हिसार ,3 जुलाई । मनमोहन शर्मा  

  मुंशी प्रेमचन्द एक युगचेता एवम् कालजयी साहित्यकार थे । उन्होंने किसान और आमजन की पीड़ा को अपने साहित्य में आवाज दी थी इसलिये उनका साहित्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था।

 ये विचार आज सर्वोदय भवन में आयोजित गोष्ठी में दयानंद महाविद्यालय हिसार के सहायक प्रोफ़ेसर डॉ सुरेन्द्र बिश्नोई ने व्यक्त किये। डॉ बिश्नोई ने अपने वक्तव्य में मुंशी प्रेमचन्द जी के व्यक्तित्व व कृतित्व का गहन विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि मुंशी जी ने समाज को बहुत निकट से देखा व समझा था इसिलिय वे सामाजिक यथार्थ का चित्रण कर सके। उनके पात्र समाज के आमजन है। गोदान किसान जीवन का महा आख्यान है।

डॉ बिश्नोई ने अपने व्याख्यान में बताया कि मुंशी प्रेमचन्द ने लगभग 11 उपन्यास व 300 कहानियां हिंदी साहित्य को दी। किसानों के साथ साथ स्त्री वर्ग की समस्याओं को भी प्रेमचन्द साहित्य में विशेष रूप से चित्रित किया गया है। भारतीय संस्कृति के सभी आयाम उनके साहित्य में मौजूद है। 

मुंशी प्रेमचन्द जी अपने रंगभूमि उपन्यास में औद्योगिकीकरण के खतरों की ओर संकेत  किया गया है जो आज घटित हो रहे है । इसी तरह मुंशी जी द्वारा उठाये गए धार्मिक पाखण्ड भी आज चहुँ ओर व्याप्त है। डॉ बिश्नोई ने कहा कि जब तक समाज में शोषण, भ्रष्टाचार ,स्त्री उत्पीड़न, लूट ,पाखण्ड, बेमेल विवाह जैसी समस्याएं रहेगी तब तक प्रेमचन्द का साहित्य प्रासंगिक रहेगा।

 कार्यक्रम का संचालन सत्यपाल शर्मा ने किया व धन्यवाद ज्ञापन डॉ महेंद्र सिंह ने किया। इस अवसर पर धर्मवीर शर्मा ,जय भगवान लाड़वाल, बनवारी लाल ,विजयेंद्र, रतनलाल, सुभाष गोयल, ऋषिराम, मनमोहन सहित नगर के अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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