हरियाणा की आर्थिक राजधानी गुरुग्राम से नहीं है कोई मंत्री, क्या यह है कोई सोची-समझी योजना? भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। साइबर सिटी गुरुग्राम का नाम विश्व में प्रसिद्ध है। यदि यह कहा जाए कि हरियाणा का अधिकांश आर्थिक बोझ गुरुग्राम ने उठा रखा है तो अनुचित नहीं होगा और इस महामारी के समय में जिले की जनता शासन-प्रशासन से किसी भी क्षेत्र में संतुष्ट नजर नहीं आ रही है तथा तरह-तरह की बातें, सवाल उठते रहते हैं। वर्तमान में तो गुरुग्राम के तीनों विधायक जनता की परेशानियों पर आपेक्षित ध्यान न देते हुए पार्टी कार्यों में और पार्टी के प्रति समर्पित नजर आ रहे हैं, जिससे जनता उन्हें अपना विधायक नहीं सरकार चलाने के लिए सरकार का नुमाइंदा मानने लगी है। वैसे भी कहावत है कि अपने-पराये की पहचान तो दुख में ही होती है और इस वक्त कोरोना से बड़ा कोई दुख तो होगा नहीं। SANYO DIGITAL CAMERA जनता से बात कर एक बात मुखर होकर सामने आई कि आर्थिक राजधानी होते हुए भी गुरुग्राम जिले से मुख्यमंत्री ने एक भी मंत्री नहीं बनाया, जबकि पिछले कई दशकों से ऐसा समय याद नजर नहीं आ रहा जब गुरुग्राम से कोई मंत्री न रहा हो। अब जनता यह कहती है कि मंत्री तो गुरुग्राम से कोई है नहीं और जो विधायक हैं, वे भी पहली बार बने हैं। अत: उन्हें अभी सरकार से किस प्रकार काम लेना है, उसकी समझ न के बराबर है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि राजनीति में काम कराने के भी अलग ही तरीके होते हैं, जो अनुभव से ही आते हैं और इसमें तो संदेह है ही नहीं कि गुरुग्राम जिले के तीनों भाजपा के और चौथा निर्दलीय उम्मीदवार अनुभवहीन हैं। अब जब विधायक अनुभवहीन हैं तो मुख्यमंत्री गुरुग्राम की कष्ट निवारण समिति के अध्यक्ष हैं। शीतला माता श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष हैं और गुरुग्राम की आर्थिक और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए उन्हें गुरुग्राम में महीने में औसतन दस दिन तो अवश्य गुजारने होते हैं। ऐसे में जनता का यह सोचना कि मुख्यमंत्री आर्थिक संपन्न गुरुग्राम में किसी और को ऐसी स्थिति में नहीं देखना चाहते कि वह मुखर होकर जनता की परेशानियों को कह सकें और यह कार्य तीनों विधायक नहीं कर पाते। अत: जनता में यह संदेश जाता है कि मुख्यमंत्री गुरुग्राम को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। इसी वजह से यहां किसी को शक्ति प्रदान नहीं कर रहे, इसलिए लगता है कि मुख्यमंत्री गुरुग्राम पर अपना एकाधिकार चाहते हैं। इसमें कुछ राजनीतिक जानकारों से बात की तो उनके बात करने से ऐसा लगा कि यह हरियाणा भाजपा या टिकट देने के प्रमुख मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पहले ही योजना बनाई होगी। इसलिए उन्होंने गुरुग्राम के चारों विधानसभा क्षेत्रों से बिल्कुल नए उम्मीदवारों को टिकट दी। इनमें से मनीष यादव को सरकार का तो नहीं लेकिन संगठन का अनुभव अवश्य है लेकिन वह चुनाव जीत नहीं सके। इसी प्रकार पटौदी के विधायक अवश्य राजनीति में दशकों से सक्रिय हैं लेकिन कभी भी वह कोई विशेष उपलब्धि पा नहीं सके और संघर्ष की राह पर ही चलते रहे थे। काफी समय तो उन्होंने राव इंद्रजीत की छत्रछाया में अपना राजनीतिक सफर तय किया। वर्तमान में वह प्रथम बार मुख्यमंत्री की कृपा से चुनाव जीतने में सफल हुए। अत: कृपा के असहानों के तले दबे कुछ मुखर होकर कुछ कह नहीं सकते। अब बचे दो गुरुग्राम के विधायक और सोहना के। इनके बारे में जनता ही नहीं भाजपा के कार्यकर्ता, नेता कहते हैं कि इसी को तो कहते हैं किस्मत। भगवान जिस पर मेहरबान होता है, छप्पर फाडक़र देता है। तो इन्हें छप्पर फाडक़र भगवान ने दी है विधायक की टिकट। उपरोक्त बातों को देखते हुए उनकी बातों में तथ्य नजर आता है कि वे चारों नए हैं, अनुभवहीन हैं। अत: इन्हें मंत्री पद नहीं भी देंगे तो हमारे पास सफाई देने को सशक्त कारण होगा कि अनुभवहीन को मंत्री कैसे बनाया जा सकता है और वही अब हो रहा है। जैसा कि हमने ऊपर बताया है इसका प्रतिकार करने वाले भी कुछ लोग अवश्य मिले। उनका कहना है कि यह भाजपा है, आप कहां अनुभव की बात करते हैं, यहां संघ और हाइकमान के आशीर्वाद से पद मिलते हैं। उदहरण देखना है तो दूर क्यों जाते हो। हरियाणा के सर्वोच्च पद पर आसीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल को कौन-सा अनुभव था राजनीति का। लेकिन आज देख रहे हैं कि वह मुख्यमंत्री पद पर आसीन हैं। Post navigation गुरुग्राम में लंबे अर्से बाद कोरोना कोविड 19 को लगा डर ! बिजली के करंट से एक और गौवंश की मौत