भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिकगत 26 अगस्त को आयोजित हरियाणा विधानसभा का सत्र शायद हरियाणा के इतिहास का सबसे छोटा सत्र होगा। इस सत्र को बुलाया भी तब गया जब बाध्यता हो गई नियमानुसार बुलाने की। पहले तीन दिन के सत्र की बात की गई फिर दो दिन का हुआ और सत्र की परिणिति चंद घंटों में ही हो गई। कोरोना से मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष तो संक्रमित हैं। इस कारण सदन के नेता की जिम्मेदारी उप मुख्यमंत्री और अध्यक्ष की जिम्मेदारी उपाध्यक्ष ने निभाई। कहने को तो यह प्रचारित किया गया कि सदन बहुत अच्छी तरह चला लेकिन वास्तविकता में चंद घंटों में ही विपक्ष सदन का बहिष्कार बार-बार करता रहा। सदन में भाषा की मर्यादाएं भी टूटीं, छोटे-बड़े का भेद भी भूले। उपमुख्यमंत्री उनके परदादा के सामने चुनाव लड़े भूपेंद्र सिंह हुड्डा को जिस शैली में बात कर रहे थे, उससे सभ्यता में तो कहीं नहीं कहा जाएगा। विधानसभा सत्र इसलिए बुलाया जाता है कि विपक्ष जनता की समस्याएं सरकार के सामने रखे, उन पर चर्चा हो और उन पर बहस हो तथा उनका समाधान निकालने का प्रयास हो।यदि हम यह कहें कि विधानसभा का गठन ही जनता के हितार्थ हुआ है तो अनुचित तो नहीं होगा। लेकिन इस सत्र में जनता के हित की तो कोई बात हुई नहीं। इतने कम समय में 12 विधेयक पारित कर दिए। इसे सरकार अपनी उपलब्धि बता रही है लेकिन जनता में चर्चा है कि इतने समय में 12 विधेयक तो पढ़े भी नहीं जा सकते तो उन पर चर्चा होने का कोई प्रश्न ही नहीं। अर्थात सरकार ने यह पहले ही तय कर रखा था कि ये विधेयक पारित करने हैं। वर्तमान में प्रदेश की जनता सबसे अधिक कोरोना से पीडि़त है। प्रदेश की जनता जानना चाहती है कि कोरोना कितना घातक है, कितने लोगों के टैस्ट हुए हैं, टैस्ट कितने प्रकार के हो रहे हैं और सरकार की आगामी योजना क्या है? परंतु सदन में सत्ता पक्ष ने और न ही विपक्ष में इसकी कोई चर्चा की। इससे जनता को यह लग रहा है कि यह सदन केवल राजनीति करने के लिए रह गया है या जनता की भी सोचनी है। वर्तमान में इस सदन के लिए बड़ी जिज्ञासा थी कि पिछले दिनों से राज्य में सरकार के विरोध और घोटालों की चर्चा रही है, जिनमें प्रमुख रजिस्ट्री घोटाला, शराब घोटाला, धान घोटाला प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त भी भ्रष्टाचार की अनेक चर्चाएं हैं और विपक्षी दल तथा जनता यह मानकर चल रही थी कि सदन की कार्यवाही में उन सभी का उत्तर मिलेगा और कुछ सच्चाई जनता के सामने आएगी। ज्ञात होगा कि जीरो टोलरेंस का दावा करने वाली सरकार उपरोक्त घोटालों के गुनाहगारों को सजा देने के लिए कितनी संकल्पशील है। इसके अतिरिक्त लंबे समय से कोविड वॉरियर आशा वर्कर धरने पर बैठी हैं, हरियाणा रोडवेज वाले निजीकरण को लेकर संघर्ष की राह पर हैं, सफाईकर्मी भी अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं, पीटीआइ टीचरों का मसला सरकार के गले की फांस बनता जा रहा है, सरकार इन सभी बातों पर कुछ बोलती तो इन कर्मचारियों को भी ज्ञात होता कि सरकार उनके बारे में आखिर सोच क्या रही है। इन सभी बातों से प्रश्न यही उठता है कि प्रजातंत्र में प्रजा कहां खड़ी है? आज सबसे बड़ी समस्या कोरोना है और कोरोना के बारे में ही जनता अंधेरे में है। Post navigation गुरुवार को कुल केस का 20 प्रतिशत देहात में केस दर्ज सांसद कृष्णपाल गुर्जर की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव, कुमारी शैलजा होम क्वारंटाइन