– भारत सारथी

हरियाणा विधानसभा की कार्यवाही के दौरान हाल के दिनों में कई ऐसे घटनाक्रम सामने आए हैं, जिन्होंने संसदीय गरिमा और मर्यादा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सदन में बहस के दौरान असंसदीय भाषा का उपयोग, अभद्र शब्दों का प्रयोग और एक-दूसरे पर व्यक्तिगत हमले अब आम बात होती जा रही है। इस स्थिति में सत्ता पक्ष की भूमिका भी सवालों के घेरे में है।
असंसदीय शब्दों पर बढ़ती कार्रवाई
हाल के दिनों में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा कई नेताओं के शब्दों को कार्यवाही से हटाने का आदेश दिया गया।
- 18 मार्च 2025 को बिजली मंत्री अनिल विज द्वारा कहे गए “हुड्डागर्दी” और “गुंडागर्दी” शब्दों के साथ-साथ विधायक डॉ. रघुवीर सिंह कादियान द्वारा कहा गया “गुंडा” शब्द कार्यवाही से हटा दिया गया।
- 19 मार्च 2025 को संसदीय कार्य मंत्री महिपाल ढांडा द्वारा कहे गए “झूठ” शब्द को हटाया गया।
- बजट पर चर्चा के दौरान विधायक बिमला चौधरी द्वारा कहे गए “बेटी………” शब्द को भी कार्यवाही से बाहर कर दिया गया।
- 11 मार्च 2025 को सहकारिता मंत्री डॉ. अरविंद कुमार शर्मा और विधायक राम कुमार गौतम के बीच तीखी बहस को कार्यवाही में रिकॉर्ड नहीं किया गया।
- 10 मार्च 2025 को विधायक डॉ. रघुबीर सिंह कादियान द्वारा राज्यपाल के हाथ कांपने को लेकर की गई टिप्पणी को कार्यवाही से हटाने का निर्देश दिया गया।
संसदीय भाषा का गिरता स्तर
इन घटनाओं से स्पष्ट है कि विधानसभा में बहस के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही मर्यादा का पालन करने के बजाय एक-दूसरे पर व्यक्तिगत हमले करने और असंसदीय भाषा के प्रयोग में लिप्त नजर आ रहे हैं। इस तरह की घटनाएं केवल संसदीय गरिमा को ठेस पहुंचाने का काम करती हैं, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
सत्ता पक्ष की भूमिका पर सवाल
सत्ता पक्ष की ओर से बार-बार की जा रही अभद्र टिप्पणियां और असंसदीय शब्दों का प्रयोग यह दर्शाता है कि सरकार बहस की मर्यादा बनाए रखने में असफल हो रही है। सदन का उपयोग नीतिगत चर्चा और जनहित के मुद्दों पर सार्थक संवाद के लिए होना चाहिए, लेकिन अब यह राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का अखाड़ा बनता जा रहा है।
क्या हो समाधान?
- विधायकों को सदन की गरिमा बनाए रखने की शपथ दिलाई जाए।
- असंसदीय भाषा के इस्तेमाल पर सख्त नियम लागू किए जाएं।
- सत्ता पक्ष को विपक्ष के सवालों का जवाब संयमित भाषा में देना चाहिए।
- संसदीय संवाद को स्वस्थ और जनहितकारी बनाने के लिए नियमों को और प्रभावी बनाया जाए।
निष्कर्ष
हरियाणा विधानसभा की यह घटनाएं केवल असंसदीय शब्दों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह लोकतंत्र के स्तर में आ रही गिरावट और सत्ता पक्ष की गैर-जिम्मेदाराना भूमिका को भी उजागर करती हैं। यदि इस पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो यह प्रवृत्ति आगे चलकर संसदीय व्यवस्था की गंभीर विफलता का कारण बन सकती है। इसलिए, सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को मिलकर संसदीय गरिमा को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।