चंडीगढ़, 10 मई: देश की 65 फीसदी जनसंख्या खेती पर निर्भर है और कृषि देश की आर्थिक स्थिति की रीढ़ की हड्डी है। आर्थिक जगत में इतनी मंदी आने के बावजूद भी सरकार को इसकी अहमियत का अहसास नहीं हुआ। इस मंदी के कारण किसानों और व्यापारियों का धंधा चौपट हो गया है। कृषि उद्योगों में मंदी की वजह से बेरोजगÞारी दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला ने एक वक्तव्य के दौरान कहा कि किसानों को तो सरकार ने एक प्रयोगशाला बना दिया है। भाजपा-जजपा हो या कांग्रेसी सरकार किसानों के लिए दोनों ही एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। दोनों के लिए किसान एक दुधारू पशु है जब मर्जी होती है नई-नई शर्तें बनाकर उसे लूटा व परेशान किया जाता है।

उन्होंने ने कहा कि किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए पहले च्मेरी फसल मेरा ब्योरा मेल पर जाकर फसल का विवरण देना पड़ता है। बाद में आधार कार्ड या अन्य पहचान-पत्र और पटवारी से भूमि के रिकॉर्ड आदि की नकल भी प्रस्तुति करनी पड़ती है। फिर किसानों को फसल बेचने का संदेश आएगा और जब मंडी में गेहूं व सरसों लेकर जाएगा तो सरकारी अधिकारियों के रहमोकरम पर है, वह फसल खरÞीदें या कोई बहाना बनाकर कह दें इसमें नमी है कल लेकर आना। क्या किसानों की सरसों व गेहूं की फसल चोरी का माल है जिसके लिये उन्हें परेशान किया जाता है। व्यापारी अपना माल बेचते है, खरÞीदार कभी पूछताछ करता है कि यह किस जगह से और किसका माल है?

इनेलो नेता ने कहा कि भाजपा 2022 तक किसानों की आमदनी दुगुनी करने का ढिंढोरा पीट रही हैं जबकि छह मई को केंद्र सरकार ने एक पत्र प्रदेश सरकार को भेजा है जिसमें लिखा है कि गेहूं में अगर 4 से 8 प्रतिशत नमी है तो न्यूनतम समर्थन मूल्य में से चार रुपये का कट लगेगा, अगर नमी 8 से 10 प्रतिशत है तो लगभग दस रुपये के करÞीब न्यूनतम समर्थन मूल्य से कटौती होगी और यदि नमी इस से ज़्यादा है तो गेहूं की खरÞीद नहीं होगी। प्रदेश की सरकार ने इस पत्र को खुदा का फरमान मानकर तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया है। पहले तो किसानों को बेची हुई गेहूं की फसल के पैसे की अदायगी नहीं हो रही, अगर हुई है तो 1925 रुपये प्रति क्विंटल की जगह 1911 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से सरकार कर रही है।

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