भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। नगर निगम चुनाव आरंभ हो चुके हैं। कल 19 तारीख को स्थिति स्पष्ट होगी कि कितने उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे, कितने पार्टियों से और कितने निर्दलीय। असली अनुमान तो उसके बाद ही लगाए जा सकेंगे लेकिन अभी जो नजर आ रहा है वह यह कि यह चुनाव दोनों प्रमुख दलों भाजपा-कांग्रेस के कसौटी होंगे। पहले हम कांग्रेस की बात करते हैं। कांग्रेस वैसे ही अंतर्कलह से जूझ रही है और निगम चुनाव में यह और अधिक टूटती नजर आ रही है। कांग्रेस ने तुरंत कांग्रेस में शामिल हुई सीमा पाहूजा को मेयर का टिकट दे दिया और उनके पति को पार्षद का टिकट दे दिया। इस बात पर कांग्रेसियों में काफी नाराजगी सुनी गई। कुछ का कहना यह रहा है कि पहला चुनाव कांग्रेस से लड़ी थी, फिर यह भाजपा के साथ रही और विधानसभा चुनाव के समय यह भाजपा छोड़ निर्दलीय उम्मीदवार नवीन गोयल के साथ आ गई तो इनकी निष्ठा तो स्थितियों अनुसार बदलती रहती है। और फिर 5 साल यह पार्षद रही तो उस कार्यकाल की उपलब्धियों में इनके पास कहने को कुछ दिखाई तो देता नहीं। न जाने क्यों पार्टी इन पर भरोसा जता रही है। अब भाजपा की बात करें। भाजपा पहले भी निगम पर काबिज थी। अर्थात ट्रिपल इंजन की सरकार थी। उस समय की उपलब्धियों को देखें तो नागरिक उससे हतोत्साहित ही हैं। सबसे अधिक राजस्व देने वाला गुरुग्राम कूड़ाग्राम के नाम से जाना जाने लगा। ऐसी स्थिति में भाजपा पर विश्वास आमजन को नहीं है लेकिन वोट तो आमजन को डालना ही है। मुझे याद आ रही है स्व. रामानंद की पंक्तियां : किसको नमन करूं-किसको झुकाऊं शीश, एक सांपनाथ है तो एक नागनाथ है। भाजपा के जिला अध्यक्ष बहुत जोश में कहते हैं कि हमने अपने लक्ष्य साढ़े 4 लाख से अधिक सदस्य बना लिए हैं। यदि उनकी बात सत्य मानें तो भाजपा की सभी 37 सीटें आ जाएंगी। निगम चुनाव में यदि भाजपा के मेंबर ही उनको वोट डाल दें तो निगम की सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा हो। वर्तमान परिपेक्ष्य में दिखाई दे रहा है कि जिस प्रकार विधानसभा में अनेक भाजपाईयों ने भाजपा का दामन छोड़ दिया था और एक निर्दलीय भी चुनाव में अपना लोहा मनवा गया, उसी प्रकार इस चुनाव में उससे अधिक लोग भाजपा छोडऩे वाले दिखाई देते हैं। कुछ भाजपाईयों ने तो निर्दलीय नामांकन भर दिए हैं। ऐसी स्थिति में यह तो संभव लगता नहीं कि भाजपा को सभी सीटें मिल जाएंगे। आमजन से बात की तो अनुमान कुछ ऐसे लगे कि भाजपा के मेयर प्रत्याशी श्रीमती राजरानी मल्होत्रा की जीत में तो कोई संदेह नजर नहीं आ रहा लेकिन अन्य उम्मीदवारों में कुछ दबे स्वर में आवाजें आई कि हम भाजपा के उम्मीदवार को यदि वोट देते हैं तो वह भाजपा राज का प्रतिनिधि होगा जनप्रतिनिधि नहीं। नाम उसका केवल जनप्रतिनिधि होगा। अभी कुछ कहना तो बहुत जल्दी होगा लेकिन अनुमान यह है कि भाजपा के बागी और निर्दलीय चुनाव लडऩे वाले भी अपनी विजय का परचम फहरा सकते हैं। Post navigation नगर निगम गुरुग्राम के सामान्य पर्यवेक्षक आईएएस शेखर विद्यार्थी ने ली अधिकारियों की बैठक …….. सीआईआई गुरूग्राम जोन के चेयरमैन बने विनोद बापना