गुरुग्राम, सतीश भारद्वाज: गुरुग्राम नगर निगम के अधिकारी भले ही शहर को चमकाने के बड़े-बड़े दावे करें, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। सफाई व्यवस्था दुरुस्त करने के लाख प्रयासों के बावजूद शहर की हालत जस की तस बनी हुई है। इसका सबसे बड़ा कारण अधिकारियों की लापरवाही, मनमर्जी और राजनीतिक संरक्षण में पनप रही अनियमितताएं नजर आ रही हैं।
वित्तीय लेनदेन में बड़े खेल की आशंका
सूत्रों के मुताबिक, नगर निगम के सभी जोनों में अधिकारियों की मनमानी चरम पर है। कहीं आउटसोर्स कर्मचारी निगम की कमान संभाले हुए हैं, तो कहीं रेगुलर कर्मचारियों को बिना किसी जिम्मेदारी के खाली बैठा दिया गया है। जबकि सरकार का स्पष्ट आदेश है कि कंसलटेंट और आउटसोर्स कर्मचारियों को वित्तीय लेन-देन से दूर रखा जाए, लेकिन नगर निगम में इसका खुला उल्लंघन हो रहा है।
विशेषकर जोन-3 (नया गुरुग्राम) की बात करें तो यहां एसएसआई पद पर तैनात रेगुलर कर्मचारी हर्ष चावला को दरकिनार कर दिया गया है, जबकि रिटायर्ड कंसलटेंट राजेश यादव को जेडटीओ और एसएसआई का चार्ज देकर वित्तीय फैसले लेने की खुली छूट दी गई है। वहीं, जोन-4 में देवेंद्र विश्नोई को एसएसआई का चार्ज सौंपा गया है, जो ठेकेदारों के बिलों को चेक कर पास कर रहे हैं।
सरकार के स्पष्ट आदेशों के बावजूद निगम के अंदर आउटसोर्स कर्मचारियों के माध्यम से ठेकेदारों के बिल पास करने का खेल जारी है, जिससे हर महीने लाखों रुपये की हेराफेरी की जा रही है। अधिकारियों की इस कार्यशैली पर सवाल उठना लाजमी है, लेकिन निगमायुक्त से लेकर जॉइंट कमिश्नर तक सभी चुप्पी साधे बैठे हैं।
रिटायरमेंट के करीब निगमायुक्त, कार्यवाही के बजाय औपचारिकता में व्यस्त
नगर निगम के सूत्रों की मानें तो नवंबर में रिटायर होने वाले निगमायुक्त अशोक कुमार गर्ग किसी भी ठोस निर्णय को लेने के बजाय केवल औपचारिकताओं में ही लगे हुए हैं। वह क्षेत्र में औचक निरीक्षण कर मीडिया में वाहवाही लूटने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन सफाई व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हो रहा है। शहर में जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे हुए हैं, लेकिन निगम अधिकारी केवल बैठकों और चर्चाओं में ही व्यस्त दिख रहे हैं।
शहरवासियों में बढ़ रहा आक्रोश
गुरुग्राम नगर निगम की लचर कार्यप्रणाली से शहरवासियों में नाराजगी बढ़ती जा रही है। नियमित कर्मचारियों को दरकिनार कर आउटसोर्सिंग के सहारे निगम चला रहे अधिकारियों की नीतियों पर सवाल उठ रहे हैं। प्रशासनिक स्तर पर सख्ती न होने के चलते निगम में वित्तीय गड़बड़ियां भी सामने आ रही हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी इसे रोकने के बजाय मौन बने हुए हैं।
क्या कहते हैं निगमायुक्त?
जब इस संबंध में निगमायुक्त अशोक कुमार गर्ग से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने फोन नहीं उठाया। उनकी चुप्पी कई सवालों को जन्म देती है—क्या वे इन अनियमितताओं से अनजान हैं, या जानबूझकर इन पर पर्दा डाला जा रहा है?
निगम में सुधार कब?
गुरुग्राम की जनता यह जानना चाहती है कि आखिर नगर निगम में चल रही इस वित्तीय गड़बड़ी और अव्यवस्थाओं पर कब कार्रवाई होगी? क्या सरकार इन लापरवाह अधिकारियों पर कोई सख्त कदम उठाएगी, या फिर शहर इसी तरह गंदगी और अनियमितताओं के दलदल में फंसा रहेगा?