भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

आज 23 मई है जो अपने आपमें ऐतिहासिक कही जा सकती है। आज से ठीक एक वर्ष पूर्व लोकसभा चुनाव के परिणाम आए थे और तय हुआ था कि भारत की जनता ने पूर्ण बहुमत से मोदी को अगले पांच वर्ष का नेतृत्व सौंप दिया है। आज कहीं किसी भाजपा नेता की ओर से इस दिन के बारे में कोई जिक्र नहीं हुआ। क्या हम यह मानें कि कोरोना संकट के लिए उन्होंने ऐसा नहीं किया। लगता तो नहीं, क्योंकि भाजपा के आइटी सेल और कथित समर्थित कार्यकर्ता तो उत्साह दिखाने में कभी कोई कमी छोड़ते नहीं है।

त्रासदी देखिए कि जिस दिन भाजपाइयों को खुशी मनानी चाहिए थी कि आज के दिन गत वर्ष हमने विजयी हासिल की थी, उस दिन हरियाणा के गृहमंत्री अपनी सरकार के अधिकारियों को धमकी दे रहे हैं कि हरियाणा में नौकरी करनी है तो विधायकों की सुननी पड़ेगी। जाहिर ही बात है कि ऐसी स्थिति आने का सीधा-साधा अर्थ यही है कि हरियाणा के अधिकारी हरियाणा सरकार की बात नहीं मानते और जब अधिकारी स्वछंद होने लगें तो उसका निविर्वाद रूप से सबसे बड़ा कारण कमजोर नेतृत्व कहा जाता है।

हमारे हरियाणा में 2014 में जब भाजपा पूर्ण बहुमत से आई थी तो मनोहर लाल खट्टर जो प्रथम बार विधायक बने थे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पर्ची से मुख्यमंत्री बने थे। तो पूर्ण बहुमत की सरकार पांच साल खींच ले गए। आवाजें मुखर होती रहीं लेकिन केंद्र में भी सरकार और प्रधानमंत्री का वरद हाथ पार्टी के अंदर से तो किसी विरोध को मुखरित होने से रोकता रहा परंतु अधिकारी पढ़े-लिखे होते हैं, समय-परिस्थितियों का ज्ञान होता है वे कभी इनके काबू में आए नहीं।

पिछले कार्यकाल में भी आरंभ से अंत तक अधिकारियों के तबादले करते ही रहे थे और लोग कहने लगे थे कि अधिकारियों को ताश की गड्डी की तरह फेंटते हैं। चलिए कार्यकाल अच्छा गुजरा। कार्यकाल के अंत में जन आशीर्वाद यात्रा पूरे हरियाणा में बड़े धूमधाम से निकाली और 75+ का नारा दे दिया। परंतु परिणाम यह निकला कि भाजपा 40 सीटों पर सिमटकर रह गई। परिणामस्वरूप सहयोगी जजपा का साथ लेना पड़ा।

अब जजपा के मुखिया दुष्यंत चौटाला भी कोई अनुभव वाले तो हैं नहीं लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें दस सीट दिला दी थी और मुख्यमंत्री के साथ पटरी बैठ गई, क्योंकि दोनों ही अनुभवहीन और दोनों ही पार्टी की अंदरूनी खींचतान से ग्रसित तो ऐसी स्थिति में नेतृत्व तो कमजोर होना ही था।
वह कहावत याद आ रही है एक तो करेला, दूसरा नीम चढ़। दोनों एक परिस्थितियों से परेशान थे, दूसरे कोरोना ने उनकी योग्यता के टेस्ट लेने आरंभ कर दिए और जिसमें वे कितनी सही उतर रहे हैं, यह जनता और अधिकारी खुद देख-समझ रहे हैं तो हमें कहने की क्या आवश्यकता है।

वर्तमान में सरकार के तीन केंद्र दिखाई देते हैं एक मुख्यमंत्री का, एक उप मुख्यमंत्री और एक स्वास्थ एवं गृहमंत्री अनिल विज का, लेकिन कहीं भी ऐसा दिखाई नहीं देता कि इन तीनों में कहीं तालमेल हो। जिसके प्रमाण हमें बार-बार देखने को मिल रहे हैं कि मुख्यमंत्री दूसरों के महकमों में दखल देते रहते हैं और दूसरों को कहना पड़ता है कि मुख्यमंत्री तो मुख्यमंत्री हैं, कुछ भी कर सकते हैं। इस प्रकार की बातें सारी स्थिति को अपने आप ही सामने ला देती हैं।

वर्तमान में शराब के ठेके खुलना, खुलने के तरीके और शराब का घोटाला पकड़े जाना और उसकी जांच होना, सभी बातें अपने आपमें विवादित ही दिखाई देती हैं। इनमें दुष्यंत चौटाला और अनिल विज दोनों आमने-सामने दिखाई देते हैं। अभी बहुत अधिक खुलकर सामने आए नहीं हैं लेकिन परिस्थितियां कह रही हैं कि ऐसा कभी हो सकता है और मुख्यमंत्री महोदय ऐसे समय में स्पष्ट तो मुखर नहीं हो रहे परंतु उनकी कार्यशैली यह दर्शा रही है कि वह दुष्यंत का साथ दे रहे हैं। ऐसे में परिणाम जो निकलने चाहिएं, वही निकल रहे हैं।

गत चुनाव में मुख्यमंत्री ने कुछ विधायकों के टिकट इसलिए भी काटे थे कि वे उन्हें पसंद नहीं थे, जिनमें कुछ हार भी गए थे, वरिष्ठ मंत्री भी हारे और जो जीते उनमें अनेक विधायक प्रथम बार जीते हैं। अब सबके पास तो प्रधानमंत्री की पर्ची नहीं होती, वह अपने क्षेत्र में अपने अस्तित्व की पहचान बनाने में लगे हैं। इधर स्थितियां देखकर कुछ अधिकारियों ने मुख्यमंत्री पर अपना विश्वास जमा लिया है और वे अधिकारी अपने क्षेत्र में या अपने विभाग में स्वछंद होकर कार्य करते हैं, वे किसी की नहीं सुनते। किसी विधायक की बात तो छोड़ो, वे किसी मंत्री की भी नहीं सुनते। कारण कि उनके दिमाग में सीधी सी बात है कि संइया भए कोतवाल तो डर काहे का। जब मुख्यमंत्री का वरद हाथ उनके ऊपर है तो उनका कोई क्या कर पाएगा।

कल विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता के पास विधायकों की शिकायत गई थी, आज गृह मंत्री को ऐसी बातें बोलनी पड़ी। ये सभी बातें अपने आप सरकार की कहानी कह रही हैं।

वर्तमान में मुख्यमंत्री बड़ी विकट स्थिति में फंसे हैं। एक और तो कोरोना से लडऩा है तो दूसरी ओर संगठन के चुनाव होने हैं और उसमें भी अपनी पसंद का प्रदेश अध्यक्ष बनाना है। मुश्किल यह है कि वरिष्ठ भाजपाइयों से उनकी पटरी बैठ नहीं रही है। बड़ा कशमकश का समय है मुख्यमंत्री के लिए भी और प्रदेश के लिए भी।

हमारी तरफ से भाजपाइयों को 23 मई की हार्दिक शुभकामनाएं।

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