भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

कृषि अध्यादेश भाजपा के गले की फांस बनते नजर आ रहे हैं। पहले तो सरकार में विवादों की बात ढकी-छुपी थी लेकिन अब वह मुखर होकर सामने आ रही है। आज फिर दोबारा गृहमंत्री अनिल विज ने कहा कि वहां लाठी चार्ज हुआ ही नहीं तो जांच कैसी और इधर सरकार में इनके साथी जजपा के प्रदेश अध्यक्ष सरकार निशान सिंह और इनसो के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिग्विजय चौटाला चीख-चीखकर कह रहे हैं कि लाठी चार्ज की जांच होनी चाहिए।

इधर मुख्यमंत्री जो अपने पिछले कार्यकाल में खूब दबंग थे और हर मुद्दे पर उनके सिवा कोई बोलने वाला नहीं होता था, इस मुद्दे पर मौन लगाए बैठे हैं या यह उनकी मजबूरी है या फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष की ओर से निर्देश हैं कि आप शांत रहिए, मामला प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ संभाल लेंगे। जो भी है मुख्यमंत्री की चुप्पी जनता में चर्चा का विषय अवश्य बनी हुई है। चर्चाएं तो यहां तक हैं कि हाइकमान इन्हें बदलने की सोच तो नहीं रखता।

आज भी भाजपा की ओर से कृषि अध्यादेशों के समर्थन में ब्यान आते रहे। चाहे कृषि मंत्री हों, चाहे गृहमंत्री हों या फिर अन्य मंत्री लेकिन इन ब्यानों के साथ-साथ किसान भी विरोध जताते रहे और पलड़ा किसानों का ही भारी नजर आया। ऐसे में कहा जा सकता है कि मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की।

किसानों का समर्थन देख किसान नेता गुरनाम सिंह चढूणी ने आज हिसार में 20 तारीख को रोड़ जाम व 25 को देश बंद का ऐलान कर दिया। अब यह ऐलान कुछ तो सोच-समझकर किया होगा और इसका अर्थ यही समझा जाए कि उन्हें समर्थन मिल रहा है। इधर शिरोमणी अकाली दल की हरसिमरत कौर के मंत्री पद के इस्तीफे से भी किसानों के उत्साह में वृद्धि हुई है और दूसरी ओर हरियाणा सरकार को इससे धक्का लगा है, क्योंकि इससे यह सिद्ध हुआ कि मोदी मंत्री मंडल के सभी लोग इन अध्यादेशों से प्रसन्न नहीं हैं।

आज आढ़तियों ने भी किसानों के समर्थन में हड़ताल आरंभ कर दी है। इसके साथ समाचार मिल रहे हैं कि श्रमिक नेता भी इनको अपना समर्थन देने की बात कर रहे हैं। प्रश्न यह है कि भाजपा जो सत्ता में आई थी और जो भाजपा का वोट बैंक कहा जाता है वह व्यापारी और युवा वर्ग का होता है और इस समय भाजपा से व्यापारी भी रुष्ट नजर आ रहा है। युवाओं ने तो मोदी के जन्मदिन पर बेरोजगारी दिवस मनाकर अपना संदेश दे ही दिया है और श्रमिक संगठन चाहे उसमें कोरोना वॉरियर्स ही क्यों न हों, वे भी सरकार के समर्थन में तो नजर नहीं आ रहे। समय-समय पर आशा वर्कर हों, पीटीआई हों, बिजली कर्मी हों, सफाईकर्मी हों, रोड़वेज कर्मी हों, ठेकेरत मजदूर हों आदि सभी वर्तमान में आंदोलन की राह पर चल रहे हैं। ऐसे में सरकार के लिए मुसीबतें तो बढऩी तय दिखाई दे रही हैं।

अब सरकार पर नजर डालते हैं, सरकार में मुख्यमंत्री मौन हैं ही, गृहमंत्री ने अभी कल ब्यान देकर कि सीआइडी पर पुलिस की निर्भरता खत्म कर दी जाए, ने पुरानी बात याद दिला दी, जब मुख्यमंत्री ने गृहमंत्री से सीआइडी विभाग अपने पास लिया था। वैसे भी चर्चाकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री और अनिल विज की तो तबसे ही विचारों में भिन्नता चलती रही है, जब मुख्यमंत्री ने भाजपा की ही सरकार गिराई थी। अत: यह कब क्या गुल खिला जाए, कुछ कह नहीं सकते।
इधर गृहमंत्री ने आज अपने ब्यानों में शराब घोटाले का भी जिक्र छेड़ दिया और आबकारी विभाग के मंत्री दुष्यंत चौटाला हैं। अत: यह माना जा सकता है कि किसी प्रकार उन्होंने उपमुख्यमंत्री पर तंज किया है कि सम्मिलित कोई भी हो, जांच में बचेगा नहीं।

इधर नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ इस समय फुल फॉर्म में नजर आ रहे हैं। शायद मुख्यमंत्री की चुप्पी का कारण भी वही हो सकते हैं। आज वह किसानों के विरूद्ध बिल को भी किसान हितैषी बता रहे हैं, ऐसे में उनके कार्यकाल में किसानों को नलकूप के कनैक्शन न मिल, उनकी भी चर्चा हो रही है और कांग्रेस काल में किसानों के समर्थन में कपड़े निकालकर प्रदर्शन करने की भी चर्चा हो रही है। प्रश्न यह है कि क्या प्रदेश अध्यक्ष का इतना प्रभाव है कि वह अपने प्रभाव से किसानों को मना लेंगे? देखने में तो यह आ रहा है कि भाजपा के अनेक नेता ऐसे समय में लगता है कि आइसोलेशन में चले गए हैं।

इसी समय में विपक्ष हमलावर हो ही रहा है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा आज राज्यपाल से मिल सत्र बुलाने की मांग कर आए तो उनके पुत्र चैलेंज देकर कह रहे हैं कि यह किसानों के विरूद्ध है और अभय चौटाला वह तो अपने परिचित अंदाज में दुष्यंत चौटाला का इस्तीफा मांग ही रहे हैं। दूसरी ओर दुष्यंत चौटाला का जनाधार घटा ही है। ऐसे में आने वाला समय क्या करवट लेगा इसका कुछ-कुछ अनुमान लग रहा है। भाजपा-जजपा सरकार की मुसीबतें आरंभ।

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