–डीसी ने कहा कि डीआरओ कर रहे हैं जांच-नाम का रजिस्ट्री क्लर्क ठाठ उच्च अधिकारी से भी ज्यादा-संकट के समय संकटमोचक बन जाता है जीजा पत्रकार अशोक कुमार कौशिक नारनौल। बिना एनओसी के ही रजिस्ट्री करने का मामला सामने आने पर डीसी जगदीश शर्मा ने तहसील आफिस में कार्यरत रजिस्ट्री क्लर्क रामचंद्र को सस्पेंड कर दिया है। बता दें कि लॉक डाउन दो में सरकार ने रजिस्ट्रीयां चालू करने की छूट दी थी। इस छूट के दौरान तत्कालीन रजिस्ट्री क्लर्क ने करीब बीस से तीस रजिस्ट्रियां बिना एनओसी के ही रजिस्टर्ड कर दी। ये सभी रजिस्ट्रियां नारनौल शहर की है और कई करोडों रूपयों की वैल्यू वाली प्रॉपर्टी की है। बिना एनओसी के रजिस्ट्री करने की भनक जिला नगर योजनाकार कार्यालय को लगी तो इस मामले में जिला नगर योजनाकार विभाग की तरफ से जिला उपायुक्त को एक पत्र लिखकर इन रजिस्ट्रियों की जांच करने का आग्रह किया गया। मामला संज्ञान में आते ही सबसे पहले डीसी ने रजिस्ट्री क्लर्क रामचंद्र की सीट बदल दी और पांच दिन बाद मामला बिगडता देख क्लर्क के सस्पेंड के आर्डर भी जारी कर दिए। साथ ही रजिस्ट्री पंजीकृत करने वाले संयुक्त सब रजिस्ट्रार नारनौल से भी जवाब तलब किया। इस मामले में संयुक्त सब रजिस्ट्रार रतनलाल ने शुक्रवार को जिला उपायुक्त को एक पत्र के साथ अपने जवाब में नारनौल शहर की लॉक डाउन के दौरान पंजीकृत किए दस्तावेजों के प्रथम पेजों की फोटो प्रति भेजी है। बिना एनओसी के पंजीकृत करने के जवाब में उन्होंने लिखा है कि डीसी कार्यालय द्वारा दिसंबर 2019 में जारी एक पत्र के अनुसार नारनौल नगर परिषद की सीमा वर्ष 1974 की सीमा के अंदर पडने वाले स्थल सात-ए की नोटिफिकेशन अनुसार अनापत्ति प्रमाण पत्र से छूट प्राप्त है। इस आदेश पत्र का हवाला सभी दस्तावेजों के प्रथम पेज पर दिया गया है। इसके अलावा उन्होंने अपने पत्र के साथ डीटीपी विभाग द्वारा 2010 व 2012 मे जारी किए गए गई पत्रों की प्रति भी भेजी है। सब रजिस्ट्रार ने डीसी को लिखे पत्र में कहा है कि लॉक डाउन के दौरान की गई सभी रजिस्ट्रियां नियमानुसार है। क्या कहते हैं डीसीः- इस मामले में जिला उपायुक्त जगदीश शर्मा का कहना है कि रजिस्ट्री क्लर्क का सस्पेंड उनके कार्यालय का रूटीन का वर्क है। उन्होंने यह भी कहा कि बिना एनओसी रजिस्ट्री मामले की जांच डीआरओ को सौंपी गई है। जांच के बाद नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। अक्सर चर्चित रही है नारनौल तहसील की रजिस्ट्री क्लर्क की सीटः- तहसील कार्यालय की मलाईदार सीट कही जाने वाली रजिस्ट्री क्लर्क की सीट पिछले कुछ सालों से खासकर भाजपा सरकार में अच्छी खासी चर्चित रही है। इस सीट को पर बैठने वाले कर्मचारी को जिला में किसी ना किसी सत्ता पक्ष के नेता का आशीर्वाद रहा है। इस क्लर्क के सस्पेंड का समाचार सोशल मीडिया पर आने के बाद चर्चाओं का यह बाजार भी गर्म हो गया है कि इस कर्मचारी को भी जिला के एक बडे नेता का आशीर्वाद था और इसके माध्यम से तगडी मलाई खाने का भी खेल चल रहा था। इस सीट पर दो तीन लोगों के बीच ही मलाई खाने की लड़ाई रहती है। किसी भी दल की सरकार हो या कितना भी कड़क उपायुक्त हो इनके आगे बेबस हो जाते है। इससे पूर्व नियुक्त रजिस्ट्री क्लर्क को भी भाजपा के एक विधायक का आर्शीरवाद मिला हुआ था। उसके हटाने के लिए इस निलम्बित क्लर्क ने काफी जोड़ तोड़ बैठाया। क्या है इसका अतीत और प्रभाव– रामचंद्र एक बड़े पत्रकार का साला है और मुसीबत पड़ने पर वह उसका संकटमोचक बन समस्या से निजात ही नही दिलाते अपितु दोबारा से इस मलाईदार पद पर ले आते है। इनके कारनामें काफी चौंकाने वाले है। यह श्रीमान जी अटेली में एक रजिस्ट्री तक गायब कर चुके है। कनीना में भी इनका कार्यकाल काफी चर्चा में रहा। नांगल चौधरी में इन्होंने काफी लूट मचाई थी। 2005 में भी उपायुक्त फतेहचंद डागर के समय सुर्खियों में आया था। डवलपमेंट चार्ज के नाम पर उस समय मोटा गबन किया था। नारनौल के एक समाजसेवी ने करोड़ो रुपये के तब के घोटाले को सार्वजनिक किया था। कनीना नियुक्ति के समय भी यह सुर्खियों में रहा था। इस रजिस्ट्री क्लर्क के ठाट बाट देखे जाएं तो यह किसी राजनेता अथवा उच्च प्रशासनिक स्तर से अधिकारी से कमतर नहीं है। रजिस्ट्री क्लर्क होते हुए चण्डीगढ़ नम्बर की बड़ी गाड़ी में आना जाना इनका शगल दिखाया है। नारनोल के कुलताजपुर रोड पर करोड़ो की एक आलीशान कोठी में रहना इसकी शान शौकत का छोटा छोटा सा नमूना है। यह दीगर बात है इनको अलाप सरकारी मकान में पत्रकार जीजा का पत्रकार भाई रहता है। 25 साल की सर्विस के दौरान हर कर्मचारी का ही है सपना होता है कि वह प्रमोशन प्राप्त करें और तरक्की पाये लेकिन इनके साथ उल्टा है। गांधीजी की छाप इन लोगों पर ऐसी लगी हुई है कि यह रजिस्ट्री का क्लर्क से ऊपर बढ़ना ही नहीं चाहता। इनका एक केस मंडल आयुक्त के पास लम्बित है। इनकी एसीआर काफी लम्बे समय से उनके पास पेश नही की जा रही। इसमें दो फायदे है एक वर्तमान में धन छापा जाये और भविष्य में पीछे तक का तरक्की का लाभ लिया जाये। इस सीट के लिए जिले के तीन लोगों के बीच आपस में प्रति स्पर्धा रहती आई है । यही तीन लोग किसी भी दल की सत्ता हो यह अपनी गोटी फिट कर लेते है। किसी भी उपायुक्त का कार्यकाल हो यह सब मनोज कर लेते है। इस बंदरबांट में नम्बरदार भी एक रहता है और अधिकारी से नेता सब लिप्त रहते है। Post navigation ओलावृष्टि से हुए नुकसान की भरपाई करे सरकार : सुनीता वर्मा देश में सात लाख छोटी दुकानें हो सकती है बंद