-कमलेश भारतीय

आज सुबह शिमला के रचनाकार तेजराम शर्मा की याद हो आई । मैं उनके बारे में नहीं जानता था लेकिन वे दैनिक ट्रिब्यून में मेंरी कार्यशैली से प्रभावित थे । खासकर पुस्तक समीक्षा । एक दिन अचानक वे हिसार मेरे घर ही पहुंच गये क्योंकि उन दिनों वे अम्बाला सर्कल के पोस्ट ऑफिस महाप्रबंधक थे । पूरी दोपहर हमने एक साथ बातचीत और खानपान में बिताई । उनका नया काव्य संग्रह आया था । उन्होंने आग्रह किया कि इसकी समीक्षा मैं लिखूं । मैंने उन्हें नियम बताया कि जब तक संपादक विजय सहगल आदेश नहीं दें तब तक समीक्षा नहीं आयेगी या जिसको भी समीक्षा के लिए भेजा जायेगा वही करेगा । इस पर हिमाचली भाई और बिरादर होने के नाते उन्होंने फोन लगा दिया सहगल जी को और इच्छा जाहिर कर दी । उन्होंने अनुमति दे दी । इस तरह हमारी पहली मुलाकात हुई ।

फिर चंडीगढ़ रहते मैंने मोहाली के पांच फेज के पोस्ट आफिस में सर्टिफिकेट ले रखे थे जो पूरे हो गये यानी मैच्योर । मैंने अपने मित्र व सहयोगी हरेश वाशिष्ठ को बुलाया । वे मोटरसाइकिल लेकर आए । हम पोस्ट ऑफिस पहुंचे और पोस्ट मास्टर रुपये देने में आनाकानी करने लगा कि भी पैसा ही नहीं है । कहां से दें ? उसे लगता था कि यह हिसार से आया परदेसी कुछ दे तो पैसे दे दें । तभी अचानक मुझे तेजराम शर्मा का ध्यान आया और मैंने उन्हें फोन लगा कर सारी बात बताई वे हंसते हुए बोले-अभी मिल जायेंगे । उन्होंने बाद में सीधे उस पोस्टमासटर को डांटा और तुरंत पैसे दिलवाए । यह बहुत मज़ेदार वाकया रहा, फिर वे सेवानिवृत हो गये । शिमला जा बसे । अपने घर ।

इधर भाई एस आर हरनोट और आर डी शर्मा ने अपने आयोजनों में मुझे शिमला बुलाना शुरू किया । तब हमारी मुलाकात रोटरी हाॅल में या माॅल पर होने लगी । वे भाभी जी के साथ आते और शांत होकर , मंद मंद मुस्कुराते मज़ा लेते कविताओं का । उन्हें खुद कविता पाठ करने की कोई जल्दबाजी में नहीं देखा । उनके गीता के शलोकों का अनुवाद संग्रह का विमोचन करने का अवसर भी मिला । लौटते समय मैं सारा पढ़ गया और उन्हें बधाई दी । कुछ हाइकु मैंने अपनी फेसबुक पर भी पोस्ट किए थे । खैर । फिर असुखद सूचना मिली कि वे नहीं रहे । संयोग से उनके अंतिम शांति पाठ के समय मैं शिमला में ही था ।

मैंने जाने का प्रोग्राम बनाया और कुल राजीव पंत व रतनचंद निर्झर को साथ लिया । हालांकि हरनोट भाई से वादा था साथ जाने का लेकिन उनसे माफी मांगी । और वे पैदल भी हमसे पहले वहां पहुंच चुके थे । मैंने सोचा कि तेजराम जी के घर तब आया जब वे जा चुके । छूने आया उनका मन । भाभी जी को व बंधुओं को नमन किया । तस्वीर में मुस्करा रहे तेजराम जी को पुष्पार्पित कर विदा ली पर मन से कहां विदा हुए हो आप तेजराम जी ?

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