व्यस्तता और फुर्सत: क्या है असल में इसका मतलब?

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया – भारतीय सामाजिक संरचना हजारों वर्षों पुरानी है, और इसके बीच हमारे पूर्वजों ने ऐसी कहावतें बनाईं जो आज भी हमारी जीवनशैली का हिस्सा बनी हुई हैं। इनमें से एक प्रसिद्ध कहावत है, “काम एक पैसे का नहीं, फुर्सत एक मिनट की नहीं!” यह कहावत आज के आधुनिक युग में भी सटीक रूप से लागू होती है। हम अक्सर सुनते हैं, “मुझे फुर्सत नहीं,” और यह मानते हैं कि व्यस्त रहना हमारी आदत बन चुकी है। लेकिन क्या कभी हमने इस पर गहराई से विचार किया है कि यह व्यस्तता सिर्फ एक बहाना हो सकती है?

“मुझे फुर्सत नहीं” – क्या यह सच है?

हम अक्सर यह कहते हैं कि हमारे पास समय नहीं है, हम बहुत बिजी हैं, लेकिन अगर कोई वित्तीय लाभ का अवसर सामने आए तो हम बिना किसी देरी के समय निकाल ही लेते हैं। इसका सीधा मतलब है कि हम अपनी प्राथमिकताएं तय करते हैं। जब हम किसी कार्य को महत्वपूर्ण मानते हैं, तो उसके लिए समय निकालना संभव हो जाता है। यह एक दिलचस्प विचार है कि व्यस्त रहना अक्सर हमारे विचारों से भागने का तरीका बन जाता है। एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी के अनुसार, “व्यस्त रहना अक्सर हमारे विचारों के अकेले होने की सुविधा के लिए बनाया गया एक बहाना है।”

व्यस्तता: क्या हम सच में बिजी हैं?

हम अपने रोजमर्रा के जीवन में खुद को व्यस्त बताते हैं, लेकिन क्या हम सच में इस व्यस्तता में कुछ सार्थक कर रहे हैं? यह सवाल अहम है। हमें यह समझना चाहिए कि व्यस्त होना मात्र पर्याप्त नहीं है; सवाल यह है कि हम किस कारण से व्यस्त हैं और यह व्यस्तता हमारे जीवन के लक्ष्यों के प्रति कितनी प्रभावी है। जैसा कि एक पुरानी कहावत है, “बिजी तो चीटियां भी होती हैं।”

फुर्सत: क्या यह सिर्फ आराम करने का नाम है?

फुर्सत का मतलब केवल आराम नहीं है। यह जीवन के छोटे-छोटे पलों का आनंद लेने, अपनी रुचियों का पालन करने और आत्म-चिंतन करने का अवसर होता है। हम सभी अपने जीवन में आराम की तलाश करते हैं, लेकिन यह आराम शारीरिक न होकर मानसिक होता है। इसका मतलब यह नहीं कि हम पूरी तरह से आलसी हो जाएं, बल्कि यह हमें यह याद दिलाने का एक तरीका है कि हमें अपने जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए।

व्यस्तता और फुर्सत का संतुलन

आजकल के समय में हर कोई किसी न किसी काम में व्यस्त है। लेकिन क्या हम अपनी व्यस्तताओं में से कुछ पल खुद के लिए निकाल पाते हैं? अपनी पसंदीदा गतिविधियों में समय बिताना, शौक पूरा करना, या फिर खुद से मिलकर कुछ समय बिताना – ये सब फुर्सत के ही उदाहरण हैं। जैसे कि हम किसी कला, संगीत या योग में भाग लेकर अपनी मानसिक शांति पा सकते हैं, ठीक वैसे ही जीवन के अन्य पहलुओं को भी समझने और संतुलित करने की आवश्यकता होती है।

समाप्ति

कुल मिलाकर, “काम एक पैसे का नहीं, फुर्सत एक मिनट की नहीं” यह कहावत हमें यह सिखाती है कि जीवन में व्यस्तता और फुर्सत दोनों का एक निश्चित स्थान है। हमें यह समझना चाहिए कि जीवन का सही संतुलन तभी संभव है जब हम अपनी प्राथमिकताओं को समझें और उन्हें उचित समय पर निष्पादित करें। यह केवल कार्य और आराम के बीच का संतुलन नहीं, बल्कि अपने अंदर के विचारों और इच्छाओं के साथ सामंजस्य बनाने का एक तरीका है।

-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

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