-कमलेश भारतीय देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस में अंदर ही अंदर घमासान मचा हुआ है । चाहे श्रीमती सोनिया गांधी को छह माह के लिए और अंतरिम अध्यक्ष बना कर फिलहाल इसे ठंडा करने की कोशिश की गयी हो । पर देखा जाये यह ठ॔डा हुआ नहीं । आग ज्यों की त्यों सुलग रही है । बेशक महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कहा था कि कांग्रेस ने अपनी स्थापना का उद्देश्य पूरा कर लिया है । अब इसको भंग कर दिया जाए । पर सत्ता सुख भोगने की चाह में किसी ने भी महात्मा गांधी की यह बात नहीं सुनी । इस तरह कांग्रेस ने सन् 1967 तक एकछत्र राज किया । दिल्ली से जिसकी टिकट पर मुहर लग जाती थी , वह जीत जाता था । पर सन् 1967 से मोहभंग हो जाने के बाद संयुक्त सरकारों का प्रचलन शुरू हुआ और राज्यपालों के सहारे विरोधी सरकारें गिराने का खेल भी शुरू हो गया । अब भाजपा उससे भी आगे निकल गयी है । खरीद फरोख्त के सहारे विधायकों से पाला बदलवाने में माहिर । यह अलग बात है कि राजस्थान में दांव सही नहीं पड़ा । खैर । कांग्रेस अब राज्यों में संयुक्त सरकारों में दोयम दर्जे की स्थिति पर पहुंच गयी है । आप याद कीजिए कि यूपी के चुनाव में मायावती और अखिलेश ने संयुक्त मोर्चा बनाया और कांग्रेस को शामिल करने की जरूरत तक नहीं समझी । दिल्ली में केजरीवाल ने कोशिश की लेकिन कांग्रेस की नासमझी देख अकेले ही चुनाव लड़े और विजयी रहे । कांग्रेस दोनों राज्यों में देखती रह गयी महाराष्ट्र में शरद पवार ने न समझाया होता तो वहां भी सत्ता का स्वाद न चख पाती । बिहार में विधानसभा चुनाव आपने वाले हैं लेकिन कांग्रेस अपनी ही उलझनों में उलझी है । वहां भी कांग्रेस के हाथ को किसी का साथ नहीं मिल रहा । कौन दांव लगाये ऐसी पार्टी पर ? पंजाब में भी पार्टी अंदरूनी विवाद में फंसी हुई है । जम्मू कश्मीर में भी पहली पसंद नहीं रही । फिलहाल कांग्रेस अंदरूनी कलह में व्यस्त है । पस्त है । अपने ही अपनों को पछाड़ने में लगे हैं । अब गुलाम नबी आजाद चेतावनी दे रहे हैं कि यदि अध्यक्ष नहीं चुना तो कांग्रेस को कम से कम पचास वर्ष तक विपक्ष में बैठने की तैयारी कर लेनी चाहिए । शशि थरूर को गेस्ट आर्टिस्ट तक करार दिया है । गुलाम नबी आजाद संभवतः पुरानी पीढ़ी को रिप्रेजेंट कर रहे हैं और राहुल गांधी उनकी पसंद नहीं । सोनिया गांधी की कोशिश फिर से राहुल को कमान सौंपने की । तालमेल कैसे बने? राहुल का करिश्मा न केवल देश बल्कि पार्टी के अंदर ही नहीं रहा । प्रियंका गांधी को सोनिया पुत्र मोह में फंसी आगे नहीं बढ़ने दे रही । क्या होगा रे ? कांग्रेस का पतन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । देश में किसी मुद्दे को उठा नहीं रही । विपक्ष की भूमिका कौन निभायेगा ? यूपी में मायावती लगभग भाजपा की बोली बोलने लगी हैं । ममता बनर्जी देश भर में स्वीकार्य नहीं । कोई कद्दावर नेता आगे नहीं दिख रहा । शरद पवार की पार्टी भी अब सीमित होती जा रही है । हां , महाराष्ट्र में भाजपा को जरूर पटकनी देने में सफल रहे । जैसे राजस्थान में अशोक गहलोत ने भाजपा का षडयंत्र विफल कर दिखाया ।अभी वक्त है संभल जाओनहीं तो तख्त से दूर ही रहोगे । Post navigation बंद दरवाजों की बजाय माहवारी पर खुलकर चर्चा की जरूरत है. MHA ने अनलॉक 4 की गाइडलाइन जारी की