उमेश जोशी करीब तीन महीने और 30 हजार रजिस्ट्रियां। एक महीने में औसतन 10 हजार रजिस्ट्री। घोटाले की रफ्तार खासी तेज थी। लेकिन ताज्जुब की बात है कि मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, छह कैबिनेट मंत्री, चार राज्यमंत्री और सत्तारूढ़ बीजेपी-जेजेपी गठबंधन के 38 विधायकों को इतने बड़े घोटाले की भनक भी नहीं लगी। रजिस्ट्रियां दिन के उजाले में की जा रही थीं, रात के अंधेरे में नहीं। फिर भी ऐसी अंधेरगर्दी! क्या सभी सो रहे थे या सभी जानबूझ कर अनजान थे? 32 शहरों में रजिस्ट्रियों में गड़बड़ियां हुई हैं। क्या किसी भी शहर में मंत्रियों और विधायकों की पैठ नहीं थी?बड़ा घोटाला हो गया और जनता के पहरूए बेखबर रहे! सरकार के पास तो खुफिया विभाग भी है जिसकी लगाम थामने के लिए मुख्यमंत्री और गृह मंत्री में कई दिनों रस्साकशी चलती रही थी। खुफिया विभाग सरकार की आंख का काम करता है। राज्य में अच्छा-बुरा जो भी घटता है उसकी जानकारी गृह मंत्री तक या जिसके पास लगाम है उस तक खुफिया विभाग ही पहुंचाता है। क्या सरकार की यह आंख भी बंद थी? अफसोस है कि जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली प्रदेश की खट्टर सरकार इसे घोटाला मानने को तैयार नहीं है। सरकार इसे अनियमितता बता कर अपनी नाकामी छुपाने की कोशिश कर रही है। सरकार आम आदमी से बेहतर जानती है कि सभी घोटाले सिस्टम में खामी या अनियमितता के कारण ही होते हैं। सिस्टम चाक-चौबंद नहीं होता है तभी घोटोलेबाज सक्रिय होते हैं। सिस्टम को दुरुस्त बनाने की जिम्मेदारी किसकी है। सिस्टम की नाकामी सरकार की विफलता मानी जाती है। सरकार से एक सवाल और है। सरकार यह बताए कि कितनी बड़ी ‘अनियमितता’ होगी तब उसे घोटाला मानेगी। सैकड़ों करोड़ का घोटाला हो गया है फिर भी सरकार इसे अनियमितता बता कर मामले की गंभीरता कम कर रही है। एक बात और बताए सरकार। इसे अनियमितता कहने से क्या घोटोले की रकम कम हो जाएगी? घोटाला सामने आने के बाद मुख्यमंत्री ने कड़ी कारर्वाई के आदेश दे दिए। बरोदा उपचुनाव से पहले बड़ा घोटाला उजागर हो गया। पहले ही सरकार कई घोटोलों से घिरी हुई थी। विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि यह 14वां घोटोला है। ताजा घोटोले पर कड़ी कारर्वाई के आदेश देने के अलावा मुख्यमंत्री के पास कोई विकल्प नहीं था। वरना ईमानदार सरकार ताजा दाग लेकर बरोदा के मतदाताओं के सामने कैसे जाती। कड़ी कारर्वाई के आदेश का मतलब था एफआईआर और अधिकारियों ने मुख्यमंत्री का इशारा समझते हुए गुरुग्राम जिले के एक तहसीलदार और पांच नायब तहसीलदारों पर एफआईआर दर्ज करा दी। तत्काल प्रभाव से तहसीलदार और पांच नायब तहसीलदारों को मुअत्तल भी कर दिया। एक रिटायर्ड तहसीलदार के खिलाफ भी आरोपपत्र दायर किया गया है। उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने शुरू से ही इस मामले में सख्त कार्रवाई की हिदायत दी थी और कहा था कि इन अधिकारियों के खिलाफ ना सिर्फ नियम सात के हिसाब से आरोपपत्र दायर किया जाएगा बल्कि नियम 10 के तहत इन सभी पर प्राथमिकी भी दर्ज की जाएगी। अब प्रदेश के सभी तहसीलदार और पांच नायब तहसीलदार उन्हें बचाने के लिए लामबंद हो गए हैं। उनका गुस्सा एफआईआर दर्ज करने पर है। वे विभागीय जांच चाहते हैं। इस संबंध में पूरे हरियाणा की एसोसिएशन एफसीआर को ज्ञापन दे रही है। इसमें एफआईआर रद्द किए जाने की मांग की गई है। सभी जानते हैं कि विभागीय जांच अफसरों को बचाने के लिए होती है। उन्हें निर्दोष साबित कर पूरे घोटाले पर लीपीपोती कर दी जाएगी। सब की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि सरकार अपने फैसले पर अटल रहती है या एसोसिएशन के सामने झुक कर एफआईआर रद्द करती है। Post navigation रजिस्ट्री घोटाला, सरकार और यथार्थ! अनिल विज ने अब शराब घोटाले की जांच स्टेट विजिलेंस ब्यूरो से करवाने की शिफारिश मुख्यमंत्री को भेजी ! जांच रिपोर्ट आने के बाद