खरा सवाल ऐसी क्या मजबूरी मानसून में विकास जरूरी.
हेलीमंडी पालिका क्षेत्र में हो रहें करोड़ों के विकास कार्य

फतह सिंह उजाला

हेली मंडी ।   विकास, पैसा और पानी । सरकार का कहना सही है कि विकास के लिए पैसे की कोई कमी नहीं।  पैसा पानी की तरह विकास कार्यों में बहाया जाएगा। इसका दूसरा पहलू यह है कि करोड़ों के विकास कार्य पर पानी ही पानी दिखाई दे रहा है । कोई यकीन करें या ना करें , इन दिनों पटौदी क्षेत्र के हेली मंडी नगरपालिका इलाके में अपनी आंखों से इस चीज को देख भी सकता है, महसूस भी कर सकता है और समझ भी सकता है कि वास्तव में विकास पर पानी ही पानी दिखाई दे रहा है ।

खरा सवाल और कड़वा सवाल यही है कि ऐसी क्या मजबूरी है ? जो मानसून में ही विकास के काम जरूरी है । हेली मंडी नगर पालिका क्षेत्र में बीते करीब 1 माह से विभिन्न स्थानों पर करोड़ों रुपए के विकास कार्य करवाए जा रहे हैं । यह वह समय है जब मानसून अपनी आहट दे चुका होता है और मानसून के आगाज के साथ ही विकास कार्यों का आरंभ होना पूरी व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करने के लिए पर्याप्त है । नगर निगम के एक मुख्य अभियंता के मुताबिक मानसून के दौरान विकास कार्यों को आरंभ करना तो दूर की बात सोचा भी नहीं जा सकता । विकास के लिए अथवा विकास कार्यों के लिए तोड़फोड़ अथवा खुदाई किया जाना किसी भी नजरिए से जायज नहीं ठहराया जा सकता है ।

बीते 24 घंटे के दौरान हेलीमंडी नगरपालिका के वार्ड नंबर 6 , इस इलाके को रामपुर गेट भी कहा जाता है यहां करीब 55लाख रुपए की लागत से  रोड बनाने का काम आरंभ करवाया गया । काम आरंभ होते ही बरसात हो गई थी । लोगों ने मानसून में विकास कार्य करवाए जाने को लेकर खूब सवालों के गोले भी दागे , लेकिन व्यवस्था ही ऐसी है की स्थानीय अधिकारियों और प्रशासन पर इसका कोई असर दिखाई नहीं देता है । बुधवार को हुई बरसात के बाद हेली मंडी अनाज मंडी का मुख्य प्रवेश द्वार रोड पूरी तरह से बरसाती पानी की ऐसी झील बन गया कि यहां पर दोनों तरफ करीब करीब 30-35 दुकानें गुरुवार को पूरी तरह से बंद रखना दुकानदारों के लिए मजबूरी हो गया । ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि बड़े-बड़े कपड़ों के शोरूम अन्य प्रतिष्ठान बंद होने से दुकानदारों को मोटी चपत लगी, सरकार को मिलने वाले टैक्स का भी नुकसान हुआ ही है । अब इस दोहरे नुकसान की जिम्मेदारी कौन लेगा , यहां 55 लाख रुपए से काम करने वाला ठेकेदार या वर्क आर्डर देने वाले अधिकारी या फिर दुकानदार और आसपास के निवासी  इसके भुगत भोगी है ।

सड़क मार्ग के दोनों तरफ दुकानें और प्रतिष्ठान ही नहीं लोगों के आवास भी हैं । जहां दुकाने प्रतिष्ठान नहीं खुल सके , वही लोग अपने घरों में बिना किसी दोष के कैदी बनाकर रख दिए गए । केवल मात्र 30 से 40 प्रतिष्ठानों के बीच में पंजाब नेशनल बैंक की खुला , बैंक में आना कर्मचारियों की मजबूरी थी । वह भी 2 से 3 फुट पानी के बीच से चलकर बैंक में पहुंचे । लेकिन जिन लोगों को आपात स्थिति में यहां पंजाब नेशनल बैंक से लेनदेन करना था , वह चाह कर भी अपनी जरूरत का पैसा नहीं निकलवा सके।  अपने आप में बड़ा सवाल है , पानी इस हद तक भर गया की अनाज मंडी के बीचो बीच आढ़तियों की दुकान और गोदाम में भी बरसाती पानी हिलोरे ले रहा है । व्यापारियों का गोदाम में रखा विभिन्न प्रकार का अनाज और जींस बरसात के पानी में तर होकर अब खराब होना तय है, इसका सड़ जाना तय है। इसकी जवाबदेही और जिम्मेदारी कौन लेगा , नगर पालिका प्रशासन, मार्केट कमेटी प्रशासन या फिर वह ठेकेदार जिसके द्वारा मानसून के दौरान काम आरंभ किया जाने से जलभराव की समस्या गंभीरतम बन गई।

पानी इस हद तक भरा है कि यह 36 घंटे बाद भी हिलोरे ले रहा है और इसका अभी निकट भविष्य में जल्दी से सूखने का या फिर निकलने का कोई रास्ता भी दिखाई नहीं दे रहा।  जिस स्थान पर सड़क बनाने के लिए तोड़फोड़ की गई , वहीं पर ही दर्जनों की संख्या में पेयजल आपूर्ति के कनेक्शन है, सीवर के कनेक्शन है,  नाली , बरसाती नालों व सीवर का गंदा पानी यहां भरने से अब इस बात का खतरा और बढ़ गया है कि जो पेयजल के टूटे अथवा तोड़ दिए गए पाइपलाइन इस गंदे पानी में डूबे हैं वह गंदा पानी घरों में आपूर्ति होकर बीमारियों का कारण नहीं बनेगा ? इस बात की गारंटी क्या पटौदी का प्रशासन लेगा। यह सवाल भी लोग करने लगे , कुल मिलाकर कड़वा और खरा सवाल यही है कि मानसून के दौरान विकास कार्यों को किया जाने का फार्मूला किसने दिया और किसके कहने पर अथवा किसके दबाव में यह काम आरंभ किया गया ? यह गंभीर सवाल के साथ-साथ उच्च स्तरीय जांच का विषय बन चुका है । लेकिन स्थानीय प्रशासन बार-बार इन मुद्दों को उठाया जाने के बाद भी लगता है अपनी आंखें बंद किए हुए हैं या फिर प्रशासन के द्वारा ऐसी लापरवाही पर अपनी कथित रूप से मूक सहमति प्रदान कर दी गई है ।

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