आखिर कब होगा प्रदेश प्रधान का नाम घोषित?

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक
विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा हरियाणा में गुटबाजी के चलते असहाय नजर आ रही है। भाजपा के संगठन चुनाव जनवरी 2020 से ही लटके चले आ रहे हैं। आखिर क्यों मजबूर है चुनाव कराने में? अब तो भाजपा संगठन में भी आवाजें उठने लगी हैं। कई स्थानों पर देखा गया कि भाजपाई एकत्रित होकर चर्चा करते हैं तो वह भाजपा के अलग-अलग गुटों की चर्चा करने लगते हैं। तात्पर्य यह है कि पार्टी के आंतरिक प्रजातंत्र का दम्भ भरने वाली पार्टी की अब पोल खुलती नजर आ रही है।

एक वरिष्ठ भाजपाई ने बताया कि भाजपा का सफर सिद्धांत और संघर्ष से आरंभ हुआ था और वह अब सत्ता और वैभव तक पहुंच गया है। और जहां सत्ता और वैभव आ जाए तो वहां सिद्धांत, संगठन, मर्यादाएं आदि सभी अपने आप टूटने लगती हैं। और ऐसा ही कुछ अब भाजपा में हो रहा है। इसमें आगे कहा कि आप क्यों चिंता करते हैं, हम सदा आगे रहने वालों में से हैं। जब सिद्धांत और संघर्ष पर चल रहे थे तो हमारे मुकाबले कोई नहीं था। और अब सत्ता और वैभव में जी रहे हैं तो हरियाणा में अन्य पार्टियों ने जितना सत्ता और वैभव का आनंद नहीं लिया होगा, उससे अधिक हम ले रहे हैं। मौका मिला है तो उसे भुना रहे हैं।

आखिर कब होगा प्रदेश प्रधान का नाम घोषित?

वर्तमान में भाजपा संगठन से ही नाम निकलकर आते रहे हैं। पहले कैप्टन अभिमन्यु का नाम फाइनल लगने लगा था और फिर उसके पश्चात कृष्णपाल गुर्जर को तो भाजपाइयों ने बधाईयां भी दे दीं थी। लेकिन वर्तमान में स्थिति वहीं की वहीं खड़ी है। देसी भाषा में ढाक के तीन पात।

संगठन से मिले सूत्रों के अनुसार अब चर्चा चल रही हैं कि बरोदा उपचुनाव तक प्रधान के फैसले को शायद रोक लिया जाए, क्योंकि जिस प्रकार पहले मुख्यमंत्री सुभाष बराला को ही रिपीट कराना चाहते थे, उसके पश्चात वर्चुअल रैली में जब उनके साथ मंच पर रतन लाल कटारिया आए तो चर्चा चली कि रतन लाल कटारिया प्रधान हो सकते हैं। उसके पश्चात कृष्णपाल गुर्जर का नाम आया। फिर चर्चाएं चलीं कि नहीं प्रदेश प्रधान जाट ही होना चाहिए। जाट में कैप्टन अभिमन्यु मुख्यमंत्री की पसंद नहीं। फिर कृष्णपाल ढांडा का नाम उठा तो उस पर भी पार्टी भी एकमत नहीं हो पाई। सुनने में आया है कि सवाल उठे के उनकी पूरे हरियाणा में स्वीकार्यता न के बराबर है। ओमप्रकाश धनखड़ का नाम भी गंभीरत से चर्चा में आया किंतु सहमति उस पर भी नहीं बनी।

चर्चाएं विभिन्न तरह की चल रही हैं और अब सुनने में आ रहा है कि शीर्ष नेतृत्व यह मानने लगा है कि प्रदेश प्रधान की खिचड़ी जिस प्रकार फैल गई है, उससे नाम की घोषणा होने पर एक बार पार्टी बिखराव की स्थिति में अवश्य आएगी। बरोदा उपचुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है और उससे पूर्व भाजपा कोई रिस्क उठाना नहीं चाह रही है।

अत: इन परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा लगता है कि दो-चार दिन नहीं अपितु महीनों के लिए अभी नियमित प्रदेश प्रधान के नाम का इंतजार करना पड़ेगा और शायद बरोदा उपचुनाव सुभाष बराला के नेतृत्व में ही लडऩा होगा।

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