स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सम्मान समारोह. फील्ड के कोरोना योद्धाओं की घोर अनदेखी फतेह सिंह उजालापटौदी । सम्मान के लिए ईमानदारी से और निष्ठा से काम करने वाले कभी सम्मान की लालसा नहीं रखते, यही इनके काम और समर्पण की पहचान है । लेकिन सवाल वहां खड़ा होता है जो लोग अथवा जो कमेटी सम्मानित किए जाने वाले अथवा सम्मान दिए जाने वालों का चयन करती है कि आखिर उसका आधार क्या और मापदंड कौन से तय किए जाते हैं कि किस को किस मौके पर सम्मान देकर प्रोत्साहित करना है ? ऐसा ही कुछ नजारा 1 दिन पहले 74 वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के मौके पर पटौदी के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय परिसर में संपन्न समारोह के दौरान देखने को मिला । समारोह के मुख्य अतिथि पूर्व सेना अधिकारी पटौदी के एसडीएम में अपने संबोधन में विशेष रुप से कोरोना काल का हवाला दिया । उन्होंने साफ-साफ कहा कि कोरोना योद्धाओं की बदौलत पटौदी कोरोना कॉविड 19 महामारी के दौर में भी सबसे अधिक सुरक्षित क्षेत्र रहा है । अब सवाल यह है कि वह कौन से वास्तविक कोरोना योद्धा रहे जो सही मायने में सम्मान और प्रोत्साहन के हकदार थे । लेकिन चयन कमेटी ने ऐसी लापरवाही क्यों की कि सही हकदार सम्मान से वंचित कर दिये गये। साफ-साफ कहने में कोई गुरेज नहीं कि इसी वर्ष प्रयागराज में प्रधानमंत्री मोदी ने गंगा स्नान के बाद सफाई कर्मियों के विशेष रुप से चरण धोकर उनका मान सम्मान किया था । उनके इस नेक और शिक्षाप्रद और समाज सें भेदभाव को मिटाने वाले संदेश को राजनीतिक रंग देने का भी प्रयास किया गया । लेकिन प्रयागराज का समय कुछ और था इसके काफी समय के बाद में कोरोना कोविड-19 की महामारी का प्रकोप ऐसा फैला की आम आदमी भी बेखौफ होकर घूमने का अथवा घर से बाहर निकलने का साहस नहीं जुटा सका । सरकार को कोरोना कोविड-19 से बचाने के लिए पूरी करें लाॅक डाउन करना पड़ा । बेहद सख्त नियम और कानून बनाकर लोगों को इसका पालन करने के सख्त हिदायत दी गई । इसी बीच यह किसी से छिपा नहीं है और करने वालों ने किया भी, कि कोरोना काल के दौरान जहां आम आदमी , नेता , अधिकारी, हर कोई अपने अपने घरों में बंद होकर बैठे थे । उस समय फील्ड में गली-गली ,मोहल्ले-मोहल्ले घूमकर कूड़ा करकट एकत्रित करने वाले सफाई कर्मियों को कोरोना योद्धा कह खूब फूल माला पहनाकर, फूलों की बरसात कर , नोटों की मालाएं पहनाकर मान सम्मान करने की होड़ भी दिखाई दी।। हालांकि इन सफाई कर्मी योद्धाओं ने अपनी सेहत और जान की परवाह किए बिना, साथ ही बिना किसी स्वार्थ के केवल अपने कर्म का धर्म निभाया । उन्होंने घर-घर, गली-गली मोहल्ले जाकर गंदगी को साफ किया । कोरोना के उस महामारी के भयंकर समय के दौरान सफाई कर्मी योद्धा की संज्ञा ऐसे कर्मचारियों को दी गई, खूब फूल बरसे । लेकिन अब जब समय आया तो ऐसे निस्वार्थ कोरोना योद्धाओं को पूरी तरह से भूलाया ही नहीं बल्कि अनदेखी कर दी गई। इसी कड़ी में आशा वर्कर भी शामिल हैं । जहां-जहां भी कोरोना कोविड-19 संक्रमण के सबसे अधिक केस मिले, उन इलाकों में जाकर आशा वर्कर्स में बिना किसी खास सुरक्षा किट, उपकरण , संसाधन के अपनी जान जोखिम में डालकर घर घर से विभिन्न प्रकार के आंकड़े एकत्रित किए, थर्मल स्कैनिंग की और भी विभिन्न प्रकार के कार्य आशा वर्कर्स के द्वारा किए गए। इन्हें भी कोरोना आशा करोना योद्धाओं की संज्ञा दी गई । अधिकारी से लेकर नेता और मंत्री भी सफाई कोरोना योद्धा और आशा करोना योद्धा यही कहकर अपना संबोधन अक्सर करते रहे । इसी कड़ी में एक और महत्वपूर्ण कड़ी शामिल है, वह है ग्राम पंचायत है।ं विभिन्न ग्राम पंचायतों के मुखियाओं ने कोरोना कोविड-19 महामारी को फैलने से रोकने के लिए और अपने अपने गांव के आम नागरिक को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए कई-कई बार सैनिटाइजेशन करवाया। इतना ही नहीं अनेक सरपंचों ने, समाजसेवियों ने, युवाओं की टोलियां ने अपने व्यक्तिगत खर्चे से भी गांव में सफाई की सैनिटाइजेशन करवाया । हैरानी इस बात की है और हैरानी के साथ सवाल भी है कि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कोरोना योद्धाओं के नाम पर जिन्हें सम्मान दिया गया वह सम्मान के हकदार रहे, इस बात से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता । लेकिन कड़वा सवाल यही है कि जो सही मायने में कोरोना योद्धा रहे उनकी आखिर अनदेखी और उपेक्षा क्यों ? कौन से मापदंडों पर खरा नहीं उतरने के कारण कर दी गई । कड़ा और खरा सवाल यही है , क्या पटौदी में संपन्न स्वत्रतंता दिवस समारोह के आयोजको को पटौदी और हेलीमंडी नगर पालिका में काम करने वाले सैकड़ों सफाई कर्मचारी करोना योद्धाओं में एक भी ऐसा करोना योद्धा दिखाई नहीं दिया कि उसे सम्मान देकर प्रोत्साहित करते हुए पूरे सफाई करोना योद्धाओं को प्रोत्साहन दिया जाता ं। यही बात आशा वर्कर्स पर भी ज्यों की त्यों लागू होती है , पटौदी क्षेत्र के प्रत्येक गांव में और पटौदी और हेलीमंडी पालिका क्षेत्र के विभिन्न वार्डों में आशा वर्कर कोरोना योद्धाओं ने अपना सक्रिय योगदान देते हुए कोरोना काल में काम किया । लेकिन एक दिन पहले के आयोजन की कमेटी को क्या एक भी आशा करोना योद्धा ऐसी नहीं दिखाई दी कि जिसे सम्मान या प्रोत्साहन देकर सभी आशाओं को प्रोत्साहित किया जा सकता था । यही बात पंचायत पर लागू होती है , कितनी पंचायतें और गांव ऐसे हैं जहां पर एक भी करोना पाॅजिटिव केस आज तक पटौदी इलाके में सामने नहीं आया है। यह सब मेजबान गांव के मुखिया, गांव की जागरूक जनता, सामाजिक कार्यकर्ता , युवाओं की मेहनत का ही परिणाम है कि ऐसे गांवों में कोरोना कोविड-19 चाह कर भी किसी को अपनी चपेट में नहीं ले सका। अब यह अपने आप में सवाल के साथ चर्चा का विषय बन गया है कि सही मायने में जो कोरोना कोविड-19 महामारी के कोरोना योद्धा रहे, उनकी ऐसी अनदेखी और उपेक्षा किस मापदंड के आधार पर कर दी गई । Post navigation ब्लड डोनेट करना सबसे बड़ा पुण्य का कार्यःलक्ष्मी अग्रवाल शहीदों को याद कर भावुक हो गए पूर्व सैनिक