स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन भी बना अभिभावकों का पक्षकार
-लाकडाउन में निजी स्कूलों ने बच्चों के अभिभावकों की फीस वसूली और नए सत्र से मनमानी फीस लेने के लिए डाला हाईकोर्ट में केस, चार जून को होगी सुनवाई, संगठन हाईकोर्ट को कराएगा कई अहम तथ्यों से अवगत  -बिना ऑडिट रिपोर्ट जमा कराए ही मांग रहे निजी स्कूल बच्चों के अभिभावकों से मनमानी फीस, फार्म छह भी निदेशालय में पड़ा अधूरा

भिवानी, 01 जून। कोरोना संक्रमण में लागू किए गए लाकडाउन के दौरान प्रदेश में सभी शिक्षण संस्थाएं बंद पड़ी हैं, मगर फिर भी निजी स्कूलों की अभिभावकों की जेब टटोलने की बैचेनी हो रही है। यही वजह है कि हरियाणा सरकार ने निजी स्कूलों को कोरोना वैश्विक महामारी के दौरान केवल ट्यूशन फीस लेने की बात कही हैं, लेकिन निजी स्कूल ऑनलाइन पढ़ाई कराने के नाम पर ही अभिभावकों से न केवल दाखिला फीस वसूलने, बल्कि नए सत्र से फीस बढ़ोतरी का बोझ लादने की तैयारी में है।

इसी मांग को लेकर प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में केस डाल दिया है। जिसकी सुनवाई चार जून को होगी। इसी केस में प्रदेश में गरीब बच्चों की शिक्षा और पुनर्वास के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन हाई कोर्ट में अभिभावकों का पक्षकार (इंटरवीनर) बना है। सोमवार को स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन के माध्यम से अधिवक्ता अभिनव अग्रवाल ने हाई कोर्ट में पक्षकार बनने की अपील की थी, जिसे उच्च न्यायालय ने स्वीकार कर लिया और चार जून को सुनवाई के लिए संगठन को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया। 

स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन के प्रदेश अध्यक्ष बृजपाल सिंह परमार ने बताया कि हरियाणा एजुकेशन एक्ट 1995 के सेक्शन चैप्टर छह के सेक्शन 17(5) में प्रत्येक निजी स्कूल को हर साल ऑडिट बैलेंस सीट निदेशालय के समक्ष जमा कराने के आदेश दिए हुए हैं। संगठन ने शिक्षा निदेशालय को इस संबंध में एक शिकायत दी थी। जिस पर शिक्षा निदेशालय ने 18 दिसंबर 2019 को प्रदेश के सभी निजी स्कूलों को क्षेत्रीय कार्यालयों में अपने स्कूल की ऑडिट बैलेंस सीट 31 दिसंबर तक जमा कराने के आदेश दिए थे। इन आदेशों में निदेशालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि निर्धारित अवधि में ऑडिट बैलेंस सीट जमा नहीं कराने पर फार्म छह अधूरा माना जाएगा।

बृजपाल सिंह परमार ने बताया कि प्रदेश के अधिकांश निजी स्कूलों ने शिक्षा विभाग के समक्ष ऑडिट बैलेंस सीट जमा नहीं कराई है। इसके बगैर कोई भी निजी स्कूल फीस बढ़ोतरी या बच्चों पर कोई भी अतिरिक्त आर्थिक बोझ नहीं डाल सकता। उन्होंने कहा कि कोरोना वैश्विक महामारी के दौरान सभी शिक्षण संस्थाएं बंद पड़ी हैं। बच्चे भी घर बैठे हैं, इन बच्चों ने करीब तीन माह से निजी स्कूलों की किसी भी वस्तु या विद्यालय भवन का कोई इस्तेमाल ही नहीं किया है। ऐसे में इन बच्चों पर फीस जमा कराने और बढ़ोत्तरी का दबाव बनाना नाजायज है। सरकार भी यह बात स्वीकार चुकी है, लेकिन अब निजी स्कूल न्यायालय की शरण में गए हैं। स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन निजी स्कूलों के इस केस में कोर्ट का सहयोग करते हुए अभिभावकों का पक्ष से अवगत कराते हुए न्यायालय में काफी अहम तथ्य उपलब्ध कराएगा।

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