भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक
चंडीगढ़। भाजपा के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव किसी गंभीर चक्रव्यूह से कम नजर नहीं आ रहा है। महीनों से खोज चल रही है। कभी जातीय समीकरण बिठाए जाते हैं तो कभी वरीयता देखी जाती है। जबरदस्त लॉबिंग चल रही है। आज सारा दिन सोशल मीडिया पर कृष्णपाल गुर्जर के प्रदेश अध्यक्ष बनने की चर्चाएं चलती रहीं। कभी कोई लिखता कि प्रदेश अध्यक्ष बन गए हैं तो दूसरा लिखता की अभी घोषणा नहीं हुई है। वरिष्ठ भाजपाइयों से इस बारे में बात की तो कोई भी सटीक जवाब देने की स्थिति में नहीं था।

भाजपा की ऑफिशियल वेबसाइट पर अब लिखा हुआ है कि अभी घोषणा नहीं हुई है। इस बात से यह जरूर दिमाग में आता है कि कहीं पेंच अभी बाकी है। शायद कृष्णपाल गुर्जर का नाम चलने के पश्चात भाजपा की सर्वे टीम सक्रिय हुई होगी कि इससे भाजपाइयों में क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है और शायद इसी कारण अभी नाम की घोषणा नहीं हो पाई है।

भाजपा ने बड़े मानदंड स्थापित कर दिए कि हारे हुए प्रत्याशी को अध्यक्ष नहीं बनाया जाएगा, तो कहीं उम्र की बंदिश तो कहीं पद पर आसीन व्यक्ति की चर्चा। इन सभी बातों से रायता फैलता ही गया। जिस प्रकार मुख्यमंत्री की जनआशीर्वाद यात्रा के पश्चात हर विधानसभा में टिकट के उम्मीदवारों की संख्या अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई थी, उसी प्रकार अध्यक्ष पद पर बेशुमार नाम चलने लगे। और जहां इतने अधिक नाम चलते हैं, वहां मामला उतना ही मुश्किल होता जाता है और यही शायद अब हो रहा है।

पहले चर्चा थी कि जाट ही होगा प्रदेश अध्यक्ष, अब गुर्जर को बनाने की बात चल रही है। तर्क यह दिया जा रहा है कि उन्हें अनुभव है। तो भाजपा में भी यह कहने वाले बहुत मिल रहे हैं कि सर्वाधिक अनुभवी तो रामबिलास शर्मा हैं, वे तीन बार प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं और सारे हरियाणा में उनका मान है तथा कार्यकर्ताओं से अच्छा तालमेल है।

जब पूर्ण बहुमत से हरियाणा में सत्ता रूढ़ हुई तब अध्यक्ष वही थे। अब अनुभव की बात पर उनका नाम न आने से यह भी चर्चा चल रही हैं कि यह ब्राह्मण को नकारने की प्रक्रिया तो नहीं। पहले भी मुख्यमंत्री का गर्दन काट दूंगा वाला वाक्य बहुत चर्चा में रहा था। फिर परशुराम जयंती पर भगवान परशुराम को याद न करना भी चर्चा में बना हुआ है।

वर्तमान में एक प्रकार से यह निश्चित लगता है कि कृष्णपाल गुर्जर ही प्रदेश अध्यक्ष होंगे परंतु जिस प्रकार की चर्चाएं और प्रतिक्रियाएं भाजपा कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं से चाहे दबे शब्दों में ही निकल रही हैं, वे भाजपा के लिए कोई अच्छा संदेश नहीं दे रही हैं। ऐसा लगता है कि चुनाव के नाम पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का मनोनयन कहीं खंड-खंड हो रही भाजपा को विखंडित न कर दे।

खैर जो भी होगा, वह देर-सवेर सामने आ ही जाएगा परंतु यह निश्चित दिखाई दे रहा है कि जो भी प्रदेश अध्यक्ष के पद पर आसीन होगा, उसका बहुत ही कठिन होगा। उसे भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से भी तालमेल बिठाना होगा, मुख्यमंत्री से भी तालमेल बिठना होगा, हाइकमान से भी तालमेल बिठना होगा और वर्तमान समय में कुछ मुख्यमंत्री के कारण और कुछ कोरोना के कारण भाजपा के घटते जनाधार को घटने से रोकना भी होगा। न केवल रोकना होगा, अपितु जनाधार बढ़ाने की चुनौती भी होगी।

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