दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों पर एक और प्रश्नचिन्ह 

मौजूदा समय में चुनावी प्रक्रिया पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पर आधारित

उन्होंने सवाल किया आख़िर चुनाव आयोग को चुनावी पारदर्शिता से क्यों  परहेज़

चुनाव संबंधी सभी दस्तावेज उम्मीदवार और जनता की पहुंच से बाहर हुए

फतह सिंह उजाला 

गुरुग्राम। अक्टूबर 2024 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद एडवोकेट महमूद प्राचा के द्वारा पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई। इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए 9 दिसंबर को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान एक मतदान केंद्र पर पड़े वोटों से संबंधित वीडियोग्राफी, सुरक्षा कैमरे की फुटेज और दस्तावेजों की प्रतियां एडवोकेट महमूद प्राचा को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। लेकिन बजाय दस्तावेज और वीडियो क्लिप  उपलब्ध कराने के, हाई कोर्ट आदेश के कुछ दिनों में केंद्र सरकार ने शुक्रवार 20 दिसंबर, 2024 को चुनाव संचालन नियम बदल दिए। यह प्रतिक्रिया सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस एससी सेल की प्रदेश महासचिव श्रीमती पर्ल चौधरी के द्वारा हाल ही में चुनाव संबंधित नियमों में बदलाव को लेकर व्यक्त की।

उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में कहा चंडीगढ़ मेयर चुनाव को लेकर जो कुछ भी देश और दुनिया ने देखा उसे लेकर भाजपा की नीति और नियत आम मतदाता के सामने आ चुकी है। चंडीगढ़ में जिस प्रकार का खेल खेला गया उसे सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया। इसके बाद दूध का दूध और पानी का पानी भी हो गया । उन्होंने कहा वर्तमान समय में देखा जाए तो पूरी मतदान प्रक्रिया ही इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पर केंद्रित या आधारित है । फिर वह चाहे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से वोट डालने का मामला हो या फिर गिनती किया जाने का मामला हो सारे दस्तावेज और रिकॉर्ड इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम में ही या फिर डाटा के तौर पर सुरक्षित रखे जाते हैं यहां तक की स्ट्रांग रूम की निगरानी भी सीसीटीवी के माध्यम से ही होती आ रही है चुनाव आचरण नियम 93(2)(ए) बदलने के बाद चुनाव संबंधी सभी दस्तावेज अब जनता की पहुंच से बाहर हो गए, अब पूरी जानकारी नहीं उपलब्ध होगी।

सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट कांग्रेस नेत्री पर्ल चौधरी ने कहा केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय ने परिवर्तन को अधिसूचित कर दिया है जो चुनाव आयोग के परामर्श से बना है। मतलब अब कोई भी व्यक्ति चुनाव संबंधी किसी भी कागजात का निरीक्षण नहीं कर सकेगा। अदालतें भी अब चुनाव आयोग को जनता को चुनाव संबंधी सभी कागजात उपलब्ध कराने का निर्देश नहीं दे सकती हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में भी चुनाव आयोग ने महमूद प्राचा की याचिका का विरोध किया था. चुनाव आयोग ने कहा था कि महमूद प्राचा अक्टूबर में हुए हरियाणा में विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार नहीं थे, इसलिए वह चुनाव से संबंधित दस्तावेज नहीं मांग सकते। उन्होंने सवाल किया आख़िर चुनाव आयोग को पारदर्शिता से क्या परहेज़ है ? उच्च न्यायालय में कहा गया कि एक उम्मीदवार को दस्तावेज़ निःशुल्क दिए जायें  और किसी भी अन्य व्यक्ति को एक निर्धारित शुल्क पर दिए जाने चाहिए। इसी तर्क को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने चुनाव आयोग को छह सप्ताह के अंदर फॉर्म 17C, भाग 1 और भाग 2 सहित आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था।

कांग्रेस नेत्री श्रीमती चौधरी ने सवाल किया कि लोकतंत्र में अगर जनता से ही चुनावी दस्तावेज छिपाये जायेंगे तो लोकतंत्र का मतलब क्या है ?

आख़िर क्या छिपाना चाहता है चुनाव आयोग? क्यों नहीं दस्तावेज आम लोगों को मिल सकते ? ऐसे वक्त पर जब चुनाव आयोग की साख दांव पर लगी हुई है, यह करके उसको और मटियामेट क्यों करना है ?

क्या यह निर्णय राजनीतिक दलों से विचार विमर्श करके उनको विश्वास में लेकर नहीं लिया जा सकता था ? चुनाव आयोग पर वोटर लिस्ट से नाम हटाने का आरोप है, वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने से लोगों के मन में संशय है, पक्षपात के गंभीर आरोप हैं और अब यह करके सरकार और आयोग ने हिंदुस्तान के स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों पर एक और प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

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