000 से 1200 दिनों के लिए सस्पेंड कर दिया है। सरकार तमाम ट्रेड यूनियन गतिविधियों पर रोक लगाने पर आमादा है। लोकतांत्रिक अधिकारों को पैरों तले रौंदा जा रहा है। काले अध्यादेशों, जनविरोधी कानूनों व नीतियों को मजदूर-किसानों व आम लोगों पर जबरन थोपा जा रहा है। दमघोंटू हालात बना डाले हैं। मजदूर-कर्मचारियों व किसानों सहित मेहनतकश जनता के साथ सरकार का दुश्मन जैसा क्रूर बर्ताव है।

You May Have Missed

error: Content is protected !!