घरों में ही अता की गई ईद उल फितर की नमाज.
सेशल डिस्टेंस का रखा गया विशेष रूप से ध्यान.
म्ंदिरो के कपाट बंद तो मस्जिदों पर नही अफसोस

फतह सिंह उजाला

पटौदी। रहमत और इबादत का महिना, संकल्प था कोरोना को हराना। रमजान में रोजे रखे, सभी के लिए दुआ की। लेकिन पहली बार ऐसा मौका आया कि, ईद उल फितर के मौके पर ईदगाह सूनी रही तथा घर ही इबादतगाह बन गए। इसका भी कोई खास अफसोस नही, कोरोना जैसी महामारी ने समय के साथ चलना भी सिखा दिया है, कि सभी बंदो और इंसान के लिए सेहत के साथ ही जीवन को बचाना सबसे अहम हैं। अब कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सरकार के द्वारा जो भी दिशा निर्देश दिये गए, उनका समाज, घर-परिवार के साथ ही राष्ट्र के हित में पालन किया गया। यही इस बार रमजान में सबसे बड़ी इबादत कही जा सकती है।

हजरत बाबा सैयद नुरूद्दीन दरगाह के प्रमुख और पंडित कैलाश चंद्र बाली के शिष्य सैयद एजाज हुसैन जैदी जज्जू बाबा ने भी सोमवार को सकरी के बाद तय समय पर ईद उल फितर की नमाज घर पर ही अता की। परिवार के छोटे बच्चों सदस्यों सानिया, सनद, मिराज, शबीना, शाबा , आकूशा के मुताबिक, बेशक और वर्ष की तरह से इस बार अपनी पसंद की खरीददारी नहीं कर सके, अपने ही दोस्तों को मीठी सेवईयां जीभर नहीें खिला सकें, लेकिन कितने ऐसे बच्चे लाॅक डाउन के कारण परेशान होंगे, जो कि केवल पेट भरने के भोजन की ही इच्छा लिये आज भी घरों को लौट रहे है। त्योेहार तो मनाया, लेकिन वह खुशी नहीं मिली जो कि अब से पहले ऐसे मौकों पर होती थी।

सैयद एजाज हुसैन जैदी जज्जू बाबा ने कहा कि, एतकाफ के दौरान और पूरे रमजान में एक ही दुआ की और बार-बार पढ़ी कि, देश और दुुनिया को अल्लाह कोरोना से जल्द से जल्द निजात दिला दें। हर बंदा और सभी इंसान सेहतमंद हो, जो भी कोरोना से पीड़ित है, वे सभी स्वस्थ हो। यह समाज और राष्ट्र सभी धर्म, वर्ग के लोगों से मिलकर बना है। इंसानियत भी इसी बात का तकाजा कर रही है कि, सभी स्वस्थ हो। ऐसे सभी लोगों के लिए अल्लाह से खास दुआ की गई जो कि , अपनी ही जान की परवाह नहीं करके, बिना किसी भेदभाव के कोरोना पीड़ितों का उपचार कर रहें है।

पूर्व पार्षद एवं नंबरदार अब्दुल जलील के मुताबिक, किसी भी आपदा अथवा महामारी के समय में, इंसानियत यही कहती है कि, काम वहीं करना चाहिये जिसमें सभी का भला हो। संभवतः पहली बार ऐसा देेखा है कि मंदिर,  गुरूद्वारे, चर्च, मस्जिदें भी बंद कराई गई। पूजा करनी हो या इबादत, बंदा कही भी कर सकता है। बस ध्यान अपने-अपने आराध्य , देवी-देवता सहित अल्लाह में लगाना चाहिये। मन और ध्यान कही दूसरी बातो में उलझा हो और बैठे किसी धार्मिक स्थान पर तो कोई फायदा नहीं होता।

ताहिरखान, रफीकखान, हजूर मोहम्मद, इलियास हुसैन जैदी, रजा मोहम्मद, अब्दुल रफीक, इमरान खान, मोहम्म्म्द जाहिद, फहीम अहमद, कदीर खान, एएस खान सहित अन्य को भी अफसोस तो रहा कि, जिस उमंग और जज्बे के साथ एक माह तक रोजा रखने के बाद में चांद के दीदार के बाद ईद उल फितर पर और इससे पहले तरावीह की नमाज सामुहिक अता करने का जो जोश, खुशी, उमंग बनती थी, वह इस बार हलकी ही रह गई। इसका कारण सबसे महत्वपूर्ण कोरोना से बचाव के लिए सोेशल डिस्टेंस ही रहा है। इस बार त्योहार के लिए अपेक्षाकृत कम ही खरीदारी की गई। फिर भी बहुत से अजीज मित्र, वर्षो से सभी त्योहार मिलकर मनाने वाले अनेक परिचित नहीं पहुंच सके, लेकिन इसका अधिक अफसोस भी नहीं है। मीठी संेवईयां बनाई गई और जो भी संगी, साथी अथवा मित्र पहुंचे, सभी का मुंह मीठा कराया गया। लाॅक डाउन के कारण तो भी मित्र अथवा जानकार नहीं पहुंच सके, ऐसे सभी लोगों के द्वारा फोन काल और वीडियो काल से संपर्क करके भाईचारे को बनाए रखने का संदेश दिया।

error: Content is protected !!