तीर्थराज प्रयाग में महाकुम्भ के सकुशल संपन्न होने,मातृभूमि सेवा मिशन के 22 वें स्थापना दिवस,स्वामी विवेकानंद दिवस एवं राष्ट्रीय युवा दिवस के उपलक्ष्य में गीता जन्मस्थली ज्योतिसर में महाकुम्भ संवाद कार्यक्रम संपन्न। तीर्थराज प्रयाग महाकुम्भ और धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र का सम्राट हर्षवर्धन के कारण बहुत आत्मीय लगाव है। महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह प्राचीन भारत की गहन वैज्ञानिक और खगोलीय समझ का प्रतीक है। मानवता की अमूर्त विरासत के रूप में प्रसिद्ध सनातन संस्कृति के सबसे बड़े मानव समागम महाकुम्भ को लेकर सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों में जिज्ञासा है। कुरुक्षेत्र, प्रमोद कौशिक 12 जनवरी : महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह प्राचीन भारत की गहन वैज्ञानिक और खगोलीय समझ का प्रतीक है. यह मेला हमें यह सिखाता है कि आस्था और विज्ञान के बीच कोई विभाजन नहीं है, बल्कि ये दोनों मिलकर मानवता के लिए मार्गदर्शक बनते हैं।महाकुंभ का आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और आर्थिक महत्व के साथ साथ सामाजिक समरसता की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण महत्व है। आज की आधुनिकता की उन्मत्त गति की विशेषता वाली दुनिया में, कुछ ही आयोजन ऐसे होते हैं जो लाखों लोगों को अपने से बड़े उद्देश्य की खोज में एकजुट करने की क्षमता रखते हैं। यह विचार तीर्थराज प्रयाग में महाकुम्भ, मातृभूमि सेवा मिशन के 22 वें स्थापना दिवस, स्वामी विवेकानंद दिवस एवं राष्ट्रीय युवा दिवस के उपलक्ष्य में गीता जन्मस्थली ज्योतिसर में आयोजित महाकुम्भ संवाद कार्यक्रम मे मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ वैदिक ब्रम्हचारियों द्वारा तीर्थराज प्रयाग में आयोजित होने वाले महाकुम्भ के सकुशल संपन्न होने के निमित्त वैदिक यज्ञ से हुआ। इस अवसर पर मातृभूमि सेवा मिशन के 22 वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में त्रिदिवसीय कार्यक्रम का शुभारम्भ शंख ध्वनि एवं दीप प्रज्जवलन से हुआ। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा सनातन धर्म में प्रत्येक आध्यात्मिक या धार्मिक गतिविधि का मानव और सामाजिक उत्थान से एक मजबूत संबंध है, जो सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है और साथ ही हमें यह भी याद दिलाता है कि सनातन धर्म जातिगत भेदभाव में विश्वास नहीं करता है। महाकुंभ मेला दुनिया भर में सबसे बड़ा शांतिपूर्ण सम्मेलन है, जिसमें लाखों तीर्थयात्री आते हैं।स्वतंत्रता के बाद महाकुंभ मेले का महत्व और भी बढ़ गया, जो राष्ट्रीय एकता और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। 2017 में यूनेस्को द्वारा मानव जाति की अमूर्त सांस्कृतिक संपत्ति के रूप में मान्यता प्राप्त कुंभ मेला आधुनिकता के सामने पारंपरिक परंपराओं के अस्तित्व और अनुकूलन का गवाह है। महाकुंभ कई जातियों, पंथों और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से लाखों लोगों को एक साथ लाता है, जिससे सामाजिक सद्भाव और सांस्कृतिक आदान- प्रदान को बढ़ावा मिलता है। महाकुंभ का आयोजन नदी संगम पर होता है जहां सौर चक्र में विशिष्ट अवधियों में अद्वितीय शक्तियां कार्य करती हैं।डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा तीर्थराज प्रयाग महाकुम्भ और धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र का सम्राट हर्षवर्धन के कारण बहुत आत्मीय लगाव है। अनुष्ठानों और प्रतीकात्मक कर्मों से परे, यह तीर्थयात्रियों को आंतरिक विचारों में संलग्न होने और पवित्रता के साथ अपने संबंध को गहरा करने का अवसर देता है। आधुनिक जीवन की माँगों से भरी दुनिया में, महाकुंभ मेला एकजुटता, पवित्रता और ज्ञान के प्रतीक के रूप में सामने आता है। यह शाश्वत यात्रा एक मजबूत अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है कि मानवता के विविध मार्गों के बावजूद, हम मौलिक रूप से एकजुट हैं- शांति, आत्म साक्षात्कार और पवित्रता के लिए एक अटूट सम्मान की एक आम खोज। कार्यक्रम में समाजसेवी जसवीर सिंह राणा एवं भारतीय दूरसंचार निगम के पूर्व उपमंडल अधिकारी धर्मपाल सैनी बतौर अति विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहें। कार्यक्रम के संयोजक आचार्य नरेश कौशिक ने कहा मातृभूमि सेवा मिशन विगत 22 वर्ष से लोक मंगल के निमित्त समर्पित है। मिशन समाज के असहाय एवं जरूरत मंद बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए विभिन्न सेवा प्रकल्प संचालित कर रहा है। मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा सनातन संस्कृति के सम्पोषण, रामायण एवं श्रीमदभगवदगीता सहित वेदांत दर्शन का वैश्विक स्तर पर प्रचार प्रसार किया जा है।कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रो में सराहनीय कार्य के लिए मिशन द्वारा सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का समापन शांतिपाठ से हुआ। Post navigation हरियाणा प्रदेश में 1 अप्रैल से किसी भी स्कूल में नहीं रहेगी शिक्षकों की कमी : महिपाल ढांडा