विकास की चाह में जनता द्वारा चुनी गईं भाजपा सरकार ने मानों पेट्रोलियम कंपनियों और सवम् के खजाने भर लेने को ही विकास का पैमाना समझ लिया है जहां एक तरफ मोदी सरकार से गुजरात के विकास का मॉडल को लागू करने की अपेक्षाएं की थी लोगों ने जिन्हें पूरा करना तो दूर यहां के रहे सहे विकास को भी गुजरात भेज दिया गया है ।

तेल की अंतररा्ट्रीय कीमतों में न्यूनतम स्तर तक की गिरावट आ चुकी है मगर केंद्र सरकार के तेल पर टैक्स कम होने की बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं , कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट देख आम आदमी के मन में भी आस जगी थी कि कीमतें कम होने से उनके खर्चों में कमी होने से वह भी भविष्य के लिए अपनी बचत निधि में कुछ जोड़ पाएंगे परन्तु सरकार के इस धारणा पर खरे नहीं उतरते से बहुत बड़े वर्ग को निराशा ही हाथ लगी है ।

दूसरी तरफ किसान हितैषी होने का दम भरने वाली सरकार ने डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी जो कि है उससे किसान की फसल पर लागत बढ़ेगी उसकी आय कम होगी बढ़ेगी नहीं अर्थात आड़त बढ़ाना , फसल कर लेना , डीजल के दाम बढ़ाना इनकी नजरों में आय बढ़ाना है तो दमन किसे कहते हैं ।

एक ओर उद्योग कारखानों के उत्पादन पर असर पड़ेगा महंगे उत्पाद होंगे ट्रांसपोर्टेशन महंगा हो जाने से चीजें महंगी होंगी जिसको घोर मंदी की मार झेल रहे बाजारों में बेच पाना मुश्किल हो जाएगा मांग कम होगी अर्थात मजदूर को भत्ता मिलने में भी परेशानियां होंगी ।

दूसरी ओर रसोई गैस व उपभोग की वस्तुओं पर महंगाई की मार पड़ने से गृहणीयों की रसोई का बजट बिगड़ जाएगा – बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ पर खर्च की जाने वाली पूंजी रसोई पर ही व्यय हो जाएगी ।

बकौल तरविंदर सैनी ( माईकल ) सरकार पैट्रोल डीजल के दाम घटा नहीं सकती है तो कम से कम बढ़ाए तो नहीं ।

कोरोनाकाल में लगे लोकड़ाउन ने पहले ही मसल कर रख दिया है लोगों का जीवन , उपर से सरकार की महंगाई का खेल – निकाल कर रहेगा इंसान का तेल ।
तरविंदर सैनी ( माईकल )

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