काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द ने किया.
कोरोना पर विजय, श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर के निर्विघ्न निर्माण हेतु

फतह सिंह उजाला
गुस्ग्राम।
 श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर यति सम्राट अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने भाद्रपद कृष्ण पक्ष की द्वितीया के मौके पर काशी के पंचकोशी अन्तर्गत ग्राम-देउरा, पोस्ट-काशीपुर (राजातालाब), जनपद-वाराणसी स्थित श्री आदि शंकराचार्य महा संस्थानम् में अपने चातुर्मास साधना के क्रम में कोरोना महामारी पर विजय, श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर के निर्विघ्न निर्माण हेतु श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारियों को सद्बुद्धि, सामर्थ्य की प्राप्ति, सनातन धर्म की अभिवृद्धि तथा चराचर जगत में सुख, शान्ति, समृद्धि के लिए 11 वैदिक विद्वानों के साथ भगवान चन्द्रमौलिश्वर का सविधि एकादशमी रूद्राभिषेक किया।

पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने सनातन धर्मावलम्बियों को अपने आशिर्वचन एवम् उपदेश में कहा कि “ मुक्ति के लिए मन की शुद्धता आवश्यक है । शुद्ध सात्विक मन ही मुक्ति का कारण बन जाता है । इसे शुद्ध करने के लिए सर्वप्रथम आत्म-अनात्म वस्तु का विवेक आवश्यक है, जिससे दोनों में भेद किया जा सके । इसके बाद अनात्म वस्तु विषयों के प्रति वैराग्य अर्थात आसक्ति का त्याग कर देना चाहिए । जिससे आत्म वस्तु को प्राप्त किया जा सके । इन दोनों के दृढ़ हुए बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता, तथा बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं होती । मोक्ष प्राप्ति की इच्छा वाले के लिए यह अनिवार्य है ।

शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि भगवान श्री राम सभी सनातनी और धर्मावलंबियों के लिए पूज्य थे, हैं और रहेंगे । राम के नाम में वह आकर्षण, शक्ति, श्रद्धा और भक्ति समाहित है कि जो भी कोई व्यक्ति भगवान राम को समरण करें उसका कल्याण होना निश्चित ही है । उन्होंने कहा सही मायने में भगवान श्री राम अपने आप में संपूर्ण ब्रह्मांड के तारणहार हैं और भगवान राम को महादेव शिव शंकर का अवतार भी माना गया है । यह बात अलग है कि लोक कल्याण के लिए भगवान श्रीराम ने देवों के देव महादेव को भी अपना ईष्ट मानकर उनकी आराधना की और राक्षस प्रवृत्ति के प्रकांड विद्वान रावण जैसे त्रिलोकी विजेता का भी नरसंहार करते हुए उसे अपने शरणागत अंत समय में ले लिया । राम नाम बेशक से छोटा है, लेकिन इस नाम के पीछे जो ताकत है, वह ताकत अनंत है और जिस भी व्यक्ति ने सच्चे मन से भगवान श्रीराम को समरण किया , उसे बैकुंठ में स्थान प्राप्त हुआ है।