सिम्मी फाउंडेशन और सारथी फाउंडेशन की सार्थक पहल.
पौधे रोपण करना ही नहीं इन्हें पेड़ बनाना भी है लक्ष्य

फतह सिंह उजाला
पटौदी ।
 हरियाली ही जीवन की खुशहाली है । इसी लक्ष्य को लेकर पटौदी ब्लॉक में अधिक से अधिक पौधारोपण का लक्ष्य रखा गया है । यह बीड़ा उठाया है सिम्मी फाउंडेशन और सारथी फाउंडेशन ने मिलकर , दोनों फाउंडेशन का लक्ष्य है कि सावन माह के दौरान पटौदी के 55 गांवों में अधिक से अधिक पौधारोपण किया जाए और इस अभियान को जन आंदोलन बनाते हुए आम आदमी की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाए । यह कहना है सिमी फाउंडेशन के फाउंडर मनीष शर्मा का।

मनीष शर्मा के मुताबिक दोनों संस्थाओं का यह सांझा प्रयास प्रकृति के संतुलन को बनाने बनाए रखने के लिए शुरू की गई एक पहल है और उनके इस अभियान को पटौदी देहात में व्यापक समर्थन भी मिल रहा है । पौधारोपण अभियान में विशेष रुप से नितेश कुमार , भविष्य बूद्धदेव, अनीता ,अलका दलाल सहित अन्य सहयोगी अपना सहयोग निरंतर कर रहे हैं। सिम्मी फाउंडेशन और सारथी फाउंडेशन के द्वारा पटौदी ब्लॉक के क्रमशः मऊ , लोकरी , दारापुर , लोकरा , मुमताजपुर नरहेड़ा और माजरा में अभी तक विभिन्न किस्मों के लगभग 12 सौ पोधे लगाए जा चुके हैं या फिर ग्रामीणों को लगाने के लिए सौंपे गए हैं ।

मनीष शर्मा का साफ-साफ कहना है कि जो पौधे गांव गांव का दौरा करते हुए ग्रामीणों को दिए जा रहे हैं उन पौधों को फाउंडेशन की टीम के सदस्य अपनी देखरेख में ऐसे स्थान पर लगवा रहे हैं जहां इन पौधों की बेहतर तरीके से देखभाल होने के साथ-साथ यह आने वाले समय में लाभदायक पेड़ का स्वरूप ले सकें । इस अभियान के दौरान जामुन, अमरुद ,शीशम, तुलसी, बेलपत्र के अलावा विभिन्न किस्मों के औषधीय और फूलों के पौधे भी लगाए जा रहे हैं । लोगों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए और पर्यावरण के लिए बेहद अनुकूल तुलसी और केले के पौधे भी लगाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है । इस अभियान का लक्ष्य पटौदी के 55 गांव में ढाई हजार पौधे लगाकर इन्हें पेड़ बनने तक देखभाल करना भी है ।

उन्होंने बताया कि केले के पौधे पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए लगाए जा रहे हैं । आने वाले समय में केले के पौधे जब बड़े होकर एक प्रकार से पेड़ का स्वरूप प्राप्त कर लेंगे तो दोनों फाउंडेशन का यह प्रयास रहेगा कि लोगों को केले के पत्ते का किस प्रकार से प्लास्टिक के स्थान पर अथवा प्लास्टिक की प्लेट डोना पत्तल इत्यादि के स्थान पर उपयोग किया जा सकता है , इस बात का भी प्रशिक्षण देकर केले के पत्ते की प्लेट डोने व अन्य सामान बनाने का प्रशिक्षण दिया जाए। जिससे कि प्लास्टिक से पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके ।

इतना ही नहीं विशेष रूप से दक्षिण भारतीय संस्कृति में केले के वृक्ष और केले के पत्तों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है । वहां पर केले के पत्तों पर ही भोजन वितरण करने के साथ-साथ ग्रहण किया जाता है । इसका एक फायदा और है कि पेड़ पौधों के पत्ते की एक प्रकार से देसी खाद भी बनाई जा सकती है और इस दिशा में भी दोनों फाउंडेशन मिलकर अभी से काम कर रहे हैं।  फाउंडेशन की अनीता और अलका दलाल ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि ग्रामीणों विशेष रूप से महिलाओं को पेड़ पौधों के महत्व और इनके बेहतर उपयोग के बारे में बताया जाने पर सभी गहरी रूचि दिखा रहे हैं । तुलसी एक ऐसा पौधा है जो कि मध्यम आकार का होने के बाद 7 किलोमीटर के दायरे में पर्यावरण को शुद्ध कर रखने की क्षमता रखता है । आज के नन्हे पौधे भविष्य में जब वृक्ष का स्वरूप प्राप्त कर लेंगे तो यह विभिन्न पक्षियों के लिए भी उपयोगी साबित होंगे , इन्हीं वृक्षों और पेड़ों पर विभिन्न पक्षी अपने घोंसले भी बनाएंगे । वहीं अधिकाधिक प्राण वायु आक्सिजन भसी प्राप्त होगी।  

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