ट्रायल के बाद भी नही चढ़ी सिरे ई-टिकटिंग प्रणाली

रमेश गोयत

चंडीगढ़, 10 सितम्बर। हरियाणा सरकार ने ट्रांसपोर्ट सिस्टम को और बेहतर बनाने के लिए परिवहन विभाग बसों के लिए नई टैक्नोलॉजी से बसों में ई-टिकटिंग प्रणाली शुरू करने की योजना बनाई थी। इसके तहत बस अड्डों पर स्थित टिकट कांउटरों पर स्वाइप मशीनें लगाई जानी थी। मगर सरकार की यह योजना केवल कागजों में दब कर रह गई है। सरकार ने बस अड्डों पर टिकट के लिए लाइन में खड़े होने वाले यात्रियों तथा छुट्टे पैसों के विवाद को सुलझाने के लिए स्वाइप मशीनें लगाने की तैयारी शुरू की थी।

पूर्व की हुड्डा सरकार के कार्यकाल में फरीदाबाद व गुरूग्राम से ई-टिकटिंग प्रणाली की योजना शुरू होनी थी। जिसका ट्रायल भी शुरू किया गया था लेकिन विवादों के चलते यह योजना आज तक सिरे नही चढ़ सकी थी। हरियाणा रोडवेज की बसों में हाथ से आॅपरेट होने वाली इलेक्ट्रॉनिक टिकटिंग मशीन से जहा यात्रियो व रोडवेज को फायदा होना था, वही कोरोना काल में रोडवेज के परिचालकों को भी सुरक्षा के लिहाज से फायदा था। प्राइवेट समिति की बसों में भी ई-टिकटिंग मशीन का प्रयोग हो रहा है, तो सरकार क्यों अपनी साख नही भुना पा रही। पडोसी राज्य राजस्थान, दिल्ली व चंडीगढ़ में भी बसों में ई-टिकटिंग मशीने है, मगर हरियाणा में कई सालों से कागजों में ही ई-टिकटिंग मशीन चल रही है। रोडवेज के परिचालको के हाथ में कब आएगी, इस बात का अंदाजा नही लगाया जा सकता।

हरियाणा रोडवेज के परिचालक रामसिंह, शमशेर, कुलदीप शर्मा व सुरेन्द्र ने बताया कि ई-टिकटिंग मशीन से यात्रियों व रोडवेज को फायदा है। मशीन परिचालकों की महत्वकांक्षी जरूरत है। मशीन न होने के कारण चैंिकग स्टाफ के सामने परिचालकों को बिना वजह कई बार बली का बकरा बनना पड़ता है। यदि सवारी टिकट गुम करे तो भी चेकिंग स्टाफ की नजर में परिचालक दोषपूर्ण हो जाता है। दूसरी तरफ यदि मशीन हो तो सवारी की गणना से गुम टिकट का पता लग जाता है जिससे परिचालक के माथे चोर होने दोष नही लगता। मशीनें आने से परिचालक मानसिक परेशानी से बच जाता है जैसे कि टिकट बॉक्स में कई प्रकार की टिकटें होती है जैसे कि अलग अलग स्टेट वाइज, टोल टैक्स और नॉन टैक्स की। जिससे कि परिचालक को गाड़ी क्लियर करने में काफी समय लगता है और अगला स्टॉप जल्दी आ जाता है और चेकिंग स्टाफ गाड़ी क्लियर न होने के नाम पर परिचालक की गलत रिपोर्ट बना देता है जिससे कि परिचालक को निलम्बन का शिकार होना पड़ता है। इससे परिचालक को आर्थिक हानि के साथ साथ मानसिक परेशानी भी होती है।

ये वो दोष है जो कि उसके द्वारा किया ही नही गया। दूसरी तरफ बस की रोटेशन पूरी होने पर जो परिचालक द्वारा कैश जमा करवाना होता है उस प्रक्रिया को टिकट बॉक्स या सरल भाषा मे बक्सा बनवाना कहा जाता है। इस बॉक्स बनवाने की क्रिया में भिन्न भिन्न प्रकार की टिकटें होने के कारण बहुत समय लगता है जिससे की वही तो परिचालक के खाना लेने का समय होता है और वही बुकिंग ब्रांच में टिकटें जमा और नई टिकटें लेने व कैश जमा करवाने में समय बर्बाद होता है जिससे उस दिन परिचालक भूखे पेट ही काम करना पड़ता है। कराधान विभाग भी समय समय पर परिचालकों की टिकट जांचता रहता है।

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