भूजल संरक्षण की सबसे बड़ी परियोजना दादूपुर नलवी को फिर से किया जाए शुरू
मुश्किल वक़्त में ना किए जाएं किसानों के साथ नए प्रयोग, कठिन फ़ैसलों से परहेज कर सरकार
·किसी भी फ़ैसले से पहले किसानों और उनके संगठनों से की जाए बातचीत

रोहतक, 8 मई। राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने धान ना उगाने संबंधि सरकार के फ़ैसलों पर टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि सरकार कभी फसल की ख़रीद तो कभी फसल की बुआई बारे रोज़ नए-नए आदेश जारी कर रही है, जो किसानों के हक़ में नहीं है। लॉकडाऊन के मुश्किल वक़्त में सरकार को किसानों के साथ नए-नए प्रयोग करने से परहेज करना चाहिए क्योंकि सरकार की ज़िम्मेदारी किसानों को सुविधाएं देने की है, ना कि उनके सामने नई-नई चुनौती पैदा करने की।
दीपेंद्र ने कहा कि सरकार ने ऐन बुआई से पहले करनाल, कैथल, जींद, कुरुक्षेत्र, अम्बाला, यमुनानगर और सोनीपत में पट्टे की पंचायती जमीन पर धान बोने पर पाबंदी लगा दी। इसकी सीधी मार ग़रीब और छोटे किसान पर पड़ेगी। क्योंकि पंचायती ज़मीन अक्सर बहुत छोटा और ग़रीब किसान ही पट्टे पर लेता है। इस आदेश के चलते किसान इस बार ज़मीन पट्टे पर लेने से कतरा रहा है।

उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से भूजल स्तर को लेकर की जा रही चिंता जायज़ है लेकिन इसको लेकर एकदम किसानों पर मार मारना जायज़ नहीं है। सरकार को कोई नया प्रयोगात्मक फ़ैसला लेने से पहले हालात सामान्य होने का इंतज़ार करना चाहिए। अगर सरकार को गिरते भूजल स्तर की चिंता है तो उसे फौरन दादूपूर नलवी नहर परियोजना फिर से शुरू करनी चाहिए। भूजल संरक्षण के लिए चलाई गई ये प्रदेश की सबसे बड़ी परियोजना थी। इसके साथ डार्क ज़ोन में तालाब खुदवाने, नहरों और फव्वारा विधि से सिंचाई जैसी परियोजनाओं पर ज़ोर देना चाहिए।
राज्यसभा सांसद ने कहा कि किसानों को धान के विकल्पों पर विचार करने के लिए समय देना चाहिए। जिन वैकल्पिक फसलों मक्का, दलहन, तिलहन और मूंग की सरकार बात कर रही है, उनके बारे में किसानों को पूरी जानकारी, संसाधन, प्रोत्साहन और मार्किट मुहैया करवानी चाहिए। कांग्रेस कार्यकाल के दौरान भी सरकार की अपील पर किसानों ने सबसे ज़्यादा पानी लेने वाली साठी धान उगानी बंद कर दी थी। इसके लिए सरकार ने किसानों को जागरूक किया था और बाकि धान की ऊंचे रेट पर ख़रीद की थी।

दीपेंद्र ने कहा कि सरकार ने धान ना उगाने वाले किसानों को 7 हज़ार रुपये प्रोत्साहन राशि देने का फ़ैसला ज़रूर किया है लेकिन यह कम है किसान संगठनों की मांग के अनुसार इसको 15 हजार रुपए किया जाए। सरकार अगर किसानों के साथ बातचीत और समन्वय से फ़ैसले लेगी तो निश्चित ही किसान भी सरकार का साथ देंगे।

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