विजय गर्ग ……. सेवानिवृत्त प्रिंसिपल

भारतीय अर्थव्यवस्था में हाल के वर्षों में कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं, जिनमें से एक है महिलाओं की वित्तीय बाजार में बढ़ती भागीदारी। महिलाओं का पारंपरिक बचत साधनों से आगे बढ़कर शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड और इक्विटी में निवेश करना यह दर्शाता है कि वे आर्थिक निर्णय लेने में न केवल आत्मनिर्भर हो रही हैं, बल्कि समग्र आर्थिक विकास में भी योगदान दे रही हैं।
वित्तीय बाजार में महिलाओं की मजबूती
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के आंकड़ों के अनुसार, भारत में महिला निवेशकों की संख्या अब 22% से अधिक हो गई है, जो 2015 के मुकाबले 6.8 गुना वृद्धि दर्शाती है। भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि 2021 से हर साल औसतन तीन करोड़ नए डीमैट खाते खोले जा रहे हैं, जिनमें से लगभग हर चौथा खाता किसी महिला के नाम पर है।
अक्तूबर 2023 तक, भारत में कुल 10.55 करोड़ व्यक्तिगत निवेशकों में से 2.52 करोड़ महिलाएं थीं, जो कुल हिस्सेदारी का 23.9% है। खासतौर पर दिल्ली (29.8%) और गोवा (32%) में महिला निवेशकों की संख्या तेजी से बढ़ी है। यह स्पष्ट संकेत है कि महिलाएं अब केवल महानगरों तक सीमित न रहकर छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी वित्तीय निर्णय लेने में सक्षम हो रही हैं।
आर्थिक स्वतंत्रता और महिला सशक्तीकरण
आज, 47% महिलाएं अपने वित्तीय निर्णय स्वयं ले रही हैं। यह परिवर्तन केवल निवेश तक सीमित नहीं है; बल्कि भारत की महिला श्रमशक्ति भागीदारी 2015 के 24.5% से बढ़कर 2024 में 41.7% हो गई है।
पिछले पांच वर्षों में कामकाजी महिलाओं की संख्या 11 करोड़ से बढ़कर 21 करोड़ हो गई है। इस परिवर्तन के पीछे एक बड़ा कारण उच्च शिक्षा में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी है। 2015 में जहां 1.57 करोड़ महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही थीं, वहीं 2022 तक यह संख्या 2.07 करोड़ हो गई – जो 31.6% की वृद्धि को दर्शाता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति और डिजिटल साक्षरता अभियानों ने महिलाओं को आधुनिक कौशल से लैस कर दिया है, जिससे वे न केवल आत्मनिर्भर बनीं, बल्कि निवेश के क्षेत्र में भी आगे बढ़ रही हैं।
गांवों तक पहुंचती वित्तीय जागरूकता
अब यह बदलाव केवल शहरी महिलाओं तक सीमित नहीं है। डिजिटल तकनीक और ऑनलाइन निवेश मंचों की उपलब्धता ने गांवों की महिलाओं के लिए भी शेयर बाजार में प्रवेश को आसान बना दिया है।
नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस का यह कथन आज की परिस्थितियों में बेहद प्रासंगिक है –
“गरीबी इतिहास के संग्रहालय का हिस्सा बन सकती है, यदि महिलाओं को वित्तीय रूप से सशक्त बनाया जाए।”
चुनौतियां और आगे का रास्ता
हालांकि यह बदलाव उत्साहजनक है, लेकिन अब भी कुछ बड़ी चुनौतियां बनी हुई हैं –
- वेतन असमानता: भारत में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में औसतन 19% कम वेतन मिलता है, जिससे उनके निवेश योग्य धन की मात्रा सीमित हो जाती है।
- निवेश में जोखिम झिझक: पारंपरिक मानसिकता के कारण महिलाओं को उच्च-जोखिम वाले निवेश से दूर रहने की सलाह दी जाती है, जिससे वे अपेक्षाकृत सुरक्षित लेकिन कम लाभकारी विकल्पों तक सीमित रह जाती हैं।
क्या किया जाना चाहिए?
अब समय आ गया है कि महिलाओं की वित्तीय साक्षरता को और अधिक बढ़ावा दिया जाए। सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर माइक्रो फाइनेंस, स्वयं सहायता समूहों और डिजिटल वित्तीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
महिलाओं को उच्च-लाभकारी निवेश रणनीतियों की जानकारी देकर उन्हें आर्थिक रूप से और अधिक स्वतंत्र बनाने की दिशा में प्रयास करना होगा।
समग्र विकास की दिशा में सशक्त कदम
महिलाओं की वित्तीय स्वतंत्रता सिर्फ उनकी व्यक्तिगत समृद्धि तक सीमित नहीं है। जब महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त होती हैं, तो वे अपने परिवार, समाज और राष्ट्र की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत करती हैं।
यदि महिलाओं को सही वित्तीय जानकारी और अवसर मिलते हैं, तो वे भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकती हैं। अब समय आ गया है कि महिलाएं आत्मविश्वास के साथ अपने निवेश के फैसले लें और आर्थिक स्वतंत्रता के इस स्वर्णिम युग में अपनी मजबूत भागीदारी सुनिश्चित करें।
“एक सशक्त महिला सिर्फ अपने भविष्य को नहीं संवारती, बल्कि राष्ट्र के उज्जवल भविष्य की भी आधारशिला रखती है।”