संस्कृत है दिव्या गुणों से संपन्न भाषा : प्रहलाद सिंह

भिवानी ,2 अगस्त । मनमोहन शर्मा  

संस्कृत भाषा बहुत ही मधुर सरस एवं दिव्य गुणों से संपन्न है ।किसी भाषा का जितना भी प्रचार प्रसार किया जाए उतना ही कम है। हम सभी को मिलकर संस्कृत को जन-जन की भाषा बढ़ाने के लिए कारगर उपाय करने होंगे।

 यह विचार स्थानीय गौशाला मार्केट रोड स्थित श्री सनातन धर्म संस्कृत महाविद्यालय में आयोजित संस्कृत दिवस सप्ताह के तृतीय दिवस के अवसर पर महाविद्यालय के प्रधान एवं पूर्व न्यायाधीश प्रहलाद सिंह ने मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किए। 

उन्होंने कहा कि आज संस्कृत भाषा में अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए रोजगार की कोई कमी नहीं है। संस्कृत भाषा भी रोजगार परक भाषा है। इसलिए छात्रों को अधिक से अधिक संस्कृत भाषा का अध्ययन करना चाहिए। 

महाविद्यालय के प्राचार्य आचार्य विनय मिश्र ने कहा कि आज संस्कृत भाषा अपने पुराने वैभव रूप को फिर से प्राप्त होने की तरफ अग्रसर है। संस्कृत का दिनोंदिन प्रचार बढ़ रहा है। आज करोना काल में भी भाषा में वर्णित ग्रंथों का महत्व विशेष रूप से प्रतिपादित हुआ है। सरकार द्वारा आयुर्वेद के ग्रंथों में वर्णित महामारियो जैसी बीमारियों के उपचार के लिए और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काढ़ा का अधिकतम प्रयोग किया है। 

संस्कृत के ग्रंथों में एक से एक प्रमाणिक रोगों के इलाज लिखे गए हैं जिन पर अधिकतम शोध की आवश्यकता है। इस अवसर पर  संस्कृत मिश्र काव्य पुस्तक का विमोचन भी किया गया। इस अवसर पर सुशील शास्त्री, विकास वशिष्ठ, आशुतोष पाराशर, संजय सिंह आदि उपस्थित थे।

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