उमेश जोशी

   कांग्रेस विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन के बाद यह तय हो गया था कि काँग्रेस और बीजेपी को छह महीनों के भीतर कड़ी परीक्षा देनी होगी और लाज बचाने के लिए दोनों पार्टियां पूरी ताकत झोंक देंगी। यही वजह है कि कांग्रेस और बीजेपी तारीखों की घोषणा से पहले ही चुनावी तैयारियों में जुट गई हैं। संभावनाओं के सागर में गोते लगा कर जीत के मोती तलाश रही हैं। अखाड़े के पहलवानों की तरह ताल ठोंक रही हैं। इतना दमखम इसलिए लगाया जा रहा है कि उपचुनाव मान-प्रतिष्ठा और साख का पैमाना माना जाता है। एक सीट की हार-जीत से सरकार पर कोई असर नहीं पड़ता लेकिन साख दांव पर लगी होती है।

    पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर में वाक युद्ध चल रहा है। दोनों एक-दूसरे पर चुनौतियों की चाबुक चला रहे हैं। हुड्डा ने खट्टर को चुनौती दी कि हिम्मत है तो वो खुद बरोदा से चुनाव लड़ कर दिखाएं। हुड्डा यह जताना चाह रहे हैं कि बरोदा में मुख्यमंत्री भी चुनाव नहीं जीत पाएंगे तो दूसरे नेताओं की बिसात ही क्या है। खट्टर ने जवाबी चुनौती देते हुए हुड्डा से कहा कि बरोदा में अपना सबसे मजबूत उम्मीदवार उतार लेना। वहां भी कांग्रेस की वैसी ही शर्मनाक हार होगी जैसी जींद उपचुनाव में हुई थी। दोनों पार्टियां भारी मतों से जीत का दावा कर रही हैं। 

   पिछले साल अक्तूबर में विधानसभा के आम चुनाव में बरोदा सीट पर हार के बावजूद बीजेपी उपचुनाव में जीत को लेकर आत्मविश्वास से भरी हुई है। वजह यह है कि बरोदा में तीसरे नंबर की पार्टी जेजेपी अब बीजेपी के साथ है जबकि 2019 में बीजेपी और जेजेपी दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। बीजेपी के योगेश्वर दत्त कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा से मात्र 4840 मतों से हारे थे। कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा को 42566 और बीजेपी के योगेश्वर दत्त को 37726 मत मिले थे। जेजेपी के भूपिंदर मलिक 32480 मत पाकर तीसरे स्थान पर थे। बीजेपी और जेजेपी दोनों के मत जोड़े जाएं तो कांग्रेस बहुत पीछे रह जाती है।    बीजेपी के आत्मविश्वास की दूसरी वजह यह है कि 2009 से 2019 के बीच हुए तीन चुनावों में कांग्रेस का मत प्रतिशत लगातार गिरा है। कांग्रेस के उम्मीदवार को 2009 में 56225 (59.37 प्रतिशत), 2014 में 50530 (41.93 प्रतिशत) और 2019 में 42566 (34.67 प्रतिशत) मत मिले थे। इसका मतलब है कि कांग्रेस की पकड़ ढीली हो रही है। 

 पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। वे लगातार कांग्रेस की भारी जीत का दावा कर रहे हैं। पिछले तीन चुनावों में बरोदा सीट पर मत प्रतिशत लगातार गिरने और बीजेपी-जेजेपी के मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा के बावजूद भूपेंद्र सिंह हुड्डा के आत्मविश्वास में कोई कमी नहीं आई है। हुड्डा को भरोसा है कि जाटों में उनकी जो पकड़ है वो किसी भी पार्टी के जाट नेता में नहीं है। बीजेपी ने जाट मतदाताओं को रिझाने के लिए हाल में ओम प्रकाश धनकड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।  खुद चुनाव हार चुके धनकड़ जानते हैं कि जाटलैंड में हुड्डा की क्या ताकत हैं इसलिए उन्होंने चुनौती के तेवर छोड़ कर नरम बयान दिया है। उन्होंने कहा कि बरोदा उपचुनाव हुड्डा के लिए चुनौती है, बीजेपी के लिए तो यह अवसर है। 

 जाट बहुल क्षेत्र बरोदा में बीजेपी की जीत का मतलब होगा मनोहर लाल खट्टर की जीत। पूरे प्रदेश में खास तौर से जोटों में यह संदेश जाएगा कि बरोदा के जाटों ने गैर जाट को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार कर लिया है। इसके अलावा रोहतक और सोनीपत में हुड्डा की पकड़ ढीली होने का अर्थ होगा कि हुड्डा का वजन कम हो रहो है और इसका लाभ लेकर कांग्रेस में उनके विरोधी उन्हें हाशिए पर धकेल देंगे। हरियाणा की राजनीति में अपना स्थान बनाए रखने के लिए यह चुनाव जीतना हुड्डा के लिए बहुत जरूरी है।

  जाट बहुल क्षेत्र बरोदा में बीजेपी की जीत का मतलब होगा मनोहर लाल खट्टर की जीत। पूरे प्रदेश में खास तौर से जोटों में यह संदेश जाएगा कि बरोदा के जाटों ने गैर जाट को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार कर लिया है। इसके अलावा रोहतक और सोनीपत में हुड्डा की पकड़ ढीली होने का अर्थ होगा कि हुड्डा का वजन कम हो रहो है और इसका लाभ लेकर कांग्रेस में उनके विरोधी उन्हें हाशिए पर धकेल देंगे। हरियाणा की राजनीति में अपना स्थान बनाए रखने के लिए यह चुनाव जीतना हुड्डा के लिए बहुत जरूरी है। 

   2009 और 2014 के चुनावों में कांग्रेस का मुकाबला इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से था। 2019 में इनेलो पांचवें स्थान पर थी। इस उपचुनाव में इनेलो दमखम के साथ उतरेगी क्योंकि उसका जो मतदाता छिटक कर जेजेपी के पास चला गया था वो वापस आ सकता है। जेजेपी का मतदाता इस बात से नाराज है कि उन्होंने जिस बीजेपी के खिलाफ मत दिया था, दुष्यंत उसी बीजेपी की गोद में बैठ गए। तीसरे स्थान पर रहने वाले जेजेपी के भूपिंदर मलिक के लिए फिर एक सुनहरी अवसर है। वे दुष्यंत के सत्ता सुख के लिए अपना करियर क्यों दांव पर लगाएंगे। हो सकता है कि वे फिर इनेलो में चले जाएं और उसके बैनर पर चुनाव लड़ें। यदि ऐसा हुआ तो समीकरण बदलेंगे। 

    बरोदा उपचुनाव सितंबर में हो सकता है। चुनाव आयोग कभी भी तारीख की घोषणा कर सकता है। अनुमान है कि चुनाव आयोग मध्यप्रदेश में 24 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव के साथ ही बरोदा में भी उपचुनाव करवाएगा। चूंकि सीट खाली होने की तारीख से छह महीनों के भीतर उपचुनाव करवा कर सीट भरना लाजिमी है इसलिए मध्यप्रदेश में सितंबर में उपचुनाव हो जाना निश्चित है। कांग्रेस विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा का निधन 12 अप्रैल को हुआ था। इस हिसाब से 12 अक्टूबर से पहले कभी भी चुनाव हो जाना चाहिए। मध्यप्रदेश में सितंबर में उपचुनाव होंगे इसलिए उसके साथ ही हरियाणा में बरोदा विधानसभा क्षेत्र के लिए भी उपचुनाव करवाए जा सकते हैं। छह महीने के भीतर खाली सीट भरना संवैधानिक मजबूरी है इसलिए मध्यप्रदेश में सितंबर से आगे चुनाव टलने के आसार कतई नहीं हैं। लिहाजा, चुनाव आयोग जल्दी ही चुनावों की तारीख की घोषणा कर सकता है।

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