-संकट के समय संकटमोचक बन जाता है जीजा पत्रकार – जिले में रजिस्ट्री क्लर्क बतौर पांच लोगों का ही रहता है इस सीट पर कब्जा -जनता कर रही है उच्चस्तरीय जांच की मांग

अशोक कुमार कौशिक

नारनौल। बिन एनओसी के रजिस्ट्री करने का मामला सामने आने पर  नारनौल तहसील आफिस में कार्यरत रजिस्ट्री क्लर्क रामचंद्र को सस्पेंड करने के बाद चौंकाने वाली जानकारिया सामने आ रही है। ये जानकारी यह प्ररोक्ष रुप में आने के बाद सवाल खड़ा हो रहा है कि ऐसे दागदार कर्मचारी को ऐसी पोस्ट पर कैसे लगाये रखा।  मामला उछलते ही सबसे पहले डीसी ने रजिस्ट्री क्लर्क रामचंद्र की सीट बदल दी और पांच दिन बाद मामला बिगडता देख क्लर्क के सस्पेंड के आर्डर भी जारी किये गये। साथ ही रजिस्ट्री पंजीकृत करने वाले संयुक्त सब रजिस्ट्रार नारनौल से भी जवाब तलब किया।

इस मामले में संयुक्त सब रजिस्ट्रार रतनलाल ने शुक्रवार को जिला उपायुक्त को एक पत्र के साथ अपने जवाब में नारनौल शहर की लॉक डाउन के दौरान पंजीकृत किए दस्तावेजों के प्रथम पेजों की फोटो प्रति भेजी है। बिना एनओसी के पंजीकृत करने के जवाब में उन्होंने लिखा है कि डीसी कार्यालय द्वारा दिसंबर 2019 में  जारी एक पत्र के अनुसार  नारनौल नगर परिषद की सीमा वर्ष 1974 की सीमा के अंदर पडने वाले स्थल सात-ए की नोटिफिकेशन अनुसार अनापत्ति प्रमाण पत्र से छूट प्राप्त है। इस आदेश पत्र का हवाला सभी दस्तावेजों के प्रथम पेज पर दिया गया है। इसके अलावा उन्होंने अपने पत्र के साथ डीटीपी विभाग द्वारा 2010 व 2012 मे जारी किए गए गई पत्रों की प्रति भी भेजी है। सब रजिस्ट्रार ने डीसी को लिखे पत्र में कहा है कि लॉक डाउन के दौरान की गई सभी रजिस्ट्रियां नियमानुसार है।

इस बारे में प्रौपर्टी व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना जब यह नियम है तो आम जनता को इसका लाभ क्यों नही दिया गया। केवल उन्हीं लोगों को लाभ क्यों पहुँचाया गया जिन्होंने मोटा चढ़ावा चढ़ाया। नियम का लाभ ‘आम’ के बजाय ‘खास’ लोगों को ही क्यों? 

-अनेक बार चर्चित रही है तहसीलों के रजिस्ट्री क्लर्क की सीटः-

तहसील कार्यालयों की मलाईदार सीट कही जाने वाली रजिस्ट्री क्लर्क की सीट पिछले कुछ सालों से खासकर भाजपा सरकार में अच्छी खासी चर्चित रही है। इस सीट पर बैठने वाले कर्मचारी को जिला में किसी ना किसी सत्ता पक्ष के नेता का आशीर्वाद रहा है। इस क्लर्क के सस्पेंड का समाचार सोशल मीडिया पर आने के बाद चर्चाओं का बाजार भी गर्म हो गया है कि इस कर्मचारी को भी जिला के एक बडे नेता का आशीर्वाद था और इसके माध्यम से तगडी मलाई खाने का भी खेल चल रहा था। इस सीट पर पांच बाबू लोगों सहित प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं के बीच ही मलाई खाने की लड़ाई रहती है। किसी भी दल की सरकार हो या कितना भी कड़क उपायुक्त हो इनके आगे नतमस्तक हो जाता है। इससे पूर्व यहां नियुक्त रजिस्ट्री क्लर्क को भी भाजपा के एक विधायक का आर्शीरवाद मिला हुआ था। उसके हटाने के लिए इस निलम्बित क्लर्क ने काफी जोड़ तोड़ बैठाया था। 

-क्या है इसका अतीत और प्रभाव–

रामचंद्र एक बड़े पत्रकार का साला है और मुसीबत पड़ने पर वह उसका संकटमोचक बन समस्या से निजात ही नही दिलाता अपितु दोबारा से इस मलाईदार पद पर काबिज करा देता है। इसके कारनामें काफी चौंकाने वाले है। यह श्रीमान जी अटेली में रजिस्ट्री क्लर्क के रुप में  रजिस्ट्री तक गायब कर चुका है। तत्कालीन तहसीलदार कंवलसिंह के साथ स्टेट विजीलेंस ने रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा था। कनीना में भी इनका कार्यकाल काफी चर्चा में रहा। तब इसका एक वीडियो भी वायरल हुआ था। एक बार तो जिला ग्रीवेंसेंस कमेटी के सम्मुख शिकायत भी की गई थी। नांगल चौधरी में इसने काफी लूट मलाई थी।

रामचंद्र 2005 में भी उपायुक्त फतेहचंद डागर के समय सुर्खियों में आया था। डवलपमेंट चार्ज के नाम पर उस समय मोटा गबन किया था। नारनौल के एक समाजसेवी ने करोड़ो रुपये के तब के घोटाले को सार्वजनिक किया था। इस रजिस्ट्री क्लर्क के ठाट बाट देखे जाएं तो यह किसी राजनेता, उच्च प्रशासनिक स्तर से अधिकारी तथा किसी धन्ना सेठ से कमतर नहीं है। रजिस्ट्री क्लर्क होते हुए चण्डीगढ़ नम्बर की बड़ी गाड़ी में आना जाना इनका शगल है। नारनौल के कुलताजपुर रोड पर करोड़ो की आलीशान कोठी इसकी शान शौकत का छोटा अदना सा नमूना है। यह दीगर बात है इनको अलाट सरकारी मकान में पत्रकार जीजा का पत्रकार भतीजा रहता है। 25 साल की सर्विस के दौरान हर कर्मचारी का यह सपना होता है कि वह प्रमोशन प्राप्त करें और तरक्की पाये, लेकिन इसके साथ उल्टा है। गांधीजी की ललक इस पर ऐसी लगी हुई है कि यह रजिस्ट्री क्लर्क से ऊपर बढ़ना ही नहीं चाहता। 

-एसीआर ही नही पेश की जा रही मंडलायुक के पास

रामचन्द्र का एक प्रमोशन केस मंडल आयुक्त के पास लम्बित है। इसकी एसीआर काफी लम्बे समय से उनके पास पेश नही की जा रही। इसमें दो फायदे है एक वर्तमान में धन बटोरा जाये और भविष्य में पीछे तक का तरक्की का लाभ लिया जाये।

-पांच बाबू ही रहते इस सीट की दौड़ में

इस सीट के लिए जिले के पांच बाबू लोगों के बीच आपस में प्रति स्पर्धा रहती आई है । यही पांच लोग किसी भी दल की सत्ता हो यह अपनी गोटी फिट करने में माहिर है। विकास, शकुन्त, दिनेश, विनोद और रामचंद्र इनका ही बोलबाला रहता है। इन पांचों ने इस पद पर रहते मोटी कमाई की है। किसी भी उपायुक्त का कार्यकाल हो या फिर किसी भी दल की सरकार हो, यह सब मनैज कर लेते है। इस बंदरबांट में नम्बरदार से लेकर अधिकारी और नेता सब लिप्त रहते है। 

मोटी मलाई का विवाद अक्सर सुर्खियों में रहता है। अटेली के वर्तमान भाजपा विधायक  सीताराम यादव और तत्कालीन तहसीलदार कंवल सिंह  के बीच  आपसी रार  काफी सुर्खियों में रही थी। दोनों के बीच शह और मात का खेल लम्बे समय तक चला। भाजपा विधायक ने  खुलकर तहसीलदार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। तहसीलदार ने अपने को पाक साफ बताते हुए लोगों से ईमानदारी के शपथ पत्र लेकर सरकार के सम्मुख पेश किये थे। लोगों की मांग है कि इन पांचों रजिस्ट्री क्लर्को की सम्पतियों को लेकर उच्चस्तरीय जांच की जाये। जांच में नायब, तहसीलदार और उपायुक्त स्तर के अधिकारियों सहित राजनेताओं की भूमिका को शामिल किया जाये। सरसों के बाद यह मामला कुलीन भाजपा के गले की फांस बनता नजर आ रहा है।

error: Content is protected !!