पृथ्वीराज चैहान सामुदायिक भवन में कैंप का आयोजन. कैंप के दौरान 75 यूनिट ब्लड डोनेट किया गया फतह सिंह उजालापटौदी । चेहरे पर एसिड अटैक के बाद अपनी नई पहचान कायम कर चुकी एसिड अटैक पीड़िता लक्ष्मी अग्रवाल ने कहा की ब्लड डोनेट करना सबसे अधिक पुण्य का कार्य है । एक बूंद ब्लड की कीमत क्या होती है ? यह कोई भी नहीं बता सकता है, एक-एक बूंद खून की भी किसी का जीवन बचाने के लिए पर्याप्त है । यह बात उन्होंने पटौदी क्षेत्र के जाटोली इलाके में स्थित पृथ्वीराज सामुदायिक भवन में आयोजित ब्लड डोनेशन कैंप का शुभारंभ करते हुए कही।इस ब्लड डोनेशन कैंप का आयोजन लक्ष्मी फाउंडेशन और ललिता मेमोरियल अस्पताल रेवाड़ी के सौजन्य से किया गया । इसी मौके पर एसिड अटैक का सामना कर चुकी लक्ष्मी अग्रवाल और जाने-माने हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुभाष यादव मुख्य अतिथि थे । इस कैंप का आयोजन ललिता मेमोरियल अस्पताल रेवाड़ी के तत्वाधान में किया गया । डॉक्टर घनश्याम मित्तल ने बताया कि कैंप के दौरान लक्ष्य रखा गया था कि 50 यूनिट ब्लड ही लिया जाएगा, लेकिन ब्लड डोनर और युवाओं का उत्साह देखते हुए 75 यूनिट से अधिक ब्लड डोनेट किया गया। इससे यही साबित होता है कि आम आदमी विशेष रूप से युवा वर्ग खून की क्या कीमत और महत्व है , इसको अब पहले से बेहतर जानने और समझने लगा है । उन्होंने कहा कि अक्सर जहां भी ब्लड डोनेशन कैंप लगाए जाते हैं, वहां उम्मीद से अधिक ही ब्लड डोनर ब्लड डोनेशन के लिए पहुंचते हैं । एसिड अटैक झेल चुकी लक्ष्मी अग्रवाल और डॉ सुभाष यादव ने कहा कि स्वस्थ इंसान साल में चार बार अपना ब्लड डोनेट कर सकता है । यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो ब्लड डोनेट किया जाता है उसकी भरपाई मानव शरीर की संरचना के मुताबिक 24 घंटे के दौरान अपने आप ही पूरी हो जाती है । करोना कोविड-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए ब्लड डोनेशन कैंप के लिए करोना प्रोटोकल का पूरी तरह से पालन किया गया । इसके बाद ही ब्लड डोनेट ब्लड लिया गया । उन्होंने कहा कि सबसे अधिक जरूरत ब्लड की रोड एक्सीडेंट और प्रसूता महिला के लिए होती है । यह दोनों ऐसे हालात होते हैं कि एक-एक बूंद जीवन की रक्षा के लिए बहुत कीमती साबित होती है । कैंप को सफल बनाने में श्याम सिंह, अनीश व अन्य सहयोगियों के द्वारा अपना सकारात्मक योगदान प्रदान किया गया । Post navigation स्वतंत्रता दिवस पर प्रदर्शन : .. गरजी आशा वर्कर तख्त बदल दो और राज बदल दो … पहले तो बरसाए गए फूल और अब गए भूल !