प्लास्टिक खिलौनों के बढ़ते प्रचलन को रोककर स्वदेशी शिल्प, स्वदेशी खिलौनों के उपयोग को बढ़ावा देने की ज़रूरत
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

खिलौने न केवल बच्चों के खेलने का साधन होते हैं, बल्कि वे एक देश की सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत को समझने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत में खिलौनों का इतिहास अत्यंत प्राचीन है, और आधुनिक समय में स्वदेशी शिल्प और कला के खिलौनों का महत्व पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है।
भारत में खिलौना उद्योग का विकास
भारत का खिलौना उद्योग वैश्विक स्तर पर सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले उद्योगों में से एक बन चुका है। 2028 तक इस उद्योग का आकार 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, और इसके लिए 2022 से 2028 तक 12 प्रतिशत की सीएजीआर (कंपाउंडेड एंनुअल ग्रोथ रेट) की संभावना है। इस विकास की गति को देखते हुए, भारत में खिलौना उत्पादन और वितरण की क्षमता में जबरदस्त वृद्धि हो सकती है।
प्राचीन भारतीय खिलौने और संस्कृति
भारत में खिलौनों का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है, जहाँ हमें विभिन्न प्रकार के खिलौने मिले हैं। प्राचीन काल में भारत के विभिन्न हिस्सों में बच्चों के खेलने के लिए विभिन्न प्रकार के खिलौने बनाए जाते थे। जैसे कि, शतरंज का खेल जो पहले ‘चतुरंग’ के रूप में भारत में खेला जाता था, और लूडो जो ‘पच्चीसी’ के रूप में प्रचलित था। इस प्रकार, भारतीय संस्कृति और सभ्यता की पहचान इन खिलौनों में भी देखी जा सकती है।
स्वदेशी खिलौनों का महत्व
आजकल प्लास्टिक से बने खिलौनों का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, जो न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं, बल्कि बच्चों की शारीरिक और मानसिक विकास के लिए भी उपयुक्त नहीं होते। इसलिए, स्वदेशी शिल्प और स्वदेशी खिलौनों का उपयोग बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है। ये खिलौने न केवल बच्चों के खेलने के लिए होते हैं, बल्कि इन्हें देखकर और उनसे खेलकर भारतीय सभ्यता और कारीगरी की झलक मिलती है।
भारत का पहला इंडिया टॉय फेयर और भविष्य की दिशा
भारत में हाल ही में आयोजित पहले इंडिया टॉय फेयर के उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री ने भी इस बात को रेखांकित किया कि खिलौनों के साथ भारत का रचनात्मक रिश्ता उतना ही पुराना है जितना इस देश का इतिहास। भारत में खेले जाने वाले खेलों और खिलौनों का सांस्कृतिक महत्व वैश्विक स्तर पर पहचान बना चुका है।
खिलौने और बौद्धिक विकास
खिलौनों का बच्चों के बौद्धिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान है। शिक्षा राज्यमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय वेबिनार के दौरान खिलौनों की भूमिका पर प्रकाश डाला और कहा कि खिलौने बच्चों में रचनात्मकता और समस्या सुलझाने के कौशल को बढ़ाते हैं। खिलौनों के माध्यम से बच्चों को खेल-खेल में सीखने का अवसर मिलता है, जिससे उनकी मानसिक और भावनात्मक विकास को मजबूती मिलती है।
निष्कर्ष
भारतीय खिलौने न केवल हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं, बल्कि यह बच्चों के मानसिक विकास और रचनात्मकता को भी प्रोत्साहित करते हैं। इस दिशा में स्वदेशी शिल्प और कला आधारित खिलौनों का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए, ताकि हम अपने बच्चों को स्वस्थ और सुरक्षित खिलौनों से जोड़े रख सकें।
-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र