चौ. भजनलाल की जयंती पर कुलदीप बिश्नोई की कलम से विशेष

१९६५ में जब एक सीधे-सादे व्यक्ति ने ब्लॉक समिति का चुनाव लड़ा तो शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि यही साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति एक दिन प्रदेश व देश की राजनीति में एक असाधारण शख्सियत बनकर जहां हरियाणा में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड अपने नाम करवाएगा वहीं केंद्र में मंत्री रहकर देश की राजनीति की दिशा निर्धारण तक का कार्य करेगा। तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री, केंद्र में कृषि मंत्री रहने वाले चौ. भजनलाल के राजनीतिक कौशल को देखते हुए राजनीतिक पंडित आज भी उन्हें राजनीति के पीएचडी मानते हैं। ग्राम पंच, खंड समिति के अध्यक्ष से विधायक, मंत्री, सांसद, केन्द्रीय मंत्री एवं मुख्यमंत्री के गरिमापूर्ण पद पर रहते हुए वे आम आदमी से सीधे रूप से जुड़े रहने की विलक्षण भावना से भरे हुए थे। चौ. भजनलाल जी की कोई पारिवारिक राजनैतिक पृष्ठभूमि नहीं थी। वे एक साधारण कृषक परिवार से आए और राज्य और राष्ट्रीय क्षितिज पर छा गए। चौ. भजनलाल ने राजनीति के द्वारा जनता व प्रदेश के हितों को सर्वोपरि समझा। इसी कारण प्रदेशवासियों के सहयोग से पिताजी राजनीति के उस मुकाम पर पहुंचे जहां विरले ही आदमी पहुंचते हैं।

सबसे पहले २८ जून १९७९ को वे पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने तथा दूसरी बार २३ मई १९८२ से लेकर ५ जून १९८६ तक उन्होंने हरियाणा की बागडौर संभाली। तीसरी बार २४ जून १९९१ से लेकर ८ मई १९९६ तक वे मुख्यमंत्री रहे। करनाल और फरीदाबाद लोकसभा से भी सांसद रहे। १९७० में जब चौ. भजनलाल कृषि मंत्री बने तो इस दौरान वे लुधियाना के कृषि विश्वविद्यालय में एक बैठक में भाग लेने के लिए गए और वहीं उन्होंने निश्चय कर लिया कि हरियाणा में भी ऐसा ही कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किए जाने की मांग करेंगे और इस मांग पर फूल चढ़ाते हुए चौधरी चरण सिंह के नाम से हिसार में कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की गई जो आज पूरे एशिया में ख्याति प्राप्त है।

गरीब की वेदना से वह भली भांति परिचित थे। उन्होंने पिछड़े वर्गों के लिए पहले ५ प्रतिशत से बढ़ाकर १० प्रतिशत आरक्षण किया और उसके पश्चात उन्होंने ही हरियाणा में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करके तृतीय और चतुर्थ श्रेणी में कर्मचारियों के लिए २७ प्रतिशत आरक्षण किया। अगर चौधरी भजनलाल को हरियाणा का भागीरथ कहूं तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हरियाणा में महिलाओं को कोसो दूर से सिर पर पानी लाना पड़ता था। महिलाओं की पीड़ा को उन्होंने महसूस किया। उस समय हरियाणा के केवल १२७६ गांवों में नल से पानी पहुंचाने की व्यवस्था थी। उन्होंने प्रत्येक गांव में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था करवाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया, जो हरियाणा के इतिहास में सदैव ही दर्ज रहेगा।

उन्होंने ९ अप्रैल १९८२ को कपूरी गांव में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से इस नहर की खुदाई के कार्य के कार्य का शुभारंभ करवाया और १९८४ तक इसके निर्माण पर ५९३ करोड़ रुपए की राशि खर्च करके इसका ९८ प्रतिशत कार्य पूरा किया जा चुका था, वह उग्रवादियों की भेंट चढ़ गया और उसके पश्चात यह नहर राजनीति की भेंट चढ़ गई और हरियाणा के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के पश्चात भी इसका निर्माण कार्य आज तक पूरा नहीं हो पाया है। इतना ही नहीं उन्होंने विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं के पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक मंच पर एकत्रित करके यमुना जल समझोता किया, जो २० वर्षों से लटका हुआ था। इस समझौते के अन्तर्गत ही हथिनीकुंड बैराज के निर्माण का रास्ता प्रशस्त होने के साथ-साथ रेणुका और किशाऊ बांधों के निर्माण के लिए एक दिशा तय की गई।

चाहे एसवाईएल के निर्माण का मामला हो या फिर प्रदेश की राजधानी चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने का विरोध करना हो, हर एक अंतरराज्यीय मसले पर चौ. भजनलाल ने हरियाणा प्रदेश की वकालत पूरे दमदार तरीके से की। मानेसर में टेक्नीकल हब व औद्योगिक नगरी बन चुके गुडग़ांव का ब्लू प्रिंट तैयार करवाना, एक परिवार को एक रोजगार योजना लागू करना, पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करके २५ वर्षों के बाद दोबारा जिला परिषदों का गठन करना व महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था करना, ग्रामीण क्षेत्रों को दिन भर में १६ घंटे बिजली उपलब्ध करवाना, अपनी बेटी अपना धन योजना लागू करके कन्या के जन्म पर २५०० रुपये के इंदिरा विकास पत्र के बदले १८ वर्ष बाद २५००० रुपये का भुगतान किया जाना व लड़कियों के लिए स्नातक तक मुफ्त शिक्षा योजना लागू करना, मात्र पांच वर्ष के कार्यकाल में ४५००० नए ट्यूबवेलों को बिजली कनेक्शन देकर एक रिकॉर्ड स्थापित करना आदि उनके मुख्यमंत्री काल की उपलब्धियों की लम्बी फेहरिस्त है।

वर्ष १९९५ में आई भीषण बाढ़ के समय किसानों को ३००० रुपए से लेकर १०००० रुपए तक प्रति एकड़ व ट्यूबवैल के लिए ५० हजार रुपए का मुआवजा तुरंत प्रदान करके और बाढ़ पीडि़तों की मदद को जुटे रहकर उन्होंने राष्ट्रीय स्तर अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। इसके अलावा चौ. भजनलाल ने अपने कार्यकाल में न केवल समाज की ३६ बिरादरी के कल्याण के लिए अहम फैसले लिए बल्कि लोगों को मूलभूत सुविधाएं देने के लिए बड़े पैमाने पर आधारभूत ढांचे का विस्तार करवाया। तीन बार मुख्यमंत्री रहे चौ. भजनलाल ने अपने कार्यकाल में ऐसे अनेक जनकल्याणकारी कदम उठाए जो कालांतर में मील का पत्थर साबित हुए। जिनमें प्रदेश के पिछड़े वर्गों का आरक्षण १० प्रतिशत से बढ़ाकर २७ प्रतिशत करवाना, मेवात डेवलपमेंट बोर्ड का गठन करवाना तथा मेवात में आईआईटी इंस्टीट्यूट की स्थापना का प्रावधान करना, रोहतक में पंडित भगवत दयाल शर्मा मेडिकल कॉलेज को अपग्रेड करना व पंजाबी भाषा को हरियाणा में दूसरी भाषा का दर्जा दिलाने सहित अनेक ऐसी नीतियां लागू की जो आगे चलकर हरियाणा के विकास में मील का पत्थर साबित हुई।

पिताजी की पहचान नम्र स्वभाव के राजनेता के रूप में की जाती रही, मगर वक्त पडऩे पर वे सख्त प्रशासक भी थे। इसका एक उदाहरण बताता हूँ। जब १९८२ में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एशियाड-८२ भारत में करवाने के लिए सभी प्रदेशों के सामने प्रस्ताव रखा तो उस समय पंजाब के हालात नाजुक थे। आतंकवादियों ने इंदिरा गांधी को धमकी दी थी कि दिल्ली में एशियाड-८२ किसी भी कीमत पर नहीं होने देंगे। हरियाणा के रास्ते से ही पंजाब का प्रवेश दिल्ली में होता है। उस समय इंदिरा गांधी ने चौ. भजनलाल को बुलाकर इस समस्या का समाधान पूछा तो पिता जी ने उनको भरोसा दिलाया कि आप चिन्ता ना कीजिए आतंकवादियों का दिल्ली में घुसना तो दूर की बात है, ऐसी व्यवस्था कर दूंगा कि आपकी आज्ञा के बिना कोई परिंदा भी पर नहीं मारेगा और पिता जी ने ऐसा कर दिखाया। चौ. भजनलाल ने जीवन में जिन उच्च उपलब्धियों को प्राप्त किया वह बड़ी थी, परंतु उनके व्यक्तित्व में उससे भी बड़ी बात यह थी कि वे सफलता के सितारों में विचरण करते हुए भी धरातल को कभी नहीं भूलते थे। उनकी यही विशेषता उन्हें जननायक की श्रेणी में स्थापित करती है। उनके व्यक्तित्व का हर पहलू हमें यही शिक्षा देता है कि अगर व्यक्ति सच्ची लग्न, कठोर श्रम, दृढ़ निश्चय, उच्च साहस, ईमानदारी व पूर्ण समर्पण के साथ आगे बढ़े तो कोई मंजिल ऐसी नहीं है जो चलकर उसके सामने न आए।

न केवल राजनीतिक बल्कि, सामाजिक स्तर पर भी उन्होंने अपने कार्यों से विलक्षण छाप छोड़ी और राष्ट्रीय स्तर पर बिश्नोई समाज को नई पहचान दिलाई। बिश्नोई समाज के उत्थान की दिशा में किए गए उनके कार्यों को देखते हुए उनको अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा ने समाज का सर्वोच्च सम्मान ‘बिश्नोई रत्नÓ की उपाधि से अलंकृत किया था। चौ. भजनलाल जैसे विरले इंसान सदियों में पैदा हो हैं और उनकी बराबरी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मेरे लिए हाल ही में गौरवमयी व भावकपूर्ण क्षण रहा जब मेरे मना करने के बावजूद अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा ने मुझे पिताजी की तरह ही ‘बिश्नोई रत्नÓ का सम्मान मुझे दिया। यह पिताजी का आशीर्वाद और उनके दिए संस्कार ही हैं कि अभी तक मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों से मैं सफलतापूर्वक बाहर निकलने में कामयाब हो पाया।

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