गुरुग्राम: हाल ही में गुरुग्राम जिले में भाजपा ने अपने मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति की घोषणा की, लेकिन इस फैसले को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। खासकर भाजपा के महिला सशक्तिकरण और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारों को लेकर पार्टी की नीतियों पर विवाद उत्पन्न हो गया है।
चर्चा इस बात को लेकर है कि भाजपा ने किसी भी महिला को मंडल अध्यक्ष नहीं बनाया, और ना ही किसी दलित कार्यकर्ता को इस पद पर नियुक्त किया गया। नियुक्त किए गए मंडल अध्यक्षों में ब्रह्मानंद यादव (लक्ष्मण मंडल), पंकज सचदेवा (शिवाजी मंडल), आशीष गुप्ता (द्रोणाचार्य मंडल), पवन यादव (वजीराबाद मंडल), जितेंद्र वर्मा (अर्जुन मंडल), सिद्धार्थ भाटिया (सरस्वती मंडल), प्रियव्रत कटारिया (शीतला मंडल), और मुकेश शर्मा (दयानन्द मंडल) शामिल हैं।
इसके साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं में यह भी चर्चा है कि इन मंडल अध्यक्षों में से अधिकांश को पार्टी के आम कार्यकर्ता पहचानते तक नहीं हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि ये अध्यक्ष अपने चहेतों को बनाए गए हैं, क्योंकि इनमें से कई धनाढ्य हैं और भाजपा के कार्यक्रमों में भारी निवेश करने में सक्षम हैं।
पुराने भाजपा कार्यकर्ताओं में भी गहरी निराशा है, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे पार्टी की सेवा में लंबे समय से लगे हुए थे, फिर भी उन्हें पद नहीं मिला। महिला कार्यकर्ताओं ने नाम न छापने की शर्त पर अपना विरोध व्यक्त करते हुए कहा कि मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति में ना तो सामान्य महिला को स्थान मिला है और ना ही किसी दलित महिला को।
इसके अतिरिक्त, कुछ कार्यकर्ताओं का यह भी मानना है कि प्रदेश अध्यक्ष अपने ऊपर लगे विवादों के कारण इन चुनावों से दूरी बनाए रखे थे, जबकि भाजपा के मुख्यमंत्री भी दिल्ली चुनाव में व्यस्त थे। इस स्थिति का फायदा उठाकर जिला अध्यक्ष और स्थानीय विधायक ने अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को मंडल अध्यक्ष बना दिया।
मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद अब अटकलें लगाई जा रही हैं कि दिल्ली चुनावों के बाद यह नियुक्ति फिर से बदली जा सकती है, और पुराने मंडल अध्यक्षों को हटाकर नए अध्यक्ष नियुक्त किए जा सकते हैं।
इस प्रकार, भाजपा के इस कदम ने न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच बल्कि पार्टी के समर्थकों के बीच भी असंतोष की लहर पैदा कर दी है।