-कमलेश भारतीय आखिरकार अन्नदाता यानी किसान देवता के लिए आंदोलन ,, धरने व प्रदर्शन शुरू हो गये । पिपली में लाठीचार्ज होने के बाद से यह मुद्दा सुलगता चला गया और संसद में तीन अध्यादेशों के पारित होने के बाद दिल्ली यानी देश की राजधानी तक पहुंच गया । जिसकी मेहनत के बल पर हम सब रोटी खाते हैं , वही हमारा अन्नदाता जब अपने लिए आवाज़ उठाना चाहता है तब लाठीचार्ज की सौगात मिलती है । क्यों ? मुंशी प्रेमचंद ने गोदान उपन्यास में होरी महतो की एक छोटी सी इच्छा पर उपन्यास खड़ा कर दिया , इसीलिए नाम रखा गोदान । इच्छा क्या कि होरी महतो के घर के बाहर एक बढ़िया नस्ल की गाय बंधी हो और जब उससे कोई पूछे कि गाय किसकी है तो वह छाती ठोक कर , सिर ऊंचा कर कहे कि होरी महतो की । पर उपन्यास के अंत में जब उसकी पत्नी धनिया को पंडित जी गोदान के लिए कहते हैं तो वह दक्षिणा मांगता है और धनिया अपनी मुट्ठी के पैसे सौंप कर कहती है -यही इनका गोदान है । कितना मार्मिक जीवन और वर्णन । इसीलिए गोदान देश के बाहर भी अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ और मुंशी प्रेमचंद की यह कालजयी रचना है । आज कितने किसान हैं जिनकी अगली पीढ़ी किसानी के काम में कोई गौरव महसूस करती है ? नयी पीढ़ी तो शहरों की ओर पलायन करती है और गांव खाली होते जा रहे हैं । किसान फसल की बुआई से लेकर कटाई तक असुरक्षित रहता है । गेहूं की कटाई के दिनों में बेमौसमी बारिश कब उसकी मेहनत पर पानी फेर जाये , नहीं जानता । फिर सरकारी एजेंसियां गेहूं या कोई भी फसल खरीदने में कितने नखरे करती हैं । बैलगाड़ी का जमाना काफी हद तक लद गया लेकिन छोटे मोटे काम तो बैलगाड़ियों पर ही किये जाते हैं और यह ऐसा रोज़गार है जिसमें किसान का पूरा परिवार खटता है । बच्चे, पत्नी सब के सब । इसीलिए मेरे एक मित्र ने बहुत शानदार गीत लिखा था :छेती छेती पक नी कनकेधीयां दा ब्याह रखिया ।यानी किसान के सारे सपने फसल से जुड़े होते है । चाहे बेटी का ब्याह ही क्यों न हो या बेटे के एडमिशन की बात हो । इसीलिए ब्याह की तिथियाँ गेहूं की फसल बेचने के बाद ही रखी जाती हैं । अपने पिता के निधन के बाद अपने गांव खेती करवाने पच्चीस साल हर शाम जाता था और किसानों की बहाली को बड़े करीब से देखा और कुछ समझा । व्यापारी ही किसान का बैंक होता और उनकी बहियां ही बैंक अकाउंट । कितने अंगूठे कर्ज के लिए इन बहियों में छापता है , कोई नहीं जानता । बीज , खाद पाने के लिए कितनी मारा-मारी करता है । सब देखा इन आंखों से । हमारी अनाज मंडी तब हिमाचल तक रिश्ता जोड़े हुए थी । गढशंकर के आगे पहाड़ दिखने लगते थे और इसीलिए हमारे शहर के आढ़तियों ने बिलासपुर और ऊना में अपनी आढ़त फैलाई । खैर । किसान की बदहाली का जिम्मेदार कौन ? कोई तय नहीं कर पाया । पहले लाला लोग और फिर बैंक और,सबसे ऊपर राजनीतिक लोग । लालाओं के किस्से गोदान में हैं और बैंक के कानून और शर्तें कैसे पूरी होती हैं , सब समझते हैं । रह गये हमारे नेता जो नाम किसान का लेते हैं लेकिन अपनी राजनीति की फिक्र ज्यादा करते हैं अब भी राजनीति ज्यादा हो रही है । लाठीचार्ज के विरोध में सड़क पर धरने शुरू और अब हरियाणा के जी टी रोड पर यातायात रोकेंगे । गृह मंत्री अनिल विज अपील कर रहे हैं कि ऐसा न करो । यातायात रोकना बहुत सही हल तो नहीं । यह एक दिन का मामला भी नहीं । गंभीर रूप से सोचने और मंथन करने की जरूरत है । पक्ष हो या विपक्ष दोनों को । हे अन्नदाता कोई तो सुने तुम्हारी पुकार ,,,, Post navigation रोङवेज कर्मचारी राम भरोसे। दोदवा कृषि मंत्री जे.पी. दलाल ने किया राज्यसभा में पारित कृषि बिलों का स्वागत