लोकसभा में जी राम जी बिल पेश-संसद में घमासान मचा-विपक्षी पार्टियों द्वारा इस बिल का पुरजोर विरोध 

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मनरेगा बनाम विकसित भारत रोज़गार और आजीविका गारंटी मिशन (वीबी-जी रामजी) बिल (ग्रामीण) अधिकार-आधारित कानून से मिशन-आधारित मॉडल तक की यात्रा

मनरेगा एक अधिकार आधारित कानून था, जबकि वीबी-जी रामजी बिल को लेकर यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि मिशन मोड में लागू होने वाली योजना बन सकती है

– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया – लोकसभा में जैसे ही विकसित भारत रोज़गार और आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण) यानी वीबी-जी रामजी बिल प्रस्तुत किया गया, संसद का माहौल गर्म हो गया। विपक्षी दलों ने इसे मनरेगा जैसे ऐतिहासिक अधिकार-आधारित कानून को समाप्त करने वाला कदम बताते हुए तीखा विरोध दर्ज कराया। यह बहस केवल एक नए कानून तक सीमित नहीं रही, बल्कि ग्रामीण भारत के भविष्य, संविधान की आत्मा और सामाजिक न्याय के मूल्यों तक पहुँच गई।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था की पृष्ठभूमि और मनरेगा की ऐतिहासिक भूमिका
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था दशकों से संरचनात्मक बेरोज़गारी, अस्थायी आजीविका, कृषि-आधारित जोखिम और मौसमी असमानताओं से जूझती रही है। वर्ष 2005 में लागू महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) ने इस चुनौती के विरुद्ध ऐतिहासिक हस्तक्षेप किया। यह पहला ऐसा कानून था जिसने ग्रामीण नागरिकों को रोज़गार का कानूनी अधिकार प्रदान किया और राज्य को उत्तरदायी बनाया।

वीबी-जी रामजी बिल-एक नया वैधानिक ढांचा
संसद में प्रस्तुत वीबी-जी रामजी बिल का पूरा नाम विकसित भारत रोज़गार और आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण) बिल है। सरकार के अनुसार यह विधेयक ‘विकसित भारत 2047’ के राष्ट्रीय विज़न के अनुरूप तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य केवल अस्थायी रोज़गार उपलब्ध कराना नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत को स्थायी आजीविका, कौशल-आधारित रोजगार और आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जाना है।

संवैधानिक दृष्टिकोण से मनरेगा बनाम नया कानून
मेरे अनुसार, संवैधानिक दृष्टि से देखें तो मनरेगा ने अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 39 (राज्य के नीति-निर्देशक तत्व) की भावना को व्यावहारिक रूप दिया था। यदि नया कानून अधिकार-आधारित नहीं रहता, तो यह गंभीर प्रश्न उठेगा कि क्या राज्य सामाजिक न्याय की संवैधानिक प्रतिबद्धता से पीछे हट रहा है। यही बिंदु भविष्य में न्यायिक समीक्षा का विषय भी बन सकता है।

मनरेगा को समाप्त कर नया कानून-ऐतिहासिक बदलाव या जोखिम?
वीबी-जी रामजी बिल के विवाद का सबसे बड़ा कारण यह है कि यह 2005 के मनरेगा अधिनियम को पूरी तरह समाप्त कर देता है। मनरेगा केवल एक योजना नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा और अधिकार-आधारित कानून था, जिसमें काम का अधिकार, बेरोज़गारी भत्ता और सामाजिक अंकेक्षण जैसे प्रावधान शामिल थे। नया बिल इन तत्वों को किस हद तक बनाए रखता है या बदलता है, यही बहस का केंद्र है।

गारंटी वाले कार्यदिवस-100 से 125 दिन का प्रस्ताव
सरकार का दावा है कि नए कानून के तहत ग्रामीण परिवारों को 100 की बजाय 125 दिनों का गारंटीड रोज़गार मिलेगा। इससे ग्रामीण श्रमिकों की वार्षिक आय बढ़ने और आर्थिक सुरक्षा मज़बूत होने की बात कही जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह वृद्धि तभी सार्थक होगी जब भुगतान समय पर हो, काम की गुणवत्ता सुनिश्चित हो और बजटीय आवंटन पर्याप्त रहे।

राज्यों पर बढ़ता वित्तीय बोझ और संघीय चिंता
वीबी-जी रामजी बिल में एक बड़ा संरचनात्मक बदलाव यह है कि राज्य सरकारों की वित्तीय जिम्मेदारी बढ़ाई जा रही है। मनरेगा में केंद्र की भागीदारी अधिक थी, जबकि नए कानून में राज्यों से अधिक खर्च की अपेक्षा है। इससे संघीय ढांचे में असंतुलन और आर्थिक रूप से कमजोर राज्यों पर अतिरिक्त दबाव की आशंका जताई जा रही है।

रोज़गार से आजीविका की ओर नीति का झुकाव
सरकार का कहना है कि नया कानून केवल ‘काम देने’ तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि स्थायी आजीविका के साधनों के निर्माण पर केंद्रित होगा। कौशल विकास, स्थानीय संसाधनों पर आधारित रोजगार, ग्रामीण उद्यमिता और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देने का दावा किया गया है। यह दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनाई गई सस्टेनेबल लाइवलीहुड अप्रोच से मेल खाता है।

मनरेगा बनाम वीबी-जी रामजी-मूलभूत अंतर
मनरेगा एक स्पष्ट अधिकार-आधारित कानून था, जिसमें ‘काम मांगने’ का अधिकार निहित था। इसके विपरीत, वीबी-जी रामजी बिल को लेकर आशंका है कि यह मिशन-मोड में लागू होने वाली योजना बन सकता है। यदि ऐसा हुआ, तो ग्रामीण श्रमिकों की कानूनी सुरक्षा कमजोर पड़ सकती है।

काम का स्वरूप-अकुशल श्रम से आजीविका तक
मनरेगा मुख्यतः अकुशल श्रम जैसे जल संरक्षण, सड़क निर्माण और तालाब खुदाई पर केंद्रित था। नया बिल दावा करता है कि वह रोजगार से आगे बढ़कर आजीविका पर ध्यान देगा, जिसमें कौशल-आधारित काम और ग्रामीण उद्यमिता शामिल होंगी। यह परिवर्तन तभी सफल होगा जब जमीनी स्तर पर प्रशिक्षण और बाज़ार से जुड़ाव सुनिश्चित किया जाए।

पारदर्शिता और जवाबदेही का प्रश्न
मनरेगा की बड़ी ताकत उसका सामाजिक अंकेक्षण तंत्र था, जिसने पारदर्शिता को बढ़ाया। वीबी-जी रामजी बिल में इस तरह के स्वतंत्र अंकेक्षण की व्यवस्था कितनी मज़बूत होगी, यह अभी स्पष्ट नहीं है। यदि जवाबदेही कमजोर हुई, तो भ्रष्टाचार और असमान क्रियान्वयन का खतरा बढ़ सकता है।

महात्मा गांधी का नाम हटाना-प्रतीकात्मक या वैचारिक निर्णय?
विधेयक को लेकर सबसे तीखी प्रतिक्रिया महात्मा गांधी के नाम को हटाने पर आई है। विपक्ष का तर्क है कि गांधी केवल एक नाम नहीं, बल्कि श्रम की गरिमा और सामाजिक न्याय के प्रतीक हैं। प्रियंका गांधी सहित कई नेताओं ने सवाल उठाया है कि नाम बदलने से ज़मीनी समस्याओं का समाधान कैसे होगा।

प्रियंका गांधी का बयान-विपक्ष की चिंता का स्वर
प्रियंका गांधी ने कहा कि महात्मा गांधी का नाम वैश्विक सम्मान का प्रतीक है। योजनाओं के नाम बदलने से सरकारी दस्तावेज़ों और व्यवस्थाओं पर अनावश्यक खर्च होता है, जिसका सीधा लाभ जनता को नहीं मिलता। उन्होंने इसे वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने वाला कदम बताया।

सरकार का पक्ष-विकसित भारत का लक्ष्य
केंद्र सरकार का कहना है कि यह बिल ग्रामीण भारत को नई गति देगा और 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य में सहायक होगा। सरकार के अनुसार, मनरेगा की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए यह नया कानून अधिक आधुनिक और परिणाम-उन्मुख है।

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य-रोजगार गारंटी की वैश्विक प्रासंगिकता
दुनिया के कई देशों में रोजगार गारंटी और सार्वजनिक कार्य कार्यक्रम सामाजिक सुरक्षा के महत्वपूर्ण उपकरण हैं। मनरेगा अधिकार-आधारित होने के कारण वैश्विक स्तर पर विशिष्ट रहा है। यदि भारत अब मिशन-आधारित मॉडल अपनाता है, तो इसकी सफलता या विफलता पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नज़र रहेगी।

अतः अगर हमउपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे क़ि सुधार या केवल पुनर्परिभाषा? वीबी-जी रामजी बिल ग्रामीण रोजगार नीति में एक बड़ा बदलाव है। यह बदलाव ग्रामीण गरीबों के जीवन में वास्तविक सुधार लाएगा या केवल वैचारिक पुनर्परिभाषा बनकर रह जाएगा, इसका उत्तर विधेयक के अंतिम स्वरूप, पारदर्शी क्रियान्वयन और राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगा।

-संकलनकर्ता/लेखक-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी क़ानूनी विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक गोंदिया, महाराष्ट्र 

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Author: Bharat Sarathi

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