पाबंदी के बावजूद गांवों की ओर से गऊओं को बेसहारा कर सडक़ों पर छोडऩे का सिलसिला आज भी जारी।

बरनाला, अखिलेश बंसल/करन अवतार
प्रदेश सरकार की ओर से गांवों की पंचायतों पर शिकंजा नहीं कसने से पाबंदी के बावजूद ग्रामीणों द्वारा गोधन को बेसहारा कर सडक़ों पर छोडऩे का सिलसिला अभी भी जारी है। जिसके चलते शहर के दशहरा ग्राउंड तक पहुंचे बेसहारा गाय को खूंखार कुत्ते नोच-नोच खा गए। जो चीख-चिल्लाहट करती तड़प-तड़प कर शरीर त्याग गई। जिसके बारे में गोसेवकों ने प्रशास्निक अधिकारियों, समूह गोशालाओं के प्रबंधकों, धार्मिक और राजसी संस्थाओं के नेताओं को जिम्मेदार ठहराया है। पता लगने पर घटनास्थल पर पहुंचे गोसेवकों ने गोधन का विधि-विधान से क्रिया-कर्म किया।

शहर के पॉश एरिए में हुई घटना –
लॉकडाउन के कारण घरों से बाहर जरूरी कार्यवश निकले लोगों ने सोमवार की सुबह शहर के दशहरा मैदान में एक मृत पड़े गोधन के बारे में दो गोसेवकों ललित गर्ग और प्रशांत गोयल उर्फ काकू को सूचना दी। जिन्होंने घटनास्थल पर देखा कि गोधन की पीठ वाला हिस्सा खूंखार कुत्ते खा चुके थे। जिसके कारण ही गोधन की मौत हुई। उन्होंने बताया कि नगर परिषद के सैनेटरी इंस्पेक्टर को घटनास्थल से फोन किया गया था, लेकिन तीन घंटे प्रतीक्षा करने के बावजूद नगर परिषद का कोई मुलाजिम नहीं पहुंचा। जिसके बाद गोसेवकों ने मृतक गोधन को घटनास्थल पर ही विधि-विधान से दफना दिया।

प्रशासन के पास है सिर्फ सरकारी गोशालाओं का डेटा –
शहरों और गांवों में पशुपालकों की ओर से पाले जा रहे गोधन की कितनी संख्या है, पिछले दस वर्ष के दौरान गोधन की कितनी संख्या रही है। अगर कम हो रही है तो गोधन कहां जा रहा है। गांवों में घट रहे गोधन के बारे में आज तक पंचायतों की खबर क्यूं नहीं ली गई। जगह-जगह पर लगती पशु मंडियों के अंदर कितने और कौन से पशुपालक कितने और किस किस्म के पशु लेकर गए हैं, बेचे गए पशुओं की पहुंच कहां हुई है, शहरों की गोशालाएं कितने-कितने पशु रखने की सामथ्र्य हैं, गोशाला समितियों की तरफ से गोधन की संभाल के किस तरह के प्रबंध किए जा रहे हैं। प्रशासन के पास सरकारी गोशालाओं का डेटा तो है लेकिन गांवों और प्राईवेट गोशालाओं के बारे में उठ रहे सवालों का प्रशासन के पास जवाब नहीं है।

यह कहते हैं गोसेवक –
* शहर के समाजसेवी भारत मोदी का कहना है कि बेसहारा पशुओं को पकडक़र गोशालाओं तक पहुंचाने, उनका ख्याल रखने और उनकी मौत होने पर सारा क्रिया-कर्म करने की जिम्मेदारी नगर परिषदों / नगर निगमों की होती है। जबकि यहां हड्डा-रोडी और दफन के लिए खास जगह नहीं होने के कारण समाजसेवक/गोरक्षक खुद ही प्रयास कर गोधन का विधि-विधान से क्रिया-कर्म करते आ रहे हैं। मृतक पशुओं को उठवाने के लिए समाजसेवकों को अपनी जेब से पैसे देने पड़ रहे हैं।
* गोसेवक ललित गर्ग का कहना है कि ग्रामीण पशुपालक हर महीने जगह जगह लगती पशुमंडियों की आड़ लेकर और रात के अंधेरे का फायदा उठाकर सडक़ों पर गोधन को बेसहारा छोड़ जाते हैं। जिन पर नजर रखने के लिए पंचायतों द्वारा संबंधित गांवों के कोड सहित गोधन/गोवंश के निशान और नंबर लगाने चाहिए, जैसे शहरों के अंदर गोशालाओं में भरती गोधन के निशान और नंबर लगते हैं। काओ-सेस के नाम पर करोड़ों रुपए इकठ्ठा करने वाली सरकारें इस तरफ ध्यान नहीं रही। हैरानी इस बात की है कि धर्म के ठेकेदार गोधन के नाम पर राजनीति कर रहे हैं।

यह कहते हैं अधिकारी –
नगर परिषद बरनाला के ई.ओ. मनप्रीत सिंह का कहना है कि जिस किसी जगह पर किसी गोधन की मौत की खबर मिलती है तो उसी वक्त मुलाजिमों को घटनास्थल पर भेजा जाता है। हमारे पास बरनाला के दशहरा मैदान में मरे गोधन के बारे में फोन आया था, वहां मुलाजिम भेज दिए गए थे।