चुनावी रेवड़ियों को अब मतदाताओं को प्रलोभन (रिश्वत) के रूप में देखा जा रहा है रेवड़ी कल्चर से मिशन आत्मनिर्भर भारत को पूर्ण करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है -एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी दिल्ली में 2025 विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक दलों के बीच वादों और घोषणाओं का सिलसिला तेज हो गया है। इस बार, चुनावी वादों में रेवड़ियों की भरमार नजर आ रही है, जो सीधे तौर पर मतदाताओं को प्रलोभित करने के रूप में देखी जा रही हैं। यह स्थिति चुनावी प्रक्रिया को लोकतंत्र की असल भावना से दूर ले जाती है और इससे जुड़ी गंभीर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, खासकर जब इसे रिश्वत के रूप में देखा जाए। चुनावी वादों की राजनीति और रेवड़ी संस्कृति भारत में चुनावी माहौल हमेशा से ही सियासी दलों के वादों और योजनाओं से भरा रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में रेवड़ी संस्कृति ने चुनावी राजनीति में अहम स्थान बना लिया है। अब मतदाताओं को विभिन्न योजनाओं के नाम पर सीधे वित्तीय सहायता देने की बात की जा रही है, जैसे कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस द्वारा घोषित विभिन्न योजनाएं।चुनाव में वादे तो पुराने समय से होते आए हैं, लेकिन आजकल ये वादे अधिकतर उन योजनाओं के रूप में सामने आ रहे हैं, जिनमें मतदाताओं को प्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलने की बात की जा रही है। आम आदमी पार्टी द्वारा 15 गारंटियों का घोषणा पत्र जारी किया गया है, जिसमें महिला सम्मान योजना, रोजगार की गारंटी और मुफ्त पानी-बिजली जैसी योजनाओं का वादा किया गया है। इसी प्रकार, बीजेपी और कांग्रेस भी अपनी-अपनी योजनाओं को लेकर मतदाताओं के बीच पहुंच रही हैं।लेकिन क्या यह वादे असल में देश की दीर्घकालिक विकास की दिशा में योगदान करेंगे, या यह केवल चुनाव जीतने के लिए वोटों की खरीद-फरोख्त का तरीका बन जाएगा? रेवड़ी संस्कृति से जुड़ी यह मानसिकता आत्मनिर्भर भारत के मिशन में एक बड़ा रोड़ा बन सकती है, क्योंकि यह लोगों को अपनी मेहनत से जीने के बजाय आसान वित्तीय सहायता की ओर प्रोत्साहित करती है। रेवड़ी संस्कृति और आत्मनिर्भर भारत भारत सरकार का मुख्य लक्ष्य आत्मनिर्भर भारत का निर्माण है, जिसमें देशवासियों को अपने बलबूते पर खड़ा होना है। लेकिन चुनावों में दी जा रही रेवड़ियां इस उद्देश्य के साथ सीधा विरोधाभास हैं। अगर लोग केवल मुफ्त योजनाओं पर निर्भर रहने लगेंगे, तो यह उनके कौशल विकास और आत्मनिर्भरता को प्रभावित करेगा। इससे न केवल कामकाजी संस्कृति कमजोर होगी, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति भी कमजोर हो सकती है। टैक्स पेयर्स की प्रतिक्रिया चुनावी वादों का खामियाजा टैक्स पेयर्स को भुगतना पड़ता है, जो अपनी मेहनत की कमाई से सरकार को टैक्स देते हैं। जब सरकार चुनावी लाभ के लिए वादा करती है कि वह लोगों को मुफ्त में सेवाएं देगी, तो इसका बोझ टैक्स पेयर्स पर आ पड़ता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या यह उचित है कि जो लोग देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में योगदान दे रहे हैं, उन्हें ही इस खर्च का भार उठाना पड़े? दिल्ली विधानसभा चुनाव: सियासी दंगल दिल्ली में विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। बीजेपी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी लगाई है। बीजेपी ने अपने प्रचारकों को मैदान में उतारा है, जबकि आम आदमी पार्टी ने 15 गारंटियों के साथ अपनी घोषणा पत्र जारी किया है। वहीं, कांग्रेस भी अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने की कोशिश में जुटी है।इन सभी दलों के वादों का मुख्य उद्देश्य मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करना है, लेकिन यह वादे क्या दिल्ली की सियासत में वास्तविक बदलाव लाएंगे, या फिर यह केवल रेवड़ी संस्कृति का हिस्सा बनकर रह जाएंगे? निष्कर्ष दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में चुनावी वादों और रेवड़ी संस्कृति का बढ़ता असर लोकतंत्र और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में गंभीर चुनौतियां उत्पन्न कर सकता है। मतदाताओं को केवल चुनावी वादों के जरिए नहीं, बल्कि वास्तविक विकास और समृद्धि के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यदि सरकारें और राजनीतिक दल केवल रेवड़ियों का लालच देकर सत्ता प्राप्त करने की कोशिश करती रहेंगी, तो यह देश के दीर्घकालिक विकास के लिए हानिकारक साबित होगा। -संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र Post navigation अमेरिका की फंडिंग बन्द होने से बीमार होता विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रयागराज महाकुंभ के शिविरों में “मां सीता रसोई” के द्वारा साधु-संतों को भोजन करा रही हैं प्रख्यात समाजसेवी मनप्रीत कौर