वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

पर्यावरणीय सतसई “झड़ते पत्ते” इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज।
प्रतिष्ठित गणमान्यों ने दी बधाइयां।

” ये राहें ले ही जायेंगी, मंज़िल का हौसला रख. कभी सुना हैं कि अंधेरों ने सवेरा होने न दिया।”

पानीपत :-प्रसिद्ध शायर की उक्त पंक्तियां डॉ. संजीव कुमारी के लक्ष्यों पर बहुत कुछ बंयाँ कर जाती हैं। साहस, जुनून और आत्मविश्वास से लबरेज प्रमुख पर्यावरणविद की उपलब्धियों ने जो मुक़ाम पाया हैं, वह बिरले ही हासिल कर पाते हैं। उनके द्वारा रचित पर्यावरणीय सतसई “ झड़ते पत्ते” का इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया जाना, एक बड़ी उपलब्धि है।

हरियाणा के जनपद हिसार के गांव ढाणी पाल में वरिष्ठ समाजसेवी बनवारी लाल बटार की होनहार बेटी के रूप में जन्मी डॉ. संजीव कुमारी ने एक बार फिर अपने पिता का सिर फख्र से ऊँचा कर दिया हैं। पर्यावरण में अंतरास्ट्रीय ख्यातियों के बाद उनके द्वारा रचित पर्यावरणीय सतसई “झड़ते पत्ते” 707 स्लोगन के साथ इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज की गई है। जो एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है। इससे पूर्व भी उन्हें अनेक राजकीय सम्मानो से विभूषित किया जा चुका है।

उनकी उपलब्धियों में शामिल वर्ष 2007 व 2009 में स्नातक के पर्यावरण अध्ययन के पाठ्यक्रम की दो पुस्तकों का प्रकाशन हुआ। 2014 वर्ष में हरियाणा के लोकगीत हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला द्वारा प्रकाशित हुई।

2016 में मुख्यमंत्री हरियाणा द्वारा सामाजिक कार्यों के लिए राज्यस्तरीय पुरस्कार प्रदान किया गया। वर्ष 2017 में महामहिम राज्यपाल हरियाणा द्वारा गीता जयंती महोत्सव पर पर्यावरण पर काम करने के लिए सम्मानित किया गया। वर्ष 2018 में ‘झड़ते पत्ते‘ नामक सतसई का प्रकाशन हुआ, इसमें पर्यावरण संबंधित 707 स्लोगन है। जो इंडिया बुक आॅफ रिर्कोडस में शामिल हुई। यह पहली इस तरह की पुस्तक है, जिसके हर पन्ने पर पर्यावरण की चर्चा है। इस संबंध में वार्ता करते हुए प्रमुख पर्यावरणविद डॉ. संजीव कुमारी ने बताया कि “ महामहिम राज्यपाल हरियाणा द्वारा इसके विमोचन ने मेरे हौसले को और मजबूती दी। यह पुस्तक हरियाणा सामान्य ज्ञान के प्रश्नों में भी चर्चा में रही। वर्ष 2018 में ही केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान करनाल के स्वर्ण जयंती उन्नत कृषि मेले में राज्य कृषि मंत्री भारत सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में किए गये कार्यों के लिए सम्मानित किया जाना मेरे लिए बड़ी उपलब्धि रही । इससे मेरे हौसलों को उड़ान मिली।”

उनकी आगामी प्रकाशनार्थ पुस्तकें –

तिसाया जोहड़, हरियाणाः लोकगीतों के झरोखे से व आशाओं की शिखा प्रमुख हैं। इसके अलावा भी उनकी अन्य उपलब्धियों में विश्वविद्यालय स्तर पर विभिन्न खेलों में पांच स्वर्ण , एक रजत , चार कांस्य पद शामिल है। पर्यावरण व विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर आकाशवाणी व दूरदर्शन पर उनकी वार्ताओं का प्रसारण, दैनिक पत्रों में समसामयिकी लेखन , राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय शौधपत्रों का प्रस्तुतीकरण, बरगद के नीचे की मिट्टी को खाद की तरह प्रयोग कर शोध करने वाली विश्व की पहली शोधकर्ता का खिताब भी उनके पास है। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय जनरल एडिटोरियल बोर्ड की सदस्य के रूप में वह स्थान बना चुकी हैं। सरकार द्वारा आयोजित विभिन्न शिविरों में 500 से ज्यादा व्याख्यान भी उन्होंने दिए हैं। उपलब्धियों के उपरांत उनके हौसले, जुनून को लेकर लगता है कि किसी शायर ने शायद यह पंक्तियां उन्हीं के लिए रची हो –

” तू शाही है परवाज है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ औऱ भी हैं।”

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