धर्मपाल वर्मा

चंडीगढ़ l कहते हैं कि व्यक्ति को अपने स्वभाव से समझौता नहीं करना चाहिए परंतु राजनीति में हालात के हिसाब से समझौते भी करने पड़ जाते हैं l सवाल यह है कि क्या आज की विपरीत परिस्थितियों में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल मजबूत इच्छाशक्ति जिनकी पहचान है क्या जेजेपी विशेषकर उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला द्वारा बनाए जा रहे ताजा दबाव के आगे न चाहते हुए भी घुटने टेक देंगे ? 

आज हालात यह आ खड़े हुए हैं कि किसानों द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन के चलते उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने पार्टी के विधायकों तथा नेताओं की अपेक्षा के दृष्टिगत सरकार पर यह दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि उनके एक याा दो विधायक को मंत्री बनाया जाए कुछ को बोर्ड और निगमों के चेयरमैन l सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री अभी इस समायोजन के पक्ष में नहीं है और दुष्यंत चौटाला अपना पक्ष रखने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जो उनके पैरोकार भी माने जाते हैं के पास दिल्ली पहुंच गए और श्री शाह ने मुख्यमंत्री को भी दिल्ली तलब कर लिया lयह भी सूचना है कि गृह मंत्री ने अलग-अलग दोनों के पक्ष जाने और सरकार के कामकाज की समीक्षा भी की l

अब असल बात पर आते हैं l सूत्र बताते हैं कि जहां तक मुख्यमंत्री का सवाल है उन्होंने उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की उपरोक्त मांगों को  खारिज कर दिया और इस बात के लिए मन बना लिया की जरूरत पड़ी तो वे निर्दलीय विधायकों के साथ गोपाल कांडा जैसे पूर्व मंत्री को साथ लेकर सरकार  चलाना बेहतर समझेंगे l

इस सिलसिले में मुख्यमंत्री ने गोपाल कांडा से मुलाकात भी कीl रोचक बात यह भी है कि इस सूचना के बाद कथित तौर पर दुष्यंत चौटाला ने भी उन्हें काउंटर करने के लिए मतलब दबाव बनाने के लिए अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सरदार निशान सिंह को पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और शिरोमणि अकाली दल के नेता  प्रकाश सिंह बादल के पास भेज दिया  l

नई प्रगति यह है कि दुष्यंत चौटाला ने मुख्यमंत्री का रुख देखकर दिल्ली की राह पकड़ी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के पास पहुंच गए  l उधर गृह मंत्री ने मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल को भी दिल्ली बुला लिया l उन्होंने दोनों की बात अलग अलग सुनी और हालात जाने lअभी इस मामले में कोई नीतिगत फैसला नहीं लिया गया है लेकिन पता चला है कि अमित शाह दुष्यंत के पक्ष मैं कोई बात कर सकते हैं l

यह भी जानकारी मिली है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल अब दुष्यंत चौटाला को आगे सरकार में सहयोगी रखने के हक में नहीं है l उनका तर्क है कि दुष्यंत चौटाला जाटों में भी अपनी चमक खो चुके हैं l ऐसे में उनकी असफलता और अलोकप्रियता को भाजपा क्यों झेले l

ऐसे में सवाल यह है कि मुख्यमंत्री अपनी चलाएंगे या गृहमंत्री एक बार फिर उन पर दबाव बनाते हुए दुष्यंत चौटाला के बचाव में आकर खड़े होंगे lदुष्यंत अब बार-बार यही बात करते आ रहे हैं कि उनके विधायकों और प्रथम पंक्ति के कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ती जा रही है l यदि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने अपने मुख्यमंत्री की सुनने की बजाय एक बार फिर कोई तुगलकी फरमान जारी कर दिया तो भारतीय जनता पार्टी उसके कार्यकर्ता ही नहीं हरियाणा की जनता इसका समर्थन नहीं करेगी l

यह बात भी शीशे की तरह साफ है कि जब गत वर्ष दिवाली के दिन हरियाणा मंत्रिमंडल का गठन हुआ तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल जेजेपी के समर्थन से सरकार बनाने के पक्ष में नहीं थे l वे चाहते थे कि मूल रूप से पार्टी काडर से जुड़े निर्दलीय विधायक और कुछ अन्य विधायकों को लेकर सरकार बनाई जाए परंतु आरंभ से जे जे पी के को संरक्षण देते आ रहे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एन मौके पर यह फैसला ले लिया कि जे जे पी सरकार में शामिल होगी और दुष्यंत चौटाला को उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा  l

जब यह फैसला हुआ तो हरियाणा में भाजपा के कार्यकर्ताओं प्रशंसकों और समर्थकों के फ्यूज उड़ गए थे l

आपको बता दें कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल की छवि मजबूत इच्छाशक्ति वाले ऐसे नेता की रही है जो अपना काम अपनी समझ से करने में विश्वास रखते हैं और विरोधी को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते l

2014 में बनी सरकार का 1 वर्ष होते होते भारतीय जनता पार्टी के 19 विधायक बागी हो गए थे l उन्होंने मुख्यमंत्री की कार्यशैली की आलोचना करनी शुरू कर दी थी l एक समय इसे गंभीर संकट मान लिया गया था और इन बागियों ने यह प्रचार शुरू कर दिया था कि वे मुख्यमंत्री को हटाकर  ही दम लेंगे परंतु मुख्यमंत्री ने एक बार भी इन विधायकों से बात नहीं की और आज स्थिति यह है कि इनमें से 18 पूर्व विधायक आज अपने घर बैठे हैं या तो उनकी टिकट काट दी गई या फिर वह चुनाव हार गए l इनमें से मात्र एक को दोबारा विधानसभा मैं आने का अवसर प्राप्त हुआ और वह भी एक महिला हैl

इसी तरह मौजूदा सरकार में विधानसभा के बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री ने पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर के खिलाफ जांच कराने की मांग कर रहे निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू को जो झटका दिया वह भी काबिले गौर है l उस समय श्री कुंडू जब मुख्यमंत्री से बहस करने लगे और श्री मनीष ग्रोवर को लेकर सवाल जवाब करने लगे तो मुख्यमंत्री ने उन्हें जोर का झटका धीरे से कुछ इस अंदाज में दिया कि श्री कुंडू ही नहीं उनका समर्थन करते दिख रहे कांग्रेस के विधायक भी स्तब्ध रह गए थे l तैश में आए कुंडू ने जब मुख्यमंत्री से पूछा कि क्या उन्होंने ग्रोवर को क्लीन चिट दे दी है तो मुख्यमंत्री ने तपाक से जवाब दिया हां दे  दी है l मुख्यमंत्री ने उस समय सदन को दो  संदेश प्रत्यक्ष रूप में दे दिए यह कि वे अपने सहयोगी समर्थकों के हितों की रक्षा करना जानते हैं दूसरा यह कि कुंडू की तरह कोई और मुख्यमंत्री को इस तरह चुनौती देने की जुर्रत न करें l इस प्रकरण के बाद ऐसा लगता है कि कुंडू बैकफुट पर आ गए हैं l

जहां तक बरोदा उपचुनाव का सवाल है मुख्यमंत्री अच्छी तरह से जानते हैं कि जेजेपी के नेता भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को उस तरह से मदद नहीं करेंगे जैसा वे दावा कर रहे हैं जे जे पी के नेता नहीं चाहेंगे कि बरोदा में भारतीय जनता पार्टी का विधायक बने l मुख्यमंत्री को यह भी पता है कि बरोदा में जेजेपी समर्थक वोटर भारतीय जनता पार्टी को वोट नहीं डालेंगे कारण यह है कि इस क्षेत्र में स्वर्गीय चौधरी देवी लाल की विचारधारा से प्रेरित जाट मतदाता भाजपा और कांग्रेस के मूल विरोधी है वह किसी भी कीमत पर इन दोनों दलों को वोट नहीं देंगे परंतु इस चुनाव में बरोदा में उसके पास इनेलो के पक्ष में मतदान करने का विकल्प मौजूद रहेगा और इस समर्थन से आईएनएलडी का मजबूत होना भी भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के काम आएगा  l

ऐसे में जेजेपी  के नेता मुख्यमंत्री मनोहर लाल से नाराज होकर दूर होने की चेष्टा करेंगे तो इससे भाजपा को कई लाभ होंगे l परंतु अब भी अमित शाह बीजेपी के पक्षधर नजर आ रहे हैं l जानकार  यह मानकर चल रहे हैं कि आज की परिस्थितियों को देखते हुए भाजपा ने या मुख्यमंत्री ने जे जे पी के नेताओं के समक्ष समर्पण कर दिया तो पार्टी को इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ जाएगा   l

बताते हैं कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल  अब यह चाहते हैं कि उनका  दुष्यंत चौटाला एंड पार्टी से पिंड छूट जाए और  वे अपने तरीके से फ्री हैंड होकर काम करने की स्थिति में आ जाएं  निर्दलीयों को साथ लेकर सरकार चलाएं l यहां यह जानना जरूरी है कि एक तरफ जहां अमित शाह दुष्यंत चौटाला और जेजेपी को सपोर्ट करते हैं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री मनोहर लाल के खुल्लम-खुल्ला पक्षधर हैं lसंभव है यह मसला प्रधानमंत्री के पास भी विचार के लिए चला जाए l यदि ऐसा हुआ तो लोग फिर से एक बार कहेंगे की मनोहर लाल भाग्य के बड़े धनी हैं l वे जिस तरह अप्रत्याशित तरीके से अचानक मुख्यमंत्री बने और मंत्रिमंडल में मौजूद वरिष्ठ नेताओं के होते हुए सफलतापूर्वक सरकार चला गए ,दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और पिछले चुनाव में उनके सारे  प्रतिद्वंदी और विरोधी चुनाव हार गए उससे लगता है की मनोहर लाल भाग्य के भी धनी है और यदि वह अब हाईकमान से या प्रधानमंत्री से अपनी बात मनवाने में कामयाब हुए तो उनके सारे विरोधी बिलों में घुस जाएंगे परंतु दुष्यंत चौटाला एक बार फिर अपने मकसद में कामयाब हो गए तो फिर इसका खामियाजा भारतीय जनता पार्टी को हॉल में ही भुगतना पड़ जाएगा l

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