भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। आज पूरे हरियाणा में सुशासन दिवस की धूम है। हर जिले में सरकारी स्तर पर सुशासन दिवस मनाया जा रहा है। हमारे गुरुग्राम में भी गुरुग्राम यूनिवर्सिटी में सुशासन दिवस का राज्य स्तरीय कार्यक्रम आयोजित हुआ। राज्य स्तरीय कार्यक्रम हैं अत: मुख्यमंत्री नायब सैनी मुख्य अतिथि के रूप में विराजित थे। प्रश्न वही क्या यूनिवर्सिटी में सरकार और पार्टी के कुछ लोग एकत्र होकर सुशासन का दावा करके प्रदेश में सुशासन आ जाएगा?

प्रदेश की बात आज हम नहीं करते, हम केवल गुरुग्राम की बात करेंगे। गुरुग्राम में सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों का ऐसा हाल है, जिस पर कुछ बिंदुओं पर बात करते हैं। फैसला पाठकों पर छोड़ते हैं कि वे निर्णय करें कि यह सुशासन की निशानी है?
कहा जाता है कि सबसे बड़ा सुख निरोगी काया, अत: हम सर्वप्रथम स्वास्थ्य की ही चर्चा करेंगे। वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए जिम्मेदार हैं परंतु बीमारी में दवाई देने की जिम्मेदारी सरकार की ही है। ऐसे में नजर डालें गुरुग्राम के सिविल अस्पताल पर तो वहां डॉक्टरों की भी कमी है, दवाईयों की कमी है और गुरुग्राम-बादशाहपुर की आबादी की बात करें तो 10 लाख के आसपास तो है। उस पर यह अस्पताल क्या बीमार आदमियों के लिए पर्याप्त है?

इसकी कमी को देखते हुए गुरुग्राम में निजी अस्पतालों की कोई कमी नहीं है लेकिन उनमें कितना नियमों का पालन हो रहा है यह आप लोग भी जानते हैं और सरकारी अधिकारी भी जानते हैं। आम आदमी यही महसूस करता है कि बीमार हो गया तो मुझे निजी अस्पतालों में जाकर लुटना ही लुटना है और ठीक होकर आ जाऊं यह किस्मत है, ऐसा अधिकांश ने कहा, मैं नहीं कहता।
यहां पुराने अस्पताल की जगह एक बड़ा बहुमंजिला अस्पताल बनाने की बातें वर्षों से चल रही हैं। हमारे विधायक ने उसके शिलान्यास का समय एक दिसंबर बता दिया था लेकिन मुख्यमंत्री इस विषय पर अधिकारियों से गहन चर्चा की, जिसमें निर्णय लिया गया कि स्कूल का नया भवन जब तैयार हो जाएगा, तब स्कूल स्थानांतरित किया जाएगा। स्कूल का जिक्र इसलिए कि अस्पताल बनाने में स्कूल की जमीन भी आनी है। वर्तमान में उस स्थान का पार्किंग के रूप में प्रयोग हो रहा है। अब प्रश्न वही है, कहावत है न कि कब मरेगी सासू और कब आएंगे आंसू। अर्थात कब बनेगा स्कूल का भवन, कब होगा स्थानांतरिक और कब बनेगा अस्पताल?

स्वास्थ्य के बाद स्वच्छता का ध्यान आता है और स्वच्छता की जिम्मेदारी भी प्रशासन की ही होती है और वर्तमान में आपसे छुपा नहीं है कि गुरुग्राम जिसे मिलेनियम सिटी कहा जाता है विश्व में अपनी गंदगी के लिए भी विख्यात हो रहा है तथा हाईकोर्ट की ओर से सरकार पर जुर्माना भी लगा है। इसी तरह सबसे प्रमुख ग्रीन बैल्ट की बात होती है तो अनेक स्थानों पर ग्रीन बैल्ट पर कब्जे हैं और वह अधिकारियों और जनप्रतिनिधि अर्थात विधायक से छिपे नहीं हैं लेकिन उन पर कोई कार्यवाही होती नहीं।
स्वास्थ्य, सफाई के बाद शिक्षा का नाम आता है तो शिक्षा की स्थिति क्या है, यह भी आप लोगों से छुपी नहीं है। एक तो आबादी के अनुसार सरकारी विद्यालय कम हैं, दूसरे सरकारी विद्यालयों की शिक्षा पर जनता को भरोसा नहीं है। अत: निजी स्कूलों की भरमार है। कहा जाता है कि निजी स्कूल सरकार से मान्यता लेकर और सरकार के नियमों के अनुसार चलते हैं परंतु गुरुग्राम में शायद गुरुग्राम का शिक्षा विभाग यह भी न बता सके कि गुरुग्राम में स्कूल कितने हैं और स्कूलों में नियमों के पालन की बात करें तो एक ही बात से अनुमान लगा लेना कि स्कूलों में स्कूल चलाने के लिए फायर विभाग से एनओसी लेना आवश्यक होता है लेकिन मेरी जानकारी के अनुसार 75 प्रतिशत से अधिक स्कूलों के पास फायर एनओसी ही नहीं है। ड्रैस, किताब, कापी स्कूल में बेचने की बातें आम जनता से छुपी नहीं हैं। आम जनता को ये सब बातें पता हैं परंतु सरकार को नहीं पता और सरकार दावा करती है सुशासन का।

अन्य बातें संक्षेप में जिक्र करें तो गुरुग्राम का बस अड्डा, शीतला माता मंदिर, यातायात, अधिकारियों द्वारा बनाई सडक़ें, अवैध लगे हुए विज्ञापन, हर विभाग में कर्मचारियों की कमी, सरकार का दावा है कि घर बैठे काम होते हैं। मेरी आयु 72 वर्ष है, आज तक बुढ़ापा पेंशन मेरी तो बनी नहीं। एक बार भाजपा के एक जिला अध्यक्ष ने प्रयास भी किया था लेकिन उसे भी सफलता नहीं मिली। ये बातें मैं केवल इसलिए कह रहा हूं कि अनुमान लगाया जाए कि क्या यह सुशासन है?

उपरोक्त सभी कथन लिखने का प्रायोजन केवल इतना है कि सरकार को यदि सुशासन लाना है तो जनता की आवाज को सुनना पड़ेगा, जनता की परेशानियों को समझना होगा और जनप्रतिनिधियों को दरबारी बन अपना कार्यकाल पूरा करने की बजाय जनता की आवाज सुन जनप्रतिनिधि बनना होगा। कुछ बातें हैं इसमें बाकी, आप मनन कीजिए, मेरी बातों पर विश्वास मत कीजिए।

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