उमेश जोशी

हरियाणा बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष के कार्यभार संभालते ही पार्टी में चमत्कारी बदलाव आ गया है। इस बदलाव के मायने फ़िलहाल किसी को समझ नहीं आ रहे हैं। यूँ कहें कि 13 वें प्रदेश अध्यक्ष के रूप में 23 जुलाई को ओमप्रकाश धनखड़ के पदभार संभालने से पहले तक पार्टी आक्रामक नज़र आ रही थी लेकिन पिछले दो दिनों में अचानक ऐसा क्या करिश्मा हो गया कि पार्टी  सुरक्षात्मक दिख रही है; आक्रामक तेवर गायब हैं। पार्टी के भारीभरकम नेता भी वही सुरक्षात्मक भाषा बोल रहे हैं जिस भाषा में नए प्रदेश अध्यक्ष ने बरोदा उपचुनाव को लेकर बयान दिया था।    

अभी तक मुख्यमंत्री  मनोहर लाल खट्टर, गृहमंत्री अनिल विज और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला बरोदा उपचुनाव को लेकर आक्रामक नजर आ रहे थे। सभी नेता एक ही स्वर में एक ही बात कह रहे थे कि बरोदा में बीजेपी के अलावा कोई दूसरी पार्टी नज़र ही नहीं आ रही है, इसलिए बीजेपी की भारी मतों से विजय होगी।  पार्टी अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने अभी तक के आक्रामक तेवर के उलट अचानक यह बयान दिया कि बरोदा उपचुनाव भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए चुनौती है, हमारे लिए तो यह अवसर है। अभी तक कोई पार्टी नज़र नहीं आ रही थी लेकिन अचानक भूपेंद्र सिंह हुड्डा नज़र आने लगे हैं।

अब अध्यक्ष वाली भाषा मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी बोल रहे हैं। ‘हमारे लिए तो यह अवसर है’ इन छह शब्दों में पार्टी उम्मीदवार की हार का भय छिपा हुआ है। पहले जो बयान दिए जा रहे  थे उनमें बड़बोलापन था। 75 प्लस के बड़बोले दावों की जनता ने किस तरह हवा निकाली थी वो पार्टी नेताओं को शायद अचानक याद आ गया और  सारे नेता धरातल पर आ गए।  बरोदा विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नज़र डालें तो बीजेपी के पक्ष में समीकरण बन रहे हैं फिर ना जाने क्यों पार्टी नेताओं के पैर हिल रहे हैं। क्या वजह है कि दिग्गजों का आत्मविश्वास डगमगा रहा है।

बरोदा सीट पर कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा को 42566 मत मिले थे जो कुल पोल हुए मतों का 34.67 प्रतिशत है। बीजेपी के योगेश्वर दत्त को 37726 (30.73 प्रतिशत) और जेजेपी के भूपिंदर को 32480 (26.45 प्रतिशत) मत मिले थे। उस चुनाव में बीजेपी और जेजेपी आमने सामने थीं। उपचुनाव दोनों पार्टियों का साझा उम्मीवार होगा। दोनों पार्टियों के मत जोड़े जाएं तो कुल 57.18 प्रतिशत बनते हैं। इतने मतों से भी बीजेपी का आत्मविश्वास डगमगा रहा है तो इसका अर्थ है कि पार्टी को ‘अपनों’ से ही भितरघात आशंका सता रही है। ‘अपनों’ में अब तो जेजेपी भी है।

बीजेपी बरोदा उपचुनाव सरकार बचाने के लिए नहीं, साख बचाने के लिए लड़ेगी। सत्तारूढ़ पार्टी उपचुनाव हारती है तो उसकी बड़ी फजीहत होती है। जेजेपी अपनी साझीदार पार्टी की साख बचाने के लिए जी तोड़ मेहनत क्यों करेगी। बीजेपी के मजबूत होने का अर्थ है, जेजेपी का कमजोर होना। जेजेपी अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारेगी। यदि इस सीट के कारण सरकार पर संकट होता तो जेजेपी पूरी ताकत लगाती। इसके अलावा जनता में बीजेपी की कार्यशैली को लेकर काफी असंतोष है। शायद इसलिए भी पार्टी उपचुनाव में जीत के दावों पर गोलमोल बयान दे रही है।  

कभी बीजेपी की पत्तल में पकवान जीमने वाले निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू भी मुखर होकर बीजेपी को बरोदा उपचुनाव में हराने की अपील कर रहे हैं। वे जाटों को यह समझा रहे हैं कि बरोदा उपचुनाव में बीजेपी की हार का मतलब है खट्टर की हार। वो यह भी समझा रहें हैं कि इस हार के बाद खट्टर मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे।  कुंडू हर मंच से यह कह रहे हैं कि खट्टर की ईमानदारी एक ढोंग है। वे 1400 करोड़ का घोटाला करने वाले अपनी पार्टी नेता सहित अन्य भष्टाचारियों को बचा रहे हैं। निश्चित तौर पर खट्टर की इस छवि का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ेगा। इन हालात को भांप कर बीजेपी नेताओं ने शायद अपना तेवर बदल दिया है।

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