– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

भुवनेश्वर में हुआ ऐतिहासिक सम्मेलन
8 से 10 जनवरी 2025 तक ओडिशा के भुवनेश्वर में आयोजित 18वां प्रवासी भारतीय सम्मेलन, भारतीयता और हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की वैश्विक पहचान का उत्सव बनकर उभरा। इस प्रतिष्ठित कार्यक्रम ने दुनिया के 70 से अधिक देशों से आए 3500 से अधिक प्रतिनिधियों का स्वागत किया, जो भारतीय प्रवासी समुदाय की महत्ता और उनके योगदान को उजागर करता है।

सम्मेलन का उद्देश्य और महत्व
प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन भारत सरकार का एक प्रमुख मंच है, जो प्रवासी भारतीयों को उनके पूर्वजों की भूमि से जोड़ने और वैश्विक स्तर पर भारत के विकास में उनकी भूमिका को मान्यता देने का कार्य करता है। इस वर्ष सम्मेलन का मुख्य विषय था: “विकसित भारत में प्रवासी भारतीयों का योगदान।”

यह आयोजन प्रवासी भारतीयों के अनुभव साझा करने, कनेक्टिविटी बढ़ाने और उनकी उपलब्धियों का सम्मान करने का अवसर प्रदान करता है। इसमें प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार भी दिए गए, जो भारत के विकास में असाधारण योगदान देने वालों को समर्पित हैं।

प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के संबोधन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन में अपने विचार साझा करते हुए भारत की प्राचीन विरासत और शांति की परंपरा पर जोर दिया। उन्होंने कहा:
“जब दुनिया तलवारों से साम्राज्य बढ़ा रही थी, तब भारत ने सम्राट अशोक के नेतृत्व में शांति का मार्ग चुना। आज भी, भारत ‘युद्ध नहीं, बुद्ध’ का संदेश देता है।”
प्रधानमंत्री ने प्रवासी भारतीयों को “भारत के राजदूत” कहा और उनकी सेवाओं को सराहा। उन्होंने विशेष रूप से एक टूरिस्ट ट्रेन को हरी झंडी दिखाई, जो भारत के विभिन्न सांस्कृतिक स्थलों तक जाएगी, और प्रवासी भारतीयों के लिए मेजबान देशों में भारतीय उत्पादों और संस्कृति को बढ़ावा देने की अपील की।

10 जनवरी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने समापन भाषण दिया। उन्होंने प्रवासी भारतीयों की देशभक्ति, सांस्कृतिक मूल्यों और उनके मेजबान देशों में योगदान की सराहना की।

प्रवासी भारतीयों का योगदान
प्रवासी भारतीयों ने शिक्षा, संस्कृति, सामाजिक विकास, और आर्थिक सुदृढ़ता में ऐतिहासिक योगदान दिया है। उनके बौद्धिक कौशल और सांस्कृतिक परंपराओं ने उन्हें विश्व स्तर पर विशिष्ट पहचान दिलाई है। वे जिस भी देश में रहते हैं, वहाँ के समाज और अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करते हैं।

वैश्विक मंच पर भारतीयता का प्रसार
भारतीय प्रवासी अपनी मूल परंपराओं को संजोकर रखते हुए, स्थानीय समाज में पूरी तरह घुल-मिल जाते हैं। उनकी प्रतिबद्धता, परिश्रम, और सांस्कृतिक विरासत मेजबान देशों को सशक्त बनाती है। प्रधानमंत्री ने प्रवासी भारतीयों से स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने और भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने का आग्रह किया, जिससे भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा और मजबूत होगी।

निष्कर्ष
18वें प्रवासी भारतीय सम्मेलन ने यह साबित कर दिया कि प्रवासी भारतीय न केवल अपने मेजबान देशों की समृद्धि में योगदान करते हैं, बल्कि भारत के गौरव को भी बढ़ाते हैं। उनकी परंपरागत सोच, सांस्कृतिक मूल्यों, और शैक्षणिक योग्यता ने उन्हें दुनिया भर में सम्मान दिलाया है। यह सम्मेलन भारतीयता के गौरवशाली संदेश को और अधिक प्रबल बनाते हुए भारत और प्रवासी समुदाय के बीच संबंधों को नई ऊँचाई पर ले गया।

भारत और प्रवासी भारतीयों के बीच यह जुड़ाव न केवल भारत की प्राचीन विरासत का प्रतीक है, बल्कि भविष्य के वैश्विक भारत की ओर एक सशक्त कदम भी है।

संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

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