· लोकसभा में दीपेन्द्र हुड्डा के सवाल पर सरकार ने कहा पिछले 10 वर्षों में किसी मौत की सूचना नहीं मिली
· इससे पहले 2022 में सरकार ने बताया था कि 2017 – 2021 के दौरान पूरे देश में कुल 330 और 36 कर्मियों की मौत हरियाणा में हुई– दीपेन्द्र हुड्डा
· सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सभी पीड़ित परिवारों को समय–सीमा में अनिवार्य मुआवज़ा, नौकरी और पुनर्वास दिया जाए – दीपेन्द्र हुड्डा
· सीवर/सेप्टिक–टैंक सफाई का 100% मशीनीकरण लागू किया जाए – दीपेन्द्र हुड्डा
चंडीगढ़, 15 दिसंबर। सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने लोकसभा में सवाल किया कि पिछले दस वर्षों के दौरान हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों की मृत्यु की संख्या संबंधी वर्ष-वार और राज्य-वार ब्यौरा क्या है। जिसके जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री (श्री रामदास आठवले) ने कहा कि हाथ से मैला उठाने के कारण किसी मौत की सूचना नहीं मिली है। इससे पहले 02-08-2022 को लोक सभा के अतारांकित प्रश्न संख्या 2726 के जवाब में सरकार ने बताया कि 2017 – 2021 के दौरान पूरे देश में कुल 330 व्यक्तियों की मृत्यु हुई जिसमें से 36 कर्मियों की मौत अकेले हरियाणा में हुई। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि केंद्र सरकार बताए कि सफाई कर्मचारियों की मौत के मामले में वो पहले झूठ बोल रही थी कि अब झूठ बोल रही है। दीपेन्द्र हुड्डा ने मांग करी कि सीवर/सेप्टिक-टैंक सफाई का 100% मशीनीकरण लागू किया जाए। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सभी पीड़ित परिवारों को समय-सीमा में अनिवार्य मुआवज़ा, नौकरी और पुनर्वास दिया जाए।
अपने सवाल में दीपेन्द्र हुड्डा ने सीवर/सेप्टिक-टैंक सफाई कार्य के दौरान जान गँवाने वाले कर्मियों के परिवारों को दिए गए मुआवजे और हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के कार्यान्वयन के संबंध में भी सवाल पूछा। जिसका सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि सरकार तकनीकी शब्दों में “मैनुअल स्कैवेंजिंग” को परिभाषित कर मौतों को नकार रही है। सरकार “हाथ से मैला ढोने” और “सीवर/सेप्टिक टैंक में सफाई” के बीच तकनीकी अंतर बताकर मौतों को नकारती है ताकि उसे मुआवजा न देना पड़े। सरकार कहती है “कोई मौत की सूचना नहीं” जबकि आधिकारिक तौर पर 5 साल में 330 मौतें दर्ज हैं। जो सरकार के “शून्य मौत” के दावे के बिल्कुल विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट ने खुद हरियाणा सरकार को इस मामले में फटकार लगाई है। क्योंकि उसने एक सफाईकर्मी की विधवा की अर्जी पर कार्रवाई नहीं की। जिससे साबित होता है कि मौतें हुई हैं और राज्य सरकार ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। सर्वोच्च न्यायालय लगातार राज्यों को सेप्टिक-टैंक/सीवर में मरने वाले मजदूरों के परिजनों को मुआवज़ा देने के निर्देश देता रहा है। अगर मौतें नहीं होतीं, तो सुप्रीम कोर्ट मुआवज़े के आदेश क्यों देता?
सरकार सीवर और सेप्टिक टैंक श्रमिकों के लिए “राष्ट्रीय मशीनीकृत स्वच्छता इकोसिस्टम कार्ययोजना (नमस्ते)” योजना शुरू करने का दावा तो करती है लेकिन जमीनी स्तर पर शून्य मृत्यु दर प्राप्त करने में विफल रही है। सरकार ने कई बार लोकसभा/राज्यसभा में कहा कि “मैन्युअल स्केवेन्जर के काम करने की कोई रिपोर्ट नहीं है अभी काम कर रहे हैं” जबकि हकीकत में लगातार मीडिया में ऐसी मौतों की खबरें आती हैं। हरियाणा में बार-बार सीवर सफाई के दौरान मौतें दर्ज हुई हैं, मगर सरकार दावा करती है कि राज्य में “मैनुअल स्कैवेंजिंग होती ही नहीं”! इसी साल हिसार जिले के हाँसी में दो सफाईकर्मियों सोमवीर और वीरेंद्र की मौत केवल इसलिए हुई कि उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर, सैफ्टी गेयर जैसे सुरक्षात्मक उपकरण के बिना ही एक होटल के सेप्टिक-टैंक में उतरने के लिए मजबूर किया गया था। इसके पहले, 2019–2021 की अवधि में राज्य में लगभग 52 मजदूरों की मौत जहरीली गैसों के कारण हुई थी, जबकि कई बार उन्हें बिना सुरक्षित उपकरण के सेप्टिक टैंक में भेजा जाता रहा।








